2019 का आम चुनाव इस वक्त हर राजनीतिक दल के लिए एक बड़ी चुनौती है। बात अपने-अपने दावे और वजूद को बरकरार रखने की है। जिस तरह से 2014 में देश में भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी की आंधी चली और वह पीएम बने तो इसके बाद एक नारा भी चला कि भाजपा कम से कम 2024 तक जरूर सत्ता में रहेगी। दूसरी तरफ कांग्रेस 2014 में जिस तरह से अर्श से फर्श पर आई तो अब इन दोनों ही दलों के लिए 2019 का आम चुनाव बहुत ही अहम है। अनेक अन्य राजनीतिक दलों का वजूद भी दांव पर है। इसके साथ ही ‘देश से कांग्रेस की विदाई और केवल भाजपा ही जरूरी’ जैसे सवाल खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में अपनी सैकड़ों रैलियों के दौरान रखे और विदेशों में भी कांग्रेस के भ्रष्टाचार और गांधी परिवार को टारगेट पर लेकर उसे बेनकाब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही वजह है कि देश में 2019 को लेकर अगर कोई बड़ा मुद्दा आज उठ रहा है, तो यह सिर्फ हिन्दू और मुसलमान का है। महंगाई बढ़ने, विकास करने की बातें छोड़कर ज्यादातर दूसरों को बेनकाब करने की बातें हो रही हैं। इस मामले में भ्रष्टाचार, ब्लैक मनी और किसानों की मौत के बीच मोदी सरकार सुशासन का दावा कर रही है तो कांग्रेस इसे ड्रामेबाजी कहकर उस पर हमला कर रही है।
यह तय है कि 2019 के चुनावों को लेकर जनता के बीच अनेक ऐसी चीजें हैं, जो नोटबंदी और जीएसटी से जुड़ी हैं, जिनका रिश्ता देश की अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले छोटे और बड़े व्यापारियों का है। अब इसे लेकर कौन कितना प्रभावित है और अर्थव्यवस्था में विकास की रफ्तार कितनी है, इसका जवाब 2019 में मिलेगा। हम इस विषय से हटकर थोड़ा सा हिन्दू और मुसलमान पर ज्यादा केंद्रित होना चाहते हैं तथा इसी के दम पर सब कुछ आगे भी सैट होगा। जहां कल तक मुसलमानों को कांग्रेस अपना वोट बैंक मानती थी, वह पूरे देश में कितनी अहमियत और कितना वजूद रखते हैं, इसे राजनीतिक लाभ-हानि से सोचकर कांग्रेस और भाजपा की ओर से योजनाएं बनाई जा रही हैं। 2014 में अकेले यूपी में 80 में से लगभग 75 सीटें ले जाने वाली भाजपा यद्यपि इन चुनावों में थोड़ा थमी तो है, लेकिन कांग्रेस ने विपक्ष के साथ मिलकर हमला करने की योजना बनाई है तो सचमुच भाजपा भी केवल हिन्दुत्व की विचारधारा पर चलने लगी है। विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को यही रणनीति सफलता दिलाएगी, जबकि कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर अब मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने को तैयार है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तो यह भी स्वीकार कर चुके हैं कि मुसलमानों को पिछले दिनों हमने समझने में देरी की, लेकिन भविष्य में हम उन्हें साथ लेकर चलेंगे। हम समझते हैं कि तीन तलाक को लेकर मोदी सरकार की पहल भी इस समय कांग्रेस के निशाने पर है। अभी पिछड़ों के वोट बैंक पर किस-किस पार्टी की क्या-क्या रणनीति है इसे लेकर भी अंदर ही अंदर बहुत कुछ चल रहा है। हिन्दू ध्रुवीकरण भाजपा के लिए मुनाफे का सौदा है, जिसके सबसे बड़े केंद्र खुद प्रधानमंत्री मोदी हैं, तो उधर मुसलमानों के साथ जुड़कर धर्मनिरपेक्षता का झंडा उठाने वाले राहुल गांधी मोदी को बराबर टक्कर देने के लिए खड़े हैं।
उपचुनावों में जो कुछ हुआ वह भाजपा के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि विपक्ष एक हो रहा है और एक महागठबंधन की शक्ल ले रहा है। दूसरी तरफ हिन्दुत्व को लेकर राम मंदिर भी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है। चुनावों को सामने देखकर माहौल बन रहा है। भाजपा का यह एक बड़ा हथियार है, लेकिन यह भी हकीकत है कि सत्ता में आने के बावजूद गंभीर पहल मंदिर निर्माण को लेकर नजर नहीं आ रही है। भाजपा अगर एक चट्टान की तरह मंदिर निर्माण निश्चित अवधि में करने की बात कहती है तो उसे कम से कम 15-20 साल कोई फिर सत्ता से उखाड़ नहीं पाएगा। शर्त यह है कि उसे 2019 से पहले मंदिर बनवाना होगा। कल अगर लोकसभा में भाजपा का कोई सांसद यह सवाल उठा दे कि भाजपा तो राम मंदिर बनाने को तैयार है, परंतु क्या कांग्रेस इसके लिए तैयार है? इसे लेकर बहुत कुछ निर्भर करेगा। मंदिर का विरोध या समर्थन कांग्रेस के लिए एक परीक्षा सिद्ध होगा, परंतु यह भी तो सच है कि अगर यह सवाल उठाया जाता है तो खुद भाजपा को मंदिर को लेकर अपनी नीयत और नीति के साथ-साथ समय भी स्पष्ट करना होगा।
जहां मोदी बेहद आक्रामक चल रहे हैं, वहीं राहुल भी अब पूरी ताकत के साथ पलटवार कर रहे हैं। कर्नाटक में सहयोगियों के साथ सरकार बनाकर कांग्रेस अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के समक्ष एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। हम समझते हैं कि 2019 के सेमीफाइनल के रूप में इन तीनों राज्यों के चुनावों को लिया जा सकता है। हिन्दुत्व के अलावा आतंकवाद और पाकिस्तान के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर पर नीति भी अहम मुद्दे होंगे। धारा 370 को लेकर भाजपा ने कल क्या कहा था और आज क्या कर रही है, ये सब कुछ भी 2019 के लोकसभा चुनावों में लोगों के जेहन पर छाए हुए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस कड़ी में दिल्ली को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता, जहां मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपराज्यपाल बैजल के बीच टकराव सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया और उसका फैसला आम आदमी पार्टी को रास आ रहा है। ये बातें भी 2019 के चुनावों पर पूरा असर डालेंगी। मुद्दे छोटे हों या बड़े हों, चुनावों के वक्त खूब उभरते हैं। हम यह कहना चाहते हैं जब बड़े स्तर पर जनता के बीच बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं तो उन्हें निभाने का अंदाज भी आना चाहिए। दूसरों को बेनकाब करने से पहले आप अपने गिरेबान में भी झांकें कि आपने जो-जो वादे किए थे, वे कितने पूरे किए? कहीं ऐसा तो नहीं कि दूसरों को बेनकाब करते-करते आप खुद बेनकाब हो रहे हैं। 2019 में ऐसे कई सवाल उठेंगे और मोदी तथा राहुल के बीच इसे ही लेकर जवाब भी देश की जनता को देने होंगे।