जापान में फिर शिंजो आबे की सरकार बन गई है। आम चुनावों में शिंजाे आबे की पार्टी के लिबरल डैमोक्रेटिक पार्टी वाले गठबंधन ने सुपर मेजोरिटी यानी दो तिहाई बहुमत हासिल किया है। आवे ने विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और उत्तर कोरिया के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के लिए नया जनादेश पाने को तय समय से एक साल पहले ही चुनाव कराया। इस भारी जीत के साथ दिसम्बर-2012 में पदभार ग्रहण करने वाले आबे ने एलडीपी नेता के रूप में तीसरी बार तीन साल का कार्यकाल सुरक्षित कर लिया है। वह जापान के सबसे लम्बे समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री बन जाएंगे। इसका अर्थ यही है कि उनकी ‘एबनि आेमिक्स’वर्द्धि की रणनीति जो कि हाइपर-आसान मौद्रिक नीति है, इसकी संभावनाएं जारी रहेंगी। यह सही है कि जापान में गठबंधन सरकारों का दौर जारी है लेकिन शिंजो आबे को जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिलना अपने आप में एक मिसाल है। इसका अर्थ यही है कि जापानियों को उन पर पूर्ण विश्वास है। चुनाव से पहले विपक्षी नेता आैर टोक्यो की गवर्नर यूरिको कोइके ने बड़े दावे किए थे आैर कहा था कि मध्यावधि चुनाव कराने का आबे का दांव उलटा पड़ सकता है लेिकन कोइके की पार्टी महज 50 सीटों तक ही सिमट गई।
चुनाव के बाद राजनीतिक विश्लेषकों ने भी कहा था कि शिंजो आबे अब जापान के लोकप्रिय नेता नहीं रह गए। इसके बावजूद उन्हें दो तिहाई बहुमत मिलने से सभी दावे खोखले साबित हुए। इन चुनावों में दो मुद्दे बड़ी प्रमुखता से उभरे-उत्तर कोरिया से परमाणु हमले का खतरा आैर कमजोर होती अर्थव्यवस्था। मध्यावधि चुनावों की घोषणा के वक्त शिंजो आबे ने कहा था कि ‘राष्ट्रीय आपदाओं’ से निपटने के लिए उन्हें नए जनादेश की जरूरत है। जनादेश प्राप्त होने के बाद शिंजो आबे कड़े फैसले ले सकते हैं। आबे परमाणु युद्ध की विभीषिका झेल चुके जापान में लागू अति शांतिवादी संविधान को बदलना चाहते हैं, वह परमाणु कार्यक्रम शुरू करने के पक्षधर हैं। संविधान में संशोधन कर जापान के आत्मरक्षा बल को राष्ट्रीय सेना में बदलना चाहते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की हार के बाद बना जापानी संविधान अपनी सेना को अंतर्राष्ट्रीय मिशन में भाग लेने की अनुमति नहीं देता। सेना का इस्तेमाल सिर्फ आत्मरक्षा के लिए ही हो सकता है। अगर आबे संविधान बदलने में सफल हो जाते हैं तो जापान में बड़ा बदलाव आएगा और पूर्वी एशिया के समीकरण बदल जाएंगे। शिंजो आबे इस बात से चिन्तित हैं कि कभी चीन उन्हें धमकाता है तो कभी उत्तर कोरिया जैसा देश भी उन्हें बार-बार हमले की धमकी देता है।
दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत होने के बावजूद जापान अपनी रक्षा करने में सक्षम नहीं है लेकिन संविधान में संशोधन जटिल मुद्दा है। इस मुद्दे पर जनता ठीक उसी तरह बंटी हुई है जैसे ब्रेग्जिट पर ब्रिटेन और प्रवासियों और गर्भपात पर अमेरिका। संविधान संशोधन के लिए भी उन्हें जनमत संग्रह का सामना करना पड़ेगा। भगवान बुद्ध में आस्था रखने वाले लोगों में युद्ध का मिजाज ही नहीं है। जापानी शांतिप्रिय हैं और उन्होंने आर्थिक विकास को ही हमेशा अपना ध्येय माना। जहां तक उत्तर कोरिया का संबंध है, चुनाव जीतने के तुरंत बाद शिंजो आबे ने उत्तर कोरिया से सख्ती से निपटने का ऐलान कर दिया है। जापान के कड़े रुख से अमेरिका-जापान संबंध और मजबूत होंगे, जिसमें रक्षा सहयोग भी शामिल है। शिंजो आबे का फिर से प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए सुखद खबर है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत और जापान काफी नजदीक आए हैं और अब दोनों कई आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर सहयोग की योजना बना रहे हैं। जापानी कंपनियों की वैसे तो पूरी दुनिया में धाक है, अब वह भारत में भी कई परियोजनाएं चला रही हैं। शिंंजो आबे और प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत कैमिस्ट्री भी काफी अच्छी है।
भारत के लिए जापान का सहयोग काफी अहमियत रखता है। अब जबकि अमेरिका कई मुद्दों पर वैश्विक नेता की भूमिका से पीछे हट रहा है और चीन नए वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है तो एशिया में चीन का दबदबा बढ़ रहा है। चीन का दबदबा भारत और जापान के लिए अच्छा नहीं है। दोनों ही देश हर कदम के लिए अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकते। हिन्द महासागर में चीन की सेना की बढ़ती मौजूदगी आैर उसका वन बैल्ट वन रोड प्रोजैक्ट भी बड़ी चुनौती है। ओबीओआर को चुनौती देने के लिए भारत-जापान एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर की योजना बना चुके हैं। भारत और जापान मिलकर एशिया प्रशांत क्षेत्र और हिन्द महासागर में चीन का मुकाबला कर सकते हैं। आबे की जीत भारत के लिए बहुत ही सकारात्मक है। इससे प्रधानमंत्री मोदी की एक्ट ईस्ट नीति को बल मिलेगा। आबे की हैट्रिक भारत के लिए शुभ है।