नई दिल्ली : दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष मनोज तिवारी व संगठन महामंत्री सिद्धार्थन के बीच तलवारें खिंच गई हैं। संगठन महामंत्री के पार्षदों को टिकट नहीं देने का ऐलान अध्यक्ष को रास नहीं आया। दो दिन बाद उन्होंने इशारो-इशारों में याद दिलाया कि दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष ‘मैं’ हूं। मैने ऐसी कोई नीति नहीं बनाई। दो दिन में दो बड़े नेताओं के अलग-अलग बयानों से कार्यकर्ता दुविधा में है कि आखिर किसकी बात पर भरोसा किया जाए।
दो दिन पूर्व संगठन महामंत्री सिद्धार्थन ने पूर्वी दिल्ली नगर निगम के पार्षदों के साथ मीटिंग करते हुए साफ कर दिया दिया था कि पार्षद टिकट के फेर में ना पड़े। उन्हें विधानसभा का टिकट नहीं मिलेगा। पार्षदों की जिम्मेदारी होगी कि वह अपने वार्ड से पार्टी के प्रत्याशी को जिताएं। भाजपा का 21 साल का वनवास खत्म करने के लिए सब एकजुट हो जाएं। नेताओं की परिक्रमा से नहीं काम से पार्टी को जीत मिलेगी।
पार्टी के अंदर की इस खबर को पंजाब केसरी ने उजागर कर दिया। अब ऐसे में परिक्रमा पंसद नेताओं को लगा कि उनकी दाल गलेगी नहीं। अगर अभी से पार्षदों को लगा कि वह टिकट की दौड़ में नहीं है तो वह काम ही नहीं करेंगे। टिकट की दौड़ में लगे तमाम पार्षदों ने अध्यक्ष मनोज तिवारी से भी गुहार लगाई कि यह क्या हो रहा है?
इसी के चलते सोमवार को प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में मनोज तिवारी ने संगठन महामंत्री सिद्धार्थन सहित तमाम नेताओं को इशारों में संकेत दिया कि पार्टी का अध्यक्ष मैं हूं। उन्होंने निशाना तो मीडिया को बनाया लेकिन सब जानते है कि वह किसे चैलेंज कर रहे थे। तिवारी बोले कि मैंने ऐसी कोई नीति नहीं बनाई है। उन्होंने कहा कि जो जीत सकता है, वो टिकट पा सकता है। इसके लिए पार्टी के सर्वे सहित कई चीजों पर ध्यान रखती है। उन्होंने कहा कि ऐसी खबरों से उन्हें दुख होता है, लेकिन अब उन्होंने एक दुख वाली गोली ले रखी है, वह तुरंत उसे खा लेते और ज्यादा निराश नहीं होते।
मनोज तिवारी की यह ‘मैं’ बहुत से कार्यकर्ताओं को रास नहीं आई। कार्यकर्ताओं ने तिवारी की खिंचाई करते हुए कह रहे कि भईया जी गौतम गंभीर व हंसराज हंस पर कहां सर्वे हुआ था। पिछली लोकसभा में जब आपको टिकट मिला तब कहां सर्वे हुआ था। भाजपा का साधारण कार्यकर्ता भी जानता है कि पार्टी में नीति कौन बनाता है? किसकी बात में कितनी गंभीरता है? अपना जीवन पार्टी के नाम करके पर्दे के पीछे रहकर दिन-रात पार्टी के लिए एक करने वाली कि या फिर किसी और की।