आजादी के 75 सालों के बाद भी यदि भारत से टूट कर अलग हुए पाकिस्तान के साथ आपसी सम्बन्ध अभी तक सामान्य व मधुर नहीं हुए हैं तो उसके पीछे पाकिस्तान का भारत के प्रति वह शत्रु भाव ही है जिसे वह अपने अस्तित्व को बनाये रखने की शर्त बना कर बैठा हुआ है। परन्तु पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री शहबाज शरीफ ने पिछले दिनों यह स्वीकारोक्ति करके पश्चाताप का संकेत दिया है कि भारत के साथ तीन-तीन युद्ध लड़ने का नतीजा यह निकला कि पाकिस्तान को सिवाय गुरबत और बर्बादी के कुछ हासिल नहीं हुआ। बेशक पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री को इस हकीकत को कबूल करने के बाद अपने देश में राजनैतिक उथल-पुथल से गुजरना पड़ सकता है मगर सच का उनकी जबां पर आना बताता है कि पाकिस्तान अपनी पुरानी गल्तियों से सबक हासिल करना चाहता है। श्री शरीफ ने कहा था कि पाकिस्तान भारत के साथ वार्ता की मेज पर बैठ कर कश्मीर समेत सभी विवादास्पद मुद्दों पर बातचीत करने का इच्छुक है।
भारत का पाकिस्तान के मामले में शुरू से ही यह रुख रहा है कि वह बातचीत को ही अन्तिम हल का तरीका मानता है परन्तु यह बातचीत आतंकवाद व हिंसा से उन्मुक्त वातावरण में होनी चाहिए। अतः पाकिस्तान को सबसे पहले इसी मोर्चे पर अपने घर को ठीक करना होगा और अपनी तरफ से होने वाली आतंकवादी गतिविधियों का जड़ से खात्मा करना होगा। इसके बावजूद भारत ने पाक के वजीरेआजम द्वारा दिखाई गई दरियादिली का जवाब फराख दिली से देते हुए पाकिस्तान के विदेशमन्त्री बिलावल भुट्टो जरदारी को गोवा में मई के पहले सप्ताह में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में शामिल होने का दावतनामा भेजने का फैसला किया है। यदि यह खबर सच है तो पिछले 12 सालों में पहली बार होगा जब कोई पाकिस्तानी मन्त्री भारत की यात्रा पर आयेगा। 2011 में पाकिस्तान की तत्कालीन विदेश मन्त्री हिना रब्बानी खार भारत आयी थीं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत और पाकिस्तान आपस में मित्रवत क्यों नहीं रह सकते? इसकी मूल वजह यह है कि पाकिस्तान जिस हिन्दू विरोध और भारत विरोध के चलते मजहब की बुनियाद पर 1947 में जिन्ना की जिद के चलते वजूद में आया था उसने पूरे पाकिस्तान को आज ऐसी मंजिल पर लाकर पटक दिया है जिसमें सिवाय दहशतगर्दी और मजहबी कट्टरपन की खेती के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं उगती। इसने पूरे पाकिस्तान को कंगाल बना कर छोड़ दिया है और यह आज दुनिया भर के सम्पन्न देशों के सामने कटोरा लेकर खड़ा हुआ है। जबकि भारत ने अपने सौहार्द व विश्व शान्ति के फार्मूले पर जो तरक्की की है उसकी बदौलत यह आज दुनिया के 20 औद्योगीकृत देशों ‘जी-20’ की अध्यक्षता कर रहा है।
पाकिस्तान की यह दुर्दशा केवल भारत के प्रति दुश्मनी का भाव पाले रखने और कश्मीर को मुद्दा बनाने की वजह से हुई है। वरना 1965 के पहले भारत-पाकिस्तान के खुले व सम्पूर्ण युद्ध से पहले पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अपने शबाब पर थी और इसकी वार्षिक वृद्धि दर भारत के मुकाबले लगभग दुगनी थी। मगर 1965 में अकारण ही कश्मीर में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़कर इसने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली और अपने तत्कालीन फौजी हुक्मरान जनरल अयूब द्वारा किये गये सभी सामाजिक-धार्मिक व आर्थिक सुधारों पर पानी फेर लिया। इसके बाद खुद जनरल अयूब ही अपने देश की राजनीतिक उलझनों में एेसे फंसे कि सत्ता से अलग होकर वह केवल भारत के चलते ही वह पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए देखते भर रह गये। यह 1971 का बांग्लादेश युद्ध था जिसने पाकिस्तान को भीतर से पूरी तरह जर्जर बना डाला और यह केवल विदेशी मदद के भरोसे अपनी गाड़ी खींचता रहा। मगर वर्तमान सन्दर्भों में हमें नये सिरे से सोचना होगा और विचार करना होगा कि पाकिस्तान को किस तरीके से पटरी पर लाकर उसके भीतर से शत्रु भाव समाप्त किया जाये। मजहब की बुनियाद पर बना पाकिस्तान अब एक हकीकत है जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
सवाल सिर्फ इतना सा है कि भारत के साथ इसके सम्बन्ध ‘अमेरिका-कनाडा’ की तर्ज पर विकसित क्यों नहीं हो सकते? भारत ने पहले दिन से ही पूरी कोशिश की कि पाकिस्तान को अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए और भारतीय संस्कृति की व्यापकता और सह्रदयता व उदारता का इस्तकबाल करते हुए भाईचारे का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। मगर इस मुल्क में जिस तरह नफरत के बीज बो कर भारत को दुश्मन के तौर पर पेश किया गया उसी का नतीजा है कि यह आज चौराहे पर खड़े हुए किसी अजनबी की तरह हरेक से मंजिल का रास्ता पूछ रहा है जबकि यह जानता है कि उसकी सारी समस्याओं का हल भारत की दोस्ती में ही छिपा हुआ है। इसके बावजूद अगर शहबाज शरीफ साहब को एहसास हो गया है कि सिर्फ दोस्ती ही एकमात्र इलाज है तो इसका वाजिब और माकूल एहतराम करने में भारत भी पीछो नहीं है। खुदा का शुक्र है कि पाकिस्तान के रहनुमाओं की बेखुदी टूट रही है।
‘‘छोड़ा न रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूं
हर इक से पूछता हूं कि जाऊं किधर को मैं
फिर बेखुदी में भूल गया राहे कूए यार
जाता वगर्ना इक दिन अपनी खबर को मैं।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा