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तिवारी के सांसद प्रतिनिधि ने दिया झटका, कमल छोड़ हुए हाथ के साथ

मौजपुर से उनके सांसद प्रतिनिधि अनिल गौड़ बैठक स्थल के बाहर तिवारी के विरोध और कांग्रेस के समर्थन में पोस्टर लगाने में व्यस्त थे।

नई दिल्ली : देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी-बारी, यह सिर्फ हिंदी फिल्म ‘कागज के फूल’ का गाना ही नहीं है बल्कि दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी का कांग्रेस से तोड़कर प्रदेश भाजपा में लाए नेताओं को लेकर दर्द भी है। रविवार को यह दर्द तब कुछ और भी उभर कर सामने आ गया, जब इलाके में उनके बैठक के ठीक बाद ही मौजपुर वार्ड से उनके सांसद प्रतिनिधि अनिल गौड़ ने पार्टी छोड़ कर कांग्रेस के हाथ के साथ हो लिए। बता दें कि इससे पहले कांग्रेस के कद्दावर नेता अरविंदर सिंह लवली और अमित मलिक भी भाजपा छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं।

रविवार सुबह जब प्रदेश अध्यक्ष और स्थानीय सांसद मनोज तिवारी अपने संसदीय क्षेत्र उत्तरी पूर्वी दिल्ली के घोंडा और सादतपुर मंडल में कार्यकारिणी की बैठक कर कार्यकर्ताओं को संगठित करने में पसीना बहा रहे थे, तब ठीक बगल के वार्ड मौजपुर से उनके सांसद प्रतिनिधि अनिल गौड़ बैठक स्थल के बाहर तिवारी के विरोध और कांग्रेस के समर्थन में पोस्टर लगाने में व्यस्त थे। यही नहीं जब कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ने सीलिंग पर हुंकार भरी तब सांसद प्रतिनिधि भी मंच पर उपस्थित रहे। इसे लेकर स्थानीय कार्यकर्ता काफी असहज हो गए। इसके साथ ही तिवारी पर गलत फैसले लेने की चर्चाओं का बाजार भी गर्म हो गया।

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बता दें कि बीते वर्ष हुए नगर निगम चुनावों में अनिल की पत्नी ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें कुछ सौ वोटों से हार मिली। इसके बाद अनिल ने हाथ का साथ छोड़कर मनोज तिवारी के घर पर कमल थाम लिया था। इसके बाद तिवारी ने पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को नरजअंदाज करते हुए अनिल को वरदान स्वरूप मौजपुर वार्ड से अपना सांसद प्रतिनिधि के पद से नवाजा था। तिवारी के इस फैसले पर क्षेत्र के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने नारजगी भी जताई थी और अनिल के कांग्रेस मे इतिहास की लिखित रिपोर्ट भी सौंपी थी, लेकिन तिवारी ने इसे दरकिनार कर दिया था।

इस पर अनिल गौड़ का कहना है कि वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के बाद पार्टी में आया था। मेरी सिर्फ एक ही इच्छा थी कि पार्टी में उन्हें मान सम्मान मिले, लेकिन यहां जिले से लेकर मंडल तक कोई उन्हें पूछ ही नहीं रहा था। उन्हें पार्टी के किसी बैठक में भी नहीं बुलाया जा रहा था। ऐसे में अपनी उपेक्षा से नाराज होकर उन्होंने दोबारा से हाथ का आशीर्वाद ले लिया है।

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