एनआईए-एटीएस की विशेष अदालत ने भोपाल-उज्जैन पसैंजर ट्रेन विस्फोट मामले में प्रतिबंधित संगठन आईएसआईएस के खुरासान माड्यूल से जुड़े सात आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई है। जबकि एक आतंकी को उम्र कैद की सजा सुनाई है। विशेष अदालत ने फांसी पाने वाले आतंकियों के अपराध को विरल से भी विरलतम करार दिया है। विशेष अदालत ने प्रस्तुत सबूतों और गवाहों के बयानों के आधार पर दोषियों को देश के खिलाफ युद्ध करने, आतंकी गतिविधियों के लिए धन इकट्ठा करने और देश के खिलाफ युद्ध की तैयारी करने और जहरीले वीडियो दिखाकर भारतीय युवकों को जेहाद के लिए प्रशिक्षण देने के आरोपों में यह सजा सुनाई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आईएसआईएस लगातार इंटरनेट पर आतंकवादी घटनाओं के वीडियो अपलोड कर भारत के मुस्लिम युवाओं को अपने संगठन से जोड़ने और देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिशों में जुटा हुआ है। इससे प्रभावित होकर मोहम्मद फैसल, दानिश अख्तर, गौस मोहम्मद खान, मोहम्मद अजहर, आतिफ मुज्जफर, मीर हुसैन और आसिफ इकबाल तथा आतिफ ईरानी ने 2017 में ट्रेन धमाके की साजिश रची थी।
भारत समेत दुनियाभर के आतंकवाद पीड़ित देशों की सबसे बड़ी चुनौती कट्टरवादी विचारधारा है, जो खुद को सर्वश्रेष्ठ मानती है और दूसरों को काफिर करार देती है। भारतीय मुस्लिमों की देशभक्ति पर कोई संदेह नहीं किया जाता। क्योंकि उदारवादी मुस्लिम नेताओं ने भारत में रहकर सर्वोच्च पदों पर आसीन होकर राष्ट्रवाद का परिचय दिया है। इसके बावजूद कुछ तत्व ऐसे हैं जो धर्मांधता के कारण कट्टरवादी विचारधारा को अपना लेते हैं और वह ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाते हैं जहां से निकलने का रास्ता या तो मौत होता है या फिर जेलों में तिल-तिल कर अपना जीवन गुजारना होता है। जेहाद के चक्र में फंसकर वे निर्दोषों का सिर कलम कर देते हैं। बम धमाकों में लोगों की जान लेते हैं और लड़कियों को अपनी यौन पिपासा का शिकार बनाते हैं। आईएसआईएस ने सुन्नी मुस्लिम कट्टरपंथियों के एक गुट के तौर पर ईराक में अमेरिकी सेना के खिलाफ शुरूआत की थी और उसके बाद यह दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकवादी संगठन बन गया। आईएसआईएस यानि इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड सीरिया की शुुुरूआत उस समय हुई जब ईराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता अमेरिका द्वारा ध्वस्त कर दी गई और इराक में छोटे-छोटे बागी गुटों के बीच लड़ाई छिड़ गई। जिनमें से एक गुट अबु बकर अल बगदादी का था। जिसने इराक में दुबारा खलीफा की खलीफत कायम करने की घोषणा की, जो दुनियाभर के मुस्लिमों का सर्वोच्च बादशाह हुआ करता था। सन् 2006 में बगदादी ने बड़े पैमाने पर ईराक के कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोगों के साथ ही सद्दाम हुसैन की सेना के जवानों को जोड़ लिया।
साल 2006 में हुई इस शुरूआत के बाद बगदादी के संगठन को इराक में थोड़ी सफलता भी मिली और कई इलाके उसके कब्जे में आ गए। बगदादी के आईएस को ज्यादा चर्चा दुश्मनों की हत्या करने के क्रूर तरीकों के कारण मिली, जिनमें विदेशी नागरिकों का कैमरे के सामने गला रेतकर हलाल करना भी शामिल था। साल 2011 के बाद आईएस ज्यादा शक्तिशाली दिखा जब अमेरिकी सेना इराक छोड़कर चली गई। स्थानीय सरकार कमजाेर थी और वह आईएस का सामना नहीं कर सकती थी। कई हजार लड़ाके तब तक आईएस में शामिल हो चुके थे। हालांकि इसके बाद भी ज्यादा सफलता नहीं मिलती देखकर बगदादी सीरिया चला गया। उसने अपने संगठन का नाम इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) कर दिया। यहां बगदादी के हाथ बड़े पैमाने पर वे खतरनाक हथियार और पैसे लगे जो अमेरिका ने सीरियाई सरकार के खिलाफ विद्रोही लड़ाकों के लिए भेजे थे। इससे उसका संगठन ज्यादा खतरनाक हो गया।
धीरे-धीरे आईएस ने अफगानिस्तान और कुछ अन्य देशों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली। पाकिस्तान और भारत में भी आईएसआईएस खुरासान ने पांव फैलाने शुरू किए। हालांकि भारत में अभी तक यह संगठन कोई बड़ी घटना नहीं कर पाया लेकिन भारतीय युवकों को कट्टरपंथी बनाने की चुनौती अभी तक कायम है। 2014 में बैंगलुरु में आईएसआईएस का ट्विटर हैंडलर मेहदी बिस्वास पकड़ा गया। जिसने खुलासा किया कि लगभग 100 भारतीय देश में आईएसआईएस के लिए युवाओं की भर्ती का काम कर रहे हैं। केरल से लगभग 22 युवा जिनमें कुछ युवतियां भी शामिल थीं, आईएसआईएस से ट्रेनिग लेने के लिए अफगानिस्तान पहुंच गई थीं। जिनमें से कुछ युवक वापिस भी लौट आए।
भारत में पहली बार आईएसआईएस ने हमला 2017 में किया। श्रीनगर के जाकूरा में पुलिस पार्टी पर किए गए हमले में एक सब इंस्पैक्टर की मौत हो गई थी। इसकी जिम्मेदारी संगठन से जुड़े स्थानीय सैल ने ली थी। इसके बाद घाटी में कई जगह आईएसआईएस के झंडे भी फहराए गए। भारत में आईएस का टारगेट गजबा-ए-हिन्द को अंजाम देना है। जिसके बाद यहां इस्लाम की सत्ता कायम हो जाएगी और शरीयत का कानून चलेगा। भारतीय मुस्लिम आईएस के खिलाफ हैं लेकिन कुछ युवा वर्ग इसकी ओर आकर्षित हो जाता है। भारतीय युवाओं को कट्टरपंथी इस्लाम से बचाने के लिए कड़ी सजा के माध्यम से संदेश देना जरूरी है। मुस्लिम समाज काे भी अपने बच्चों को गुमराह होने से बचाना चाहिए अन्यथा उन्हें ही इसका नुक्सान झेलना पड़ेगा।