इन्साफ के इन्तजार में बीत गए 40 साल

आज से 40 वर्ष पूर्व इस देश में कुछ ऐसा वाकया हुआ जिसकी कल्पना भी शायद किसी ने नहीं की होगी।
इन्साफ के इन्तजार में बीत गए 40 साल
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आज से 40 वर्ष पूर्व इस देश में कुछ ऐसा वाकया हुआ जिसकी कल्पना भी शायद किसी ने नहीं की होगी। तीन सिखों के द्वारा देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को गोली मार उनकी हत्या की गई जिसमें से एक को मौके पर ही सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया और अन्य दो को गिरफ्तार कर लिया गया। मगर यहीं बस नहीं हुई इसकी एवज में देशभर में 10 हजार से अधिक सिखों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। इस मंजर को लोगों ने अपनी आंखों के सामने देखा मगर अफसोस कि इसकी गवाही भरने के लिए कोई आगे नहीं आया। पुलिस, प्रशासन से लेकर कानून प्रणाली भी कातिलों को बचाती ही दिखी। इन्साफ में देरी के चलते धीरे-धीरे सबूत भी नष्ट होते चले गये। पीड़ितों के हौंसले भी पस्त होते गये उन्होंने उम्मीद ही लगभग छोड़ दी थी। हर वर्ष राजनीतिक पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए उनका इस्तेमाल कर उन्हें मोहरा बनाकर राजनीति करती रहीं। मोदी सरकार के आने के बाद तेजी से जांच होने लगी और सज्जन कुमार जैसे कातिल सलाखों के पीछे भेजे गए, जगदीश टाईटलर के खिलाफ भी तेजी से सुनवाई चल रही है और और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में कई और लोगों को सज़ा हो सकती है।

40 वर्षों में देखा जाए तो पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी भी युवा हो चुकी है मगर आज तक उनके मकानों का मालिकाना हक, बच्चों को रोजगार के साधन जैसी अनेक समस्याएं उनकी हैं जिन पर सरकारों का ध्यान नहीं जाता या यह कहा जाए कि वह देना ही नहीं चाहती। राजनीतिक पार्टियों के द्वारा पीड़ितों के दम पर केवल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती रही हैं। जब भी कोई चुनाव नजदीक आए, धरने प्रदर्शन करने हों तो पीड़ित परिवारों को बसों में भरकर लाया जाता है अन्यथा उन परिवारों की सार लेने भी कोई नहीं पहुंचता। बहुत से ऐसे परिवार भी हैं जो कड़ी मेहनत कर, छोटा मोटा रोजगार कर अपने परिवार का पालन पोषण करते आ रहे हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी, अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत कमेटी, शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी जैसी संस्थाओं के द्वारा पीड़ितों का इन्साफ की लड़ाई में साथ जरुर दिया जा रहा है। दिल्ली कमेटी हर साल सच्च की दीवार पर कार्यक्रम कर शहीदों को श्रद्धांजलि देती आई है। हालांकि इस बार शिरोमणी कमेटी अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह धामी भी उस दिन दिल्ली में मौजूद थे मगर सच्च की दीवार से चंद कदमों की दूरी पर अपना स्वागत करवा चलते बने उन्होंने वहां जाने की जहमत तक नहीं उठाई जिसके चलते पीड़ित परिवारों में रोष देखा गया है।

अकाली नेताओं की नीयत में खोट

आज तक अकाली दल 1984 कत्लेआम पीड़ितों का सबसे बड़ा हमदर्द होने का दम भरता आया है मगर हाल ही मंे एक वरिष्ठ अकाली नेता जत्थेदार कुलदीप सिंह भोगल जो कि पिछले 40 सालों से अपने दम पर दिल्ली, कानपुर, बोकारो आदि राज्योें में कातिलों को सजाएं दिलाने के लिए निरन्तर संघर्ष करते आ रहे हैं, ने एक निजी चौनल पर दिये इन्टरव्यूह में इस बात का खुलासा किया है कि गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब में हमलावारों का मार्गदर्शन करने वाले एक कांग्रेसी नेता को बचाने में अकाली दल की ही सीनीयर लीडरशिप में से कुछ लोगों की भूमिका रही है जो अपने निजी स्वार्थों यां व्यापारिक सांझ के चलते नहीं चाहते कि कमलनाथ को सजा हो।

कट्टरवादियों का कोई धर्म नहीं होता

देश के सभी लोगों को एक बात अच्छे से समझनी होगी कि कट्टरवादियों का कोई धर्म नहीं होता वह किसी भी देश, धर्म में पैदा हो सकता है। अक्सर ऐसा देखने में आता है कि मुठ्ठी भर लोग अपने अहंकार की पूर्ति के लिए भोले भाले लोगों खासकर युवा वर्ग की पहचान कर उन्हें तरह-तरह के लोभ लालच देकरं अपने लक्ष्य के लिए इस्तेमाल करते हैं। उनके इस काम में सरकारी तंत्र भी कहीं ना कहीं शामिल हो जाता है क्योंकि बिना सरकार के उन्हें सुरक्षा, ह​िथयार आदि मुहैया नहीं हो सकते। मगर इतिहास गवाह है कि जिस भी देश की सरकारों ने कट्टवादियों को समर्थन देकर उनका विस्तार करवाया एक ना एक दिन यह लोग उनके लिए ही खतरा बने हैं। हाल ही में कट्टरवादियों के द्वारा कनाडा मंे एक हिन्दू मन्दिर पर हमला किये जाने को लेकर सोशल मी​िडया पर एक बार फिर से सिख समाज के प्रति सिख विरोधियों ने अपनी भड़ास निकालनी शुरु कर दी। मामला कनाडा के ब्रैम्पटन शहर के एक मन्दिर के बाहर कट्टरवादियांे और आम लोगों के बीच हुई झड़प से शुरू हुआ और देखते ही देखते विशाल रूप धारण कर गया। भाजपा सिख सैल नेता गुरमीत ​िसंह सूरा का कहना है कि सिख गुरु साहिबान ने तो ‘‘अव्वल अल्लाह नूर उपाया’’ का सन्देश दिया इसलिए कोई भी सिख किसी दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल पर हमला करने की सोच भी नहीं सकता। गुरुद्वारा बंगला साहिब डिस्पैंसरी के चेयरमैन भुपिन्दर सिंह भुल्लर ने कहा स्वयं तिलक जनेउ ना पहनते हुए भी नौवे गुरु तेग बहादुर जी ने तिलक जनेउ की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुती दे दी। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने चारों बच्चे इस देश और धर्म पर कुर्बान कर दिये। तब से लेकर आज तक हजारों लाखों सिख अपनी शहादत दे चुके हैं। सिख समाज दिन में जब भी अरदास करता है अपने साथ साथ समूची कायनात के लिए दुआ मांगता है ऐसे में वह किसी भी धर्म के लोगों पर आक्रमण कैसे कर सकते हैं। विदेशों की धरती पर सिखी पहनावे में दिखने वाले चंद लोग इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं मगर वह यह भूल जाते हैं कि उनकी इस गल्ती का खामियाजा संसार भर में बसते सिख समाज को भुगतना पड़ता है। सिख समाज ने कोरोना काल में भी बढ़चढ़ कर मानवता की सेवा की, कहीं भी आपदा आए सिख समाज मददगार बनकर आगे आता है मगर ऐसे लोगों के कारण पूरे सिख समाज को शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है। हिन्दू-सिख दोनों भाईचारे के लोगों चाहिए कि आपसी रिश्तों को इतना मजबूत रखें कि कोई चाहकर भी उसमें दरार डालने का प्रयास ना कर सके।

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