कुछ दिनों पहले की बात है तेलंगाना में रहने वाले एक परिवार के तीन सदस्यों ने आत्महत्या कर ली। वजह थी-ऑनलाइन जुआ। दरअसल तेलंगाना के निजामाबाद जिले के 22 वर्षीय युवा हरीश को ऑनलाइन गेम ही नहीं उस बहाने ऑनलाइन जुआ खेलने की लत लग गई थी और उस पर 30 लाख का कर्ज हो गया था। कर्ज से परेशान होकर हरीश और उसके माता-पिता ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। ऑनलाइन जुए की लत से बर्बाद होने वाला हरीश अकेला नहीं है। बल्कि आए दिन हमें ऐसी घटनाएं देखने-सुनने को मिलती हैं कि ऑनलाइन जुए के आदी व्यक्ति ने किसी के घर से पैसे चुरा लिए, किसी की हत्या कर दी या खुद मौत को गले लगा लिया। अकेले तमिलनाडु में पिछले तीन वर्षों में 40 लोग ऑनलाइन जुए के चक्कर में आत्महत्या तक कर चुके हैं। दिन-पर-दिन ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन जुआ खेलने वालों की संख्या फिर भी कम नहीं हो रही।
दरअसल कई युवा तो बिना कुछ किए-धरे, दिन-रात अमीर बनने के ख्वाब देखते रहते हैं। उनके इन सपनों को पंख लगाते हैं ऑनलाइन जुए के वे लुभावने विज्ञापन, जिनमें बड़े-बड़े खिलाड़ी व फिल्म अभिनेता लोगों को ऑनलाइन गेम या सट्टा खेलने को प्रेरित करते हैं। विज्ञापनों में किए गए दावों की सत्यता का कोई प्रमाण नहीं होता। बस विज्ञापन के नीचे एक चेतावनी कि ‘इसको खेलने में जोखिम है, अतः सावधानी से खेलें’ लिखकर विज्ञापन कंपनियां अपने कर्त्तव्य की पूर्ति कर लेती हैं।
लाटरी या जुए के दुष्परिणामों और इसकी लत से बर्बाद होने वाले अनेक परिवारों को मैंने बहुत करीब से देखा है और समझा है। आज से करीब 30 वर्ष पहले दिल्ली की विभिन्न झुग्गी बस्तियों में मैंने लाटरी नामक जुए के दुष्प्रभाव देखे हैं। इन बस्तियों में ऐसा कोई नहीं था जिसने कहा हो कि लॉटरी ने उसकी माली हालत में सुधार किया हो। सब ने ही घर-बार लुटने का रोना रोया। कुछ ने तो बर्बाद होकर अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर ली। उन लोगों की दुर्दशा देखकर मेरे आंसू निकल आए। मैं बड़ी मुश्किल से ख़ुद को ज़्यादा भावुक होने से रोक पाया।
इसके बाद मैंने लाटरी नामक जुए की बुराई को दूर करने का संकल्प ले लिया। उस समय मैंने लॉटरी के खिलाफ पूरे देश में घूमकर-घूमकर माहौल बनाया और इसके बारे में हर जरूरी जानकारी जुटाई। मैंने विभिन्न दलों के 124 सांसदों का समर्थन लेकर संसद के दोनों सदनों में लॉटरी (रेग्युलेटरी) बिल,1998 लाने में सफलता हासिल की। आखिरकार हम देशभर में एक अंकीय लॉटरी पर प्रतिबंध लगाने में सफल रहे। अब वर्षों बाद फिर लाटरी पैर पसार रही है, ऑनलाइन सट्टे या गेमिंग एप के रूप में। जिस बुराई को जन सहयोग से हमने मिटाने का प्रयास किया, वह अब फिर नए और आधुनिक रूप में लोगों को बर्बाद कर रही है, यह चिंताजनक है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ऑनलाइन गेमिंग कम्युनिटी का दूसरा सबसे बड़ा देश हो गया है। पहले नंबर पर चीन है। भारत में 42 करोड़ लोग ऑनलाइन गेम के चक्कर में पड़े हैं। ऑनलाइन गेमिंग सैक्टर 30 प्रतिशत वार्षिक की तेज गति से आगे बढ़ रहा है। यह स्थिति तब है जब भारत में गेमिंग पर 28 प्रतिशत का जीएसटी लगता है। फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में फैंटेसी स्पोर्ट्स खलेने वालों की गिनती 20 लाख थी। 2022 में यह संख्या 22 करोड़ पहुंच गयी। एक अनुमान के अनुसार 2027 तक यह संख्या 50 करोड़ हो जायेगी।
इस सैक्टर के फलने-फूलने का एक कारण इस बारे में कोई स्पष्ट कानून का न होना भी है। साल 1867 का पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट कहता है कि सार्वजनिक स्थानों पर ऑनलाइन गेम प्रतिबंधित है। हालांकि भारत में ही कुछ राज्य हैं जहां ऑनलाइन गेमिंग अपराध नहीं है। सिक्किम गोवा और दमन जैसे स्टेट्स में इसे कानूनी मान्यता है क्योंकि संविधान ये कहता है कि गेमिंग कई मामलों में राज्य का विषय है।
इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के कुछ देशों में सट्टेबाजी लीगल है। भारत में भी कई बार इसे लीगल करने की बात उठी है। साल 1966 में सुप्रीम कोर्ट ने रमी और घुड़दौड़ में भी सट्टेबाजी को लीगल करार दिया लेकिन क्रिकेट में सट्टेबाजी गैर-कानूनी है।
साल 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में ऑनलाइन गेमिंग रेगुलेशन बिल पेश किया, जिसमें फेंटेसी स्पोर्ट्स, ऑनलाइन गेम्स, आदि को रेगुलेट करने की बात की। हालांकि यह बिल अभी लंबित है।
यह विचारणीय प्रश्न है जब अधिकांश लोग ऑनलाइन जुए के विरोध में हैं तो भी ये क्यूं फलफूल रहा है। मेरा मानना है कि ऑनलाइन गेमिंग और जुए के लिए अस्पष्ट कानून और इनके एप की आसान उपलब्धता इसके प्रसार के मुख्य कारण हैं। मोबाइल में मात्र एक क्लिक पर ही अपार धनराशि कमाने का सपना युवाओं को इसका दीवाना बना रहा है लेकिन स्वप्नलोक से उलट अधिकांश लोग इसके चक्कर में पड़कर सब कुछ गंवा रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी जुए के दुष्परिणामों से वाकिफ थे। इसलिए 26 मई 1921 को मुंबई में उन्होंने कहा था, ‘‘घुड़दौड़ों में दांव लगाना और सट्टा खेलना भी शराबखोरी और वेश्यागमन जैसा ही बुरा काम है। इसके लिए एक प्रबल आंदोलन की जरूरत है”। गांधीजी की चिंताओं और ऑनलाइन गेमिंग के खतरों को समझते हुए हमें ऑनलाइन जुए पर भी पारंपरिक जुए की तरह रोक लगवाने का प्रयास करना चाहिए। इस लत पर अंकुश लगाना सरकार ही नहीं हम सब का कर्त्तव्य है ताकि भारत की युवा पीढ़ी को बर्बादी के रास्ते पर जाने से रोका जा जा सके।