दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद अदालत तक पहुंच गया है। हरियाणा पर पानी रोकने का आरोप लगाते हुए दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में हरियाणा के अधिकारियों पर अवमानना का मुकदमा चलाने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट से याचिका पर जल्द सुनवाई की गुहार लगाई गई है। दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया है कि हरियाणा सरकार पानी के उसके सही हिस्से को रोक रही है. इसलिए, वो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका विजय वर्धन, मुख्य सचिव, हरियाणा और देवेंद्र सिंह, अतिरिक्त मुख्य सचिव, सिंचाई और जल संसाधन विभाग, हरियाणा के खिलाफ न्यायालय के 1996 के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा के लिए अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है। उस मामले में शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की पेयजल जरूरतों को पूरा करने के लिए हरियाणा राज्य द्वारा वज़ीराबाद जलाशय में जल स्तर को उसकी क्षमता के अनुसार पूर्ण रखा जाएगा।
याचिका के मुताबिक 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा को राजधानी दिल्ली की पानी की मांग को पूरा करने के लिए वजीराबाद प्लांट में पानी का स्तर हमेशा उच्च स्तर पर मेंटेन करने का आदेश दिया था। लेकिन फिर भी दिल्ली को उसके हिस्से का वाजिब पानी नहीं मिल रहा है। हरियाणा से पानी की पर्याप्त सप्लाई न होने के चलते वजीराबाद प्लांट अपनी पूरी सामर्थ्य का महज 31 फीसदी भरा है। राजधानी गम्भीर जल संकट से जूझ रही है। इसके चलते दिल्ली जल बोर्ड को प्रेसिडेंट एस्टेट ,संसद भवन, दूसरी डिप्लोमेटिक बिल्डिंग समेत कई रिहायशी इलाकों में पानी की सप्लाई रोकनी पड़ी है। अर्जी में कोर्ट से जल संकट को देखते हुए जल्द सुनवाई की मांग की गई है।
राघव चड्ढा ने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड मई से ही लगातार पड़ोसी राज्यों से अतिरिक्त पानी की मांग कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया और हरियाणा की ओर से दिल्ली को तय सीमा के तहत पानी नहीं देने की बात रखी। कोर्ट ने अपर यमुना रिवर बोर्ड को हरियाणा को उचित निर्देश देने के लिए कहा। यमुना रिवर बोर्ड ने अतिरिक्त 150 क्यूसेक पानी दिल्ली को देने के लिए कहा, लेकिन हरियाणा ने अतिरिक्त पानी के साथ कानूनी जिम्मेदारी के तहत आने वाला हिस्सा भी रोक दिया।