आधार कार्ड को लेकर निरंतर चल रही बहस के बीच इस पर बवाल मच रहे हैं। आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर विवाद भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। देश की शीर्ष अदालत ने भी इसे माना है कि आधार कार्ड में कमियां हैं और आधार कार्ड के द्वारा नागरिकों की निजता के उल्लंघन का काफी खतरा रहता है क्योंकि व्यक्तिगत सूचनाएं आधार कार्ड में उपलब्ध होती हैं, अब तो इसे बैंकिंग, मोबाइल और अन्य सुविधाओं से जोड़ने की कवायद जारी है। आधार कार्ड बनाने से लेकर वितरण तक के लिए दुकानें खुली हुई हैं। अधिकृत के साथ-साथ अनधिकृत केन्द्र भी चल रहे हैं। आधार कार्ड में कोई गलती हो या कुछ फेरबदल कराना हो तो इन दुकानों पर जाइए, पैसे दीजिए आपका काम हो जाएगा। ऐसी दुकानें तो गलियों-मुहल्लों में आम देखी जा सकती हैं। आधार कार्ड को लेकर व्यापार हो रहा है।
आधार कार्ड का डेटा बेस लीक होने की खबर ने देशभर में खलबली मचा दी। ऐसा तब हुआ जब ट्रिब्यून की पत्रकार रचना खेड़ा ने अपनी खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की कि किस तरह महज 500 रुपए लेकर व्हाट्सएप के जरिए सर्विस देने वाले एक एजेंट ने 100 करोड़ लोगों की जानकारी उपलब्ध करा दी। उस एजेंट ने पत्रकार को लाग इन आईडी और पासवर्ड देकर पोर्टल के जरिए किसी की भी पर्सनल जानकारी देखने की सुविधा दी। पर्सनल जानकारी में नाम, पता, पोस्टल कोड, ई-मेल आदि देखा जा सकता है।
यूआईडीएआई ने दावा किया था कि आधार नेटवर्क आैर बायोमैट्रिक डाटा सुरक्षित है। यूआईडीएआई ने अपनी साख बचाने के लिए पत्रकार के खिलाफ ही मामला दर्ज करा दिया। इस पर यूआईडीएआई को चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ा और उसकी जगहंसाई भी हुई। सवाल तो उठने ही थे। डाटा का लीक होना एक गंभीर विषय है। यह लोगों की निजता का हनन तो है ही साथ ही यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। ऐसा होने से किसी की निजी जानकारी लीक होने से उस व्यक्ति के व्यापार में नुक्सान हो सकता है, यहां तक कि उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। बड़े पैमाने पर गरीबों ने जनधन खाते खुलवाए और उन्हें आधार से जोड़ा गया है। यह मामला देश के करोड़ों लोगों से जुड़ा है, इस मामले में सरकार का यह दायित्व बनता था कि इसकी कमियों को दूर किया जाए। यदि चंद पैसों की खातिर आधार कार्ड प्रिंट करने वाला साफ्टवेयर उपलब्ध है तो प्राधिकरण को ईमानदारी से जांच करनी चाहिए। कानून की धज्जियां उड़ाते हुए अगर कोई कार्ड बनाया जा रहा है तो फिर प्राधिकरण क्या कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि शहरों में बेघरों के आधार कार्ड कैसे बनाए जाते हैं और उनका ब्यौरा क्या दिया जाता है? जवाब में एएसजी ने जब यह कहा कि ‘‘संभवतः बेघरों को आधार कार्ड नहीं मिलेगा, इस पर कोर्ट ने पूछा- क्या आधार कार्ड से वंचित बेघरों का केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार के लिए कोई वजूद नहीं? क्या उन्हें शेल्टर होम्स और अन्य सरकारी सुविधाएं नहीं मिलेंगी? यह सवाल अपने आप में बहुत बड़ा है कि जिनके पास आधार नहीं होगा, उन्हें इंसान माना ही नहीं जाएगा? आखिर रैन बसेरों में रहने वाले लोग किस चौखट पर अपनी गुहार लगाएंगे। सवाल सांप के दंश से भी ज्यादा जहरीले हैं लेकिन िबखरे पड़े हैं, कोई ठोस जवाब सामने नहीं आ रहा। एक संस्था द्वारा 15 हजार लोगों पर किए गए सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष सामने आया है कि 52 फीसदी लोग सरकारी एजैंसियों के अपने आधार विवरण की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, 20 फीसदी लोग कुछ हद तक आश्वस्त हैं जबकि 23 फीसदी लोगों को पूरा विश्वास है।
सरकार का कर्त्तव्य है कि लोगों को संतुष्ट करे। यही कारण रहा कि बवाल मचने के बाद यूआईडीएआई ने आधार डाटा की सुरक्षा के लिहाज से वेरिफिकेशन के लिए वर्चुअल आईडी जारी करने का फैसला लिया है। किसी पूजा को वेरिफिकेशन के लिए अपना 12 अंक का आधार नम्बर नहीं बताना होगा बल्कि वह वर्चुअल आईडी बनाएगा। 16 अंकों के इस नम्बर का इस्तेमाल मोबाइल नम्बर वेरिफिकेशन सहित कई योजनाओं में किया जा सकेगा। दूसरी ओर सरकार केवाईसी के लिए आधार का इस्तेमाल भी सीमित करेगी। अभी कई एजैंसियों के पास आपकी डिटेल पहुंच जाती है। जब केवाईसी के लिए आधार की जरूरत कम होगी तो एजैंसियों की संख्या भी घट जाएगी। यह कदम उठाकर यूआईडीएआई ने सुरक्षा का नया कवर उपलब्ध कराने की पहल की है लेकिन यह भी एक तरह की स्वीकारोक्ति है कि डाटा सुरक्षित करने के लिए अभी और कदम उठाने होंगे। इस मामले में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। सरकार को अपनी नीतियों में सुधार करना चाहिए जो नागरिकों की निजता को नष्ट कर रही हैं।