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मुहाने पर अफगानिस्तान !

अब इसमें ज्यादा समय की बात नहीं है कि अफगानिस्तान गृह युद्ध की चपेट में आ जाये क्योंकि जिस तरह इस देश में पाकिस्तान अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है

अब इसमें ज्यादा समय की बात नहीं है कि अफगानिस्तान गृह युद्ध की चपेट में आ जाये क्योंकि जिस तरह इस देश में पाकिस्तान अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है उससे अफगानी राष्ट्रवादी शक्तियां खफा होकर सड़कों पर उतर रही हैं और पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन करके नारेबाजी कर रही हैं जबकि तालिबान धीरे-धीरे अपने पुराने रूप में आ कर फिर से अपनी पुरानी छवि के अनुसार जुल्मो-गारत पर उतरते से नजर आ रहे हैं। मगर इस बार फर्क यह है कि तालिबानियों को इस मुल्क की बागडोर खुद अमेरिका सौंप कर गया है जबकि पिछली बार 2001 में वह उनसे लड़ने अफगानिस्तान की धरती पर आया था। इससे जाहिर तौर पर तालिबानियों का मनोबल बहुत ऊंचा है और वे इस मुल्क में अपनी सरकार बनाने का समीकरण बैठाने में लगे हुए हैं। 
 यह भी हकीकत है कि पिछली बार जहां अमेरिका ने तालिबानों से लड़ने के लिए आतंकवाद विरोध के नाम पर पाकिस्तान को अपना साथी बनाया था तो वहीं इस बार उसने तालिबानों को सत्ता सौंपने की कार्यवाही में पाकिस्तान को अपना साथी बना कर पिछले दरवाजे से इस्लामाबाद के दखल की खिड़की खोलने का काम किया है। मगर पाकिस्तान स्वयं तालिबानों समेत आतंकवादी तंजीमों की पनाह गाह बना रहा