एक ‘सेंगोल’ नेतागणों के लिए

एक ‘सेंगोल’ नेतागणों के लिए

अब यह शिद्दत से महसूस होता है कि एक ‘सेंगोल’ देश के राजनेताओं के लिए भी स्थापित होना चाहिए। लोकसभा के चुनाव तो हो चुके। इसी वर्ष देश के कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने हैं। हमारे परिवेश में चुनाव सिर्फ लोकतंत्र का पर्व नहीं होते। चुनाव ‘कीचड़-फैंक’ प्रतियोगिता से भी चलते हैं। अर्ध सत्य और असत्य की काली होली भी खुलेआम खेली जाती है। अधिकांश नेताओं को यह लगता है कि चुनावों के दिनों में जितना अधिक झूठ बोला जाएगा, जितनी अभद्र भाषा का प्रयोग होगा, उतना ही लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने का पुण्य मिलेगा।

ईमानदार एवं सत्यनिष्ठ इतिहासकारों ने अपने कलम एक तरफ सरका दिये हैं। इस विषय पर ‘माउस’ एवं कम्प्यूटर बंद हैं। इतिहासकार महसूस करते हैं कि इन दिनों के इतिहास को ईमानदारी से लिखा तो सांसों की डोरी पर संकट खड़ा हो सकता है। वैसे भी आज के राजनेताओं का चाल-चलन, भावी पीढि़यों को भी शर्मिंदगी और हताशा के सिवाय क्या दे पाएगा।संसदीय लोकतंत्र की मर्यादाओं का चीरहरण इससे ज्यादा क्या होगा कि नए सांसदों में एक ने अपनी शपथ को ‘जय भीम’, ‘जय मीम’, ‘जय तेलंगाना’, ‘जय िफलस्तीन’ के जयकारे के साथ पूरा किया तो एक ने ‘जय संविधान’ और कुछ ने ‘जय भीम’, ‘जय हिन्दू राष्ट्र’ के नारे के साथ। संसद में शपथ ग्रहण एक पवित्र एवं परम्परागत रस्म मानी जाती है। अब सदस्यगणों का एक वर्ग भी अराजक हो चला है। वह किसी पाकीज़गी, परंपरा या गरिमा को नहीं मानता।

‘सेंगोल’ तमिल संस्कृति का एक प्रतीक है। जिस दिन गत वर्ष यह ‘सेंगोल’ लोकसभा में स्थापित किया गया था उस दिन समाजवादी पार्टी व अन्य दलों के वे नेता भी सदन में मौजूद थे, जो आज इस ‘सेंगोल’ को हटाने की मांग उठा रहे हैं। संदेह तो यह भी होने लगा है कि आने वाले समय कभी इन नेताओं को सत्तासूत्र संभालने का मौका मिल गया तो ये लोग वाराणसी को फिर से बनारस या प्रयागराज को फिर से इलाहाबाद का नाम देने की मशक्कत शुरू कर देें। आएं थोड़ा ‘सेंगोल’ के बारे में शुरुआती जानकारी भी आपस में बांट लें। सेंगोल स्वर्ण परत वाला चांदी का एक राजदंड है जिसे 28 मई, 2023 को भारत के नए संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थापित किया। इसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है। नए राजा के राजतिलक के समय सेंगोल भेंट किया जाता था।

वर्ष 1947 में धार्मिक मठ- ‘अधीनम’ के प्रतिनिधि ने सेंगोल भारत गणराज्य के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था। लेकिन भारत में लोकतांत्रिक शासन होने के नाम पर इसे तब इलाहाबाद संग्रहालय में रख दिया और किसी सरकार ने इसका इस्तेमाल नहीं किया। सेंगोल मुख्यत: चांदी से बना है जिसके ऊपर सोने का पानी चढ़ा है।
‘सेंगोल’ तमिल शब्द ‘सेम्मई’ (नीतिपरायणता) व ‘कोल’ (छड़ी) से मिलकर बना है। ‘सेंगोल’ शब्द संस्कृत के ‘संकू’ (शंख) से भी आया हो सकता है। सनातन धर्म में शंख पवित्रता का प्रतीक है। तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित तमिल विश्वविद्यालय में पुरातत्व के प्रोफेसर एस. राजावेलु के अनुसार तमिल में सेंगोल का अर्थ ‘न्याय’ है। तमिल राजाओं पास ये सेंगोल हो था जिसे अच्छे शासन का प्रतीक माना जाता था। शिलप्पदिकारम् और मणिमेखलै, दो महाकाव्य हैं जिनमें सेंगोल के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।

