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दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला : शीला

शीला दीक्षित गठबंधन पर कोई बात नहीं करना चाहती हैं, उनके लिए गठबंधन अब इतिहास की बात बन चुकी है। अब तो महत्वपूर्ण यह है कि हमें आगे क्या करना है?

दिल्ली कांग्रेस प्रदेश और उत्तर-पूर्वी लोकसभा सीट से प्रत्याशी अध्यक्ष शीला दीक्षित गठबंधन पर कोई बात नहीं करना चाहती हैं, उनके लिए गठबंधन अब इतिहास की बात बन चुकी है। अब तो महत्वपूर्ण यह है कि हमें आगे क्या करना है? साथ ही यह भी कहती हैं कि कांग्रेस ने दिल्ली की सातों सीटों पर दमदार प्रत्याशी उतारे हैं और वह सातों सीटों पर जीत रहे हैं। दिल्ली में चुनावी मुकाबला ​त्रिकोणीय है। उनका किसी भी पार्टी से कोई चुनौती नहीं है।

आम आदमी पार्टी (आप) का दिल्ली में अस्तित्व खत्म होने वाला है। उन्होंने साफ कहा कि आप देख लेना आप पार्टी की एक भी सीट दिल्ली में नहीं आएगी। भले ही आप वाले कितना ही पूर्ण राज्य की मांग उठा लें। पूर्ण राज्य के मसले पर मुख्यमंत्री अरविंद​ केजरीवाल दिल्ली के लोगों को गुमराह कर रहे हैं। पहली बात यह है कि दिल्ली का पूर्ण राज्य यह खुद बना नहीं सकते, जो काम देश की संसद का उसे वह कैसे कर सकते हैं? पार्टी के भीतर गुटबाजी को लेकर वह बेबाकी से कहती हैं कि कौन सी पार्टी ऐसी है, जिसमें गुटबाजी नहीं है।

क्या भाजपा में गुटबाजी नहीं हो रही है, लेकिन नाराजों को मनाया जाता है और कांग्रेस ने अपने सभी नाराज नेताओं को मना लिया है। जहां तक पूर्व विधायक भीष्म शर्मा का सवाल है तो वह लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे, इसलिए उन्हें पार्टी से छह साल के लिए निकाला गया है। ऐसे ही तमाम मुद्दों पर प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित से पंजाब केसरी के डिप्टी ब्यूरो चीफ सुरेन्द्र पंडित की खरी-खरी…

आप के साथ गठबंधन की बात तो नहीं बनी, ले​किन समय बहुत खराब हो गया। आपको क्या लगता है कि अगर गठबंधन होता तो क्या स्थितियों में कुछ परिवर्तन होता?
हां, दिल्ली की चुनावी स्थिति बदली-बदली होती। गठबंधन होता तो अच्छा होता, क्योंकि दोनों के वोट एक-दूसरे को शिफ्ट हो जाते। जीत आसान हो जाती, लेकिन यह तय है कि कांग्रेस दिल्ली की सभी सातों सीटों पर मजबूती से लड़ रही है और जीत दर्ज करेगी। उनके सामने किसी भी पार्टी की कोई चुनौती नहीं है। हमारे नेता पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं। हमारी जीत सुनि​श्चित है, जहां तक गठबंधन के लिए बातचीत में भले ही बहुत समय खर्च हुआ है लेकिन उसके बीच में पार्टी अपनी तैयारी हर सीट पर कर रही थी। समीतियां बनाना, कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें इत्यादि जारी थीं। चुनाव के लिए हमारे पास पूरा समय है।

पार्टी के भीतर गुटबाजी बहुत हावी है, इसका कितना नुकसान पार्टी को उठाना पड़ सकता है?
किस पार्टी में गुटबाजी नहीं है। क्या भाजपा में नहीं है? सभी राजनीतिक पार्टियों में गुटबाजी होती है, लेकिन जब चुनाव की चुनौती होती है तो नाराज नेताओं को मनाया जाता है। कांग्रेस ने दिल्ली में अपने सभी नाराज नेताओं को मना लिया है। सभी एकजुट होकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसका परिणाम अच्छा आएगा। कांग्रेस दिल्ली में जीत दर्ज करेगी।

आप पहले 15 साल दिल्ली की राजनीति में रहीं, अब लोकसभा की राजनीति, क्या चुनौती मानती हैं आप?
मैंने अपना पहला लोकसभा का चुनाव कन्नौज से लड़ा था, उसके बाद दिल्ली में भी लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हूं। उसमें हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन फिर विधानसभा में लगातार तीन बार जीते और सरकार चलाई। राजनीति में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं। उनसे सीखना चाहिए। ना कि जीत पर फूल जाना चाहिए। न ही इतना निराश होना चाहिए कि हम हार गए। हार-जीत तो राजनीति का एक हिस्सा है।

केजरीवाल सरकार के चार साल के काम को आप किस तरह से देखते हैं। आप पार्टी अपने काम के आधार पर ही चुनावी मैदान में उतरी है?
कौन सा काम किया है उन्होंने… कोई एक काम तो बताएं। उन्होंने सिर्फ हमारे ​द्वारा अधूरे कामों को पूरा करने का काम किया है। ​जोकि पहले से ही चल रहे थे। हां, यह जरूर रहा कि बाद में उन कामों का फीता उन्होंने काटा। सिग्नेचर ब्रिज एक उदाहरण है। उसका डिजाइन हमारा ही है। आज भी वह ठीक नहीं चल रहा है। जाकर देखिए कितनी गंदगी हो गई है वहां। कम्पलीट नहीं हुआ है। बसें चलाने का दावा किया था, लेकिन वह आज तक सड़क पर नहीं उतर पाईं। उलटा उनके समय की बसें भी बंद करा दी गईं।

कांग्रेस का चुनाव प्रचार फीका क्यों है? कांग्रेस से पहले चुनाव लड़ चुके हैं, वह क्यों नहीं आगे आ रहे हैं?
देखिए, चुनाव प्रचार रणनीति के तहत होता है। कांग्रेस के सभी प्रत्याशी पूरे दम से प्रचार में लगे हैं। जो लोग नहीं निकल रहे हैं, अगर कोई बताता है तो उनसे सम्पर्क किया जाता है तो वह भी निकलते हैं। अब यहीं ले लीजिए। रोजना लोगों की भीड़ यहां आ रही है और लगातार बढ़ता जा रहा है। यहां रात के 12-1 बजे तक रणनीति बनती है, फिर अगले दिन उसे अमल में लाया जाता है।

केजरीवाल पूर्ण राज्य की मांग कर रहे हैं, आप क्या कहना चाहेंगी?
आज दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की मांग करना देश के संविधान के विरुद्ध मांग करना है। केजरीवाल चंद लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करके दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने के नाम पर जनता से वोट मांग रहे हैं। कोई उनसे पूछे कि 2014 के आम चुनावों में पंजाब से उनके चार सांसद लोकसभा में पहुंचे थे और पिछले साल दिल्ली से इनके तीन सांसद राज्यसभा में भी आ गये तो इन लोगों ने संसद में कब और कितनी बार दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की मांग की। आप द्वारा दिल्ली चुनावों में पूर्ण राज्य की मांग करना केवल पिछले साढ़े चार साल में अपनी नाकामियों को छिपाने का प्रयास मात्र है।

पहले आपकी चांदनी चौक सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन टिकट लिया नार्थ-ईस्ट से, ऐसा क्यों? कहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को चुनौती देने के लिए तो यह कदम नहीं उठाया आपने?
नफा-नुकसान भी सीटों पर होता हैं। यहां पर चुनाव लड़ने के पीछे सिर्फ एक ही मकसद था कि यहां से मैं पहले चुनाव लड़ चुकी हूं। इस सीट से मेरे सेंटीमेंट्स जुड़े हुए हैं। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस सीट पर भाजपा या आप का कौन प्रत्याशी है। यहां सभी सातों सीटों पर बराबर टक्कर है। दिल्ली में किसी एक या दो पार्टी के बीच नहीं, बल्कि त्रिकोणीय मुकाबला है।

गठबंधन से फायदा होता या नहीं?
देखिए, गठबंधन से फायदा तो होता ही है। दो पार्टियों की जो ऊर्जा है वह बढ़ जाती है। इससे नुकसान नहीं होता है, फायदा होता है तभी किया जाता है। गठबंधन दो पार्टी का हो या फिर तीन पा​र्टी का, इससे फायदा तो होता ही है।

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