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एक्ट ऑफ गॉड नहीं हैं हादसे

इंदौर में रामनवमी उत्सव पर बैलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में हुए हादसे में 36 लोगों की मौत के बाद उनके परिवार मातम में डूबे हुए हैं

इंदौर में रामनवमी उत्सव पर बैलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में हुए हादसे में 36 लोगों की मौत के बाद उनके परिवार  मातम में डूबे हुए हैं और लोग इन लोगों की मौत को भगवान की मर्जी कहकर दुख बांटने का प्रयास कर रहे हैं। धार्मिक उत्सवों पर कभी भगदड़ मचने से लोगों की मौत हो जाती है तो सरकारें मृतकों के परिवारों काे मुआवजे की घोषणा करती है। जांच के आदेश दिए जाते हैं। कुछ दिन बाद हादसों को भुला दिया जाता है और नए हादसे का इंतजार किया जाता है। हादसों को अधिकांश लोग एक्ट ऑफ गॉड मान लेते हैं और कहते हैं कि जीवन और मरण इंसान के हाथ में नहीं है, जिसकी जितनी सांसें लिखी हुई हैं उतना ही जीवन होता है। भारत धर्म परायण लोगों का देश है जहां मोक्ष की कामना में लोग तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं। जब कुप्रबंधन की वजह से या अन्य कारणों से लोगों की मौतें हो जाती हैं तो इसे भगवान की मर्जी करार दे दिया जाता है। ऐसे हादसे एक्ट ऑफ गॉड नहीं हो सकते। यह एक्ट ऑफ मैन होते हैं। हादसे मानव निर्मित हैं। अब जो तथ्य सामने आ रहे हैं वह यह हैं कि सदियों पुरानी किसी बावड़ी पर छत डाल कर मंदिर बना दिया गया था। मंदिर बनने के बाद अवैध अतिक्रमण होता गया। इसी वर्ष जनवरी में ही प्रशासन ने अवैध अतिक्रमण को 7 दिनाें में हटाने का निर्देश दिया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह इलाका इंदौर नगर निगम के तहत आता है। 10 साल पहले नगर निगम के उद्यान में ही बावड़ी के ऊपर पत्थर की सिलियां डालकर मंदिर का विस्तार किया गया था। मंदिर का निर्माण ही अवैध था।भारत में भगदड़ की 80 प्रतिशत घटनाएं धार्मिक स्थलों और धार्मिक उत्सवों पर ही होती हैं। हमने आज तक भीड़ प्रबंधन की कला नहीं सीखी। सिस्टम की लापरवाही और भ्रष्ट तंत्र के चलते लोग अकस्मात मौतों का शिकार हो रहे हैं। लोग उदाहरण देते हैं कि किस तरह सड़कों के किनारे अवैध रूप से पूजा स्थल और इबादत स्थल बन चुके हैं और धर्म के नाम पर गोरख धंधा चल रहा है। सार्वजनिक स्थानों पर हुए हर तरह के अतिक्रमण रोकने के लिए 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अगर शहरों के विकास में और सड़कों के किनारे कोई भी अतिक्रमण बाधा डालता है तो उसे तुरन्त हटाया जाए। इसमें कोई धार्मिक स्थल भी आता है तो उसे विस्थापित कर विकास की राह खोली जाए। इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक स्थलों के निर्माण को अवैध करार दिया था। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कई जगह धार्मिक स्थल हटाने की कार्रवाई भी की गई है। पिछले महीने 14 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर से एक मस्जिद को हटाने का निर्देश भी दिया है। शीर्ष अदालत ने मस्जिद हटाए जाने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ता को बताया कि मस्जिद एक खत्म हो चुके पट्टे पर ली गई भूमि पर है और वे अधिकार के रूप में इसे कायम रखने का दावा नहीं कर सकते। 
यद्यपि इंदौर मंदिर हादसे को लेकर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारे देश में धर्म स्थान सुरक्षित हैं। क्या सभी धार्मिक स्थलों का सुरक्षा ऑडिट नहीं किया जाना चाहिए ताकि ऐसे हादसों को रोका जा सके। पहले तो धर्म स्थलों का निर्माण अवैध रूप से होना ही नहीं चाहिए। जब धर्म स्थल बन जाते हैं तो प्रशासन के हाथ-पांव बंधे हुए दिखाई देते हैं। अगर स्थानीय निकाय एक्शन लें तो लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती हैं। कभी-कभी लोग हिंसक आंदोलन भी करने लग जाते हैं। हद तो इस बात की है कि बावड़ी की छत पर बैठे जो लोग कन्या पूजन कर रहे थे उन्हें इस बात का अहसास ही नहीं था कि इतना बड़ा हादसा हो सकता है।  भारत में धर्म स्थलों की समस्या बहुत गम्भीर है, क्योंकि वह योजनाबद्ध तरीके से बनाए ही नहीं गए। न तो वहां कर्मकांडों के लिए पर्याप्त सुविधाएं होती हैं और न ही सुरक्षा का कोई माहौल होता है। मंदिरों को वास्तुकला के हिसाब से और धार्मिक महत्व के हिसाब से बनाया जाता था। मूर्तियों की प्रतिष्ठापना भी धार्मिक परम्पराओं के अनुरूप की जाती थी लेकिन आज सरकारी भूमि पर कब्जा कर कहीं भी पहले तस्वीरें रखी जाती हैं, छोटा सा मंदिर बना दिया जाता है और फिर वह धीरे-धीरे विस्तार करता रहता है आैर आस्थावान लोगों की भीड़ इकट्ठी होनी शुरू हो जाती है। हादसों को रोकने के लिए धार्मिक स्थलों का सुरक्षा ऑडिट होना बहुत जरूरी है ताकि लोगों को मौत से बचाया जा सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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