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चांद पर 4जी नेटवर्क

विज्ञान को ज्ञान का हिस्सा जो चीजें हम पहले ही खोज चुके हैं और नए ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया दोनों के रूप में सोचा जा सकता है।

विज्ञान को ज्ञान का हिस्सा जो चीजें हम पहले ही खोज चुके हैं और नए ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया दोनों के रूप में सोचा जा सकता है। ज्ञान और प्रक्रिया एक-दूसरे पर​ निर्भर हैं। मनुष्य को सदैव ही प्राकृतिक रहस्य जानने की जिज्ञासा रही है। इसी जिज्ञासा का परिणाम है कि मनुष्य चांद पर जा पहुंचा। मनुष्य ने अंतरिक्ष में ऐसे-ऐसे प्रयोग किए हैं कि अंतरिक्ष का सारा रहस्य सामने आ गया। विज्ञान के बल पर मनुष्य ने चांद पर कालोनियां बनाने की कल्पना कर डाली। अंतरिक्ष भी अब धनी कम्पनियों का व्यापार बन गया है। कभी मनुष्य ने कल्पना भी नहीं की थी कि ​विज्ञान इतना प्रगति कर लेगा। अब जल्द ही चांद पर हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध होगी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा और नोकिया मिलकर चांद पर 4जी एलटीई कनेकिटविटी पहुंचाएंगे। इसके बाद उसे 5जी में अपग्रेड किया जाएगा। नासा की भविष्य के ​लिए योजना यह है कि इंसान चांद पर दोबारा लौटेंगे और मानव ​​बस्तियां बसाएंगे। नासा का टारगेट 2024 तक इंसानों को चांद पर ले जाने का है। चांद पर 4जी नेटवर्क स्थापित करने के​ लिए जिसे चुना गया है वह है नोकिया के चीफ स्ट्रेटजी और टैक्नोलोजी आफिसर निशांत बत्रा। 
इस प्रोजैक्ट की कमान एक भारतीय के हाथों में है, इस पर हम गर्व कर सकते हैं। निशांत बत्रा का जन्म दिल्ली के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। मध्य प्रदेश के इंदौर के देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से कम्प्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में साउदर्न मेटोडिस्ट यूनिवर्सिटी से कम्प्यूटर साइंस में मास्टर्स किया। निशांत बत्रा को टेलीकॉम का लम्बा अनभुव है। वह एक दशक से अधिक समय तक एरिक्सन में रहे और जनवरी 2020 में वह नोकिया से जुड़े।
भारत के इंजी​नियरिंग और आईटी पेशेवर दुनिया की सबसे बेहतर प्रतिभाओं में शामिल है और वे इस समय प्रौद्योगिकी के ​विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं और भविष्य में भी बड़ी भूमिका निभाने को तैयार हैं। अब भारत में भी अप्लाइड इनोवेशन में शानदार काम हो रहा है। भारतीय अंतरिक्ष एजैंसी इसरो भी मानव मिशन पर काम कर रही है। चांद पर अब तक केवल नासा ने ही मानव मिशन भेजे हैं। नील आर्मस्ट्रांग 1969 में चांद की धरती पर उतरने वाले पहले इंसान थे।
नासा 2024 तक चांद पर इंसानों को भेजने से पहले वहां कम्युनिकेशन का तंत्र स्थापित करना चाहता है। अब निशांत बत्रा के नेतृत्व में चांद पर लूनर नेटवर्क कुछ महीनों में हकीकत बन जाएगा। ​नोकिया का कहना है कि उसकी​ रिसर्च आर्मबेल लैब्स के इनोवेेशन्स को चन्द्रमा की सतह पर पहले अल्ट्रा कम्पैक्ट, लो पावर, स्पेस के लिहाज से सख्त एंड टू एंड एलटीआई साल्यूशन विकसित और चालू करने में इस्तेमाल किया जाएगा। नोकिया ने 14 कम्पनियों से समझौता किया है जो जरूरी उपकरण अपने लूनर लैंडर की मदद से चांद पर पहुंचाएंगी इससे चांद पर जाने वाले यात्रियों को सीधे कॉल करने की सुविधा होगी। यह नेटवर्क अंतरिक्ष यात्रियों को आवाज और वीडियो संचार सुुविधा उपलब्ध कराएगा। नेटवर्क को इस तरह से डिजाइन किया जाएगा जिससे बेहद खराब स्थिति में भी लूनर और लूनर लैंडिंग के लांच और स्पेस में आपरेशन को संचालित कर सकेंगे। चांद पर बिजली की कमी को पूरा करने के लिए भी उपकरण चांद पर भेजे जाएंगे। इस पूरे प्रोजैक्ट के ​लिए  नासा ने नोकिया को 14.1 मिलियन डॉलर का फंड दिया है। नासा यदि अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने के अपने लक्ष्य को पूरा करना चाहती है तो उसे तेजी से नई तकनीकों को विकसित करना होगा। चांद पर ऐसे पावर सिस्टम की जरूरत है जो चांद की सतह पर लम्बे समय तक रह सके और उसे चांद पर रहने की क्षमता भी विकसित करनी होगी। अगर सारी व्यवस्थाएं हो जाती हैं तो अंतरिक्ष यात्रियों को धरती पर कॉल करने में कोई मुश्किल नहीं होगी। निशांत बत्रा पूरी क्षमता के साथ इस प्रोजैक्ट में जुटे हुए हैं। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि इस नेटवर्क को कानूनी रूप से मंजूरी देने में कितना समय लगेगा लेकिन यह नेटवर्क काफी सुरक्षित है और यह आम पब्लिक के लिए नहीं है।
कुछ साल पहले अगर यह कहा जाता कि आप चांद पर पहुंच कर अपने स्मार्ट फोन पर क्या बात कर सकेंगे, साथ ही वीडियो कालिंग का लुत्फ उठा सकेंगे तो आप शायद ही इस पर विश्वास करते लेकिन अब यह जल्द ही सम्भव होने वाला है। चांद पर मौजूद 4जी नेटवर्क की मदद से बेस स्टेशन तक हाई डेेफिनेशन में भी वीडियो स्ट्रीम कर सकेंगे। पहले कुछ कम्पनियो ने चांद पर 5जी नेटवर्क की शुरूआत करने का प्रयास किया था लेकिन 5जी इंटरनैट सर्विस की कम स्टेबिलटी के कारण यह लूनर सर्फेस पर ठीक से काम नहीं कर पाया। नासा के इस प्रोजैक्ट से जुड़ी कम्पनियां और निशांत बत्रा बेहद उत्साहित हैं। इससे चांद की सतह पर मानव की स्थायी उपस्थिति की दिशा में मार्ग प्रशस्त करने में मदद मिलेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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