नई दिल्ली : आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए शुरू की गई नो डिटेंशन पॉलिसी एक गलत आइडिया था। यह कहना है उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का। संसद द्वारा पास किए गए शिक्षा के अधिकार विधेयक (संशोधन) का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी नियम को लागू करते समय अध्ययन की जरूरत होती है, जबकि इसे लागू करते समय किसी तरह का कोई अध्ययन या कार्य नहीं किया गया।
उन्होंने ट्वीट कर कहा कि संसद में शिक्षा का अधिकार (संशोधन) विधेयक पारित होने का स्वागत करता हूं, नो डिटेंशन पॉलिसी को कक्षा आठवीं तक के विद्यार्थियों को फेल न करने के लिए बूरी तरह से लागू किया गया था। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने सबसे पहले नो डिटेंशन पॉलिसी का विरोध किया था। फरवरी 2015 में शिक्षा मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद मैंने तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री को लिखा था कि नो डिटेंशन पॉलिसी को तृतीय श्रेणी तक सीमित रखा जाए।
उन्होंने कहा कि नो डिटेंशन पॉलिसी को बिना शिक्षण प्रथा, पुस्तक, मूल्यांकन प्रणाली में बदलाव के बिना व शिक्षकों के उचित प्रशिक्षण के बिना लागू करना एक गलत विचार था। नो डिटेंशन पॉलिसी को रद्द करने का फैसला सही कदम है। नए फैसले के तहत अब पांचवीं से आठवीं तक बच्चों को फेल करने का अधिकार शिक्षकों के पास आ जाएगा। साथ ही शिक्षक कमजोर बच्चों को जरूरत के हिसाब से कक्षा में रोक सकेंगे। दिल्ली सरकार शिक्षा के अधिकारी अधिनियम के तहत लागू हुए नियम में बदलाव की मांग कर रही थी, जो अब पुरा हुआ।
पूर्व कांग्रेस सरकार ने किया था लागू
पूर्व कांग्रेस सरकार ने आठवीं तक के बच्चों के लिए नो डिटेंशन पॉलिसी लागू की थी। इस फैसले के तहत किसी भी बच्चे को आठवीं कक्षा तक फेल करने का अधिकार शिक्षकों के पास नहीं था। इसी कारण अधिकतर बच्चे नौवीं कक्षा में फेल हो रहे थे।
परेशान हो गए थे डिप्टी सीएम
नो डिटेंशन पॉलिसी के कारण फेल हो रहे बच्चों की शिकायतों से उपमुख्यमंत्री परेशान हो गए थे। पिछले वर्ष भी हजारों की संख्या में बच्चे उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया से मिलने पहुंचे थे। उन्होंने मांग की थी कि उन्हें पास किया जाए, लेकिन शिक्षा विभाग ने उन्हें परीक्षा देने को कहा था।
शिक्षा विभाग द्वारा इन बच्चों को विशेष रूप से पढ़ाने के बाद भी पास होने वाले बच्चों में कोई खास वृद्धि नहीं हुई थी। यही कारण है कि मनीष सिसोदिया कई बार कह चुके हैं इस नीति के कारण नौवीं कक्षा में बच्चों के फेल होने का ग्राफ बढ़ रहा है।