सेंगोल की लम्बाई लगभग पांच फीट (1.5 मीटर) है इसका मुख्य हिस्सा चांदी से बना है। सेंगोल को बनाने में 800 ग्राम सोने का प्रयोग किया गया था। इसे जटिल डिजाइनों से सजाया गया है और शीर्ष पर नंदी की नक्काशी की गई है। नंदी हिंदू धर्म में एक पवित्र पशु और शिव का वाहन है। नंदी की प्रतिमा इसके शैव परंपरा से जुड़ाव दर्शाता है। हिंदू व शैव परंपरा में नंदी समर्पण का प्रतीक है। यह समर्पण राजा और प्रजा दोनों के राज्य के प्रति समर्पित होने का वचन है। दूसरा, शिव मंदिरों में नंदी हमेशा शिव के सामने स्थित मुद्रा में बैठे दिखते हैं। हिंदू मिथकों में ब्रह्मांड की परिकल्पना शिवलिंग से की जाती रही है। इस तरह नंदी की स्थिरता शासन के प्रति अडिग होने का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त नंदी के नीचे वाले भाग में देवी लक्ष्मी व उसके आसपास हरियाली के तौर पर फूल-पत्तियां, बेल-बूटे उकेरे गए हैं जो कि राज्य की संपन्नता को दर्शाती है।

प्राचीन काल में भारत में जब राजा का राज्याभिषेक होता था, तो विधिपूर्वक राज्याभिषेक हो जाने के बाद राजा राजदण्ड लेकर राजसिंहासन पर बैठता था। राजसिंहासन पर बैठने के बाद वह कहता था कि अब मैं राजा बन गया हूं, मैं अदण्ड्य हूं, मैं अदण्ड्य, अर्थात् मुझे कोई दण्ड नहीं दे सकता। पुरानी विधि ऐसी थी कि उनके पास एक संन्यासी खड़ा रहता था, लंगोटी पहने हुए। उसके हाथ में एक छोटा, पतला सा पलाश का डण्डा रहता था। वह उससे राजा पर तीन बार प्रहार करते हुए उसे कहता था कि राजा! यह ‘अदण्ड्योउस्मि अदण्ड्योउस्मि’ गलत है। ‘दण्ड्योउसि दण्ड्योउसि दण्ड्योउसि’ अर्थात् तुझे भी दण्डित किया जा सकता है।

चोल काल के दौरान ऐसे ही राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तांतरण को दर्शाने के लिए किया जाता था। उस समय पुराना राजा नए राजा को इसे सौंपता था। राजदंड सौंपने के दौरान 7वीं शताब्दी के तमिल संत संबंध स्वामी द्वारा रचित एक विशेष गीत का गायन भी किया जाता था। कुछ इतिहासकार मौर्य, गुप्त वंश और विजयनगर साम्राज्य में भी सेंगोल को प्रयोग किए जाने की बात कहते हैं।

इन दिनों हम एक अजीब घुटन भरे माहौल से गुज़र रहे हैं। कल्पना करें कि सिर्फ कुछ दिनों के लिए किसी भी कारण से इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया और यू-ट्यूब हड़ताल पर चले जाएं तो छपास रोग से पीड़ित हमारे ये नेता कहां जाएंगे?
इन दिनों विश्वभर में ‘यूएफओ’ दिवस मनाया जाता है। ‘यूएफओ-डे’ यानि कि अन्य ग्रहों से आने वाली उड़न तश्तरियों को समर्पित दिवस। चर्चा यह भी चली थी कि पिछले दिनों एक उड़नतश्तरी एक अन्य से किसी भारतीय महानगर में उतरी उसमें किसी दूसरे लोक के प्राणी भी थे। मगर उतरते ही जब उन्हें एहसास हुआ कि यहां तो अराजक एवं शालीनता विहीन नेताओं का शोर चल रहा है तो वे सब उसी उड़न तश्तरी में वापिस लौट गए।

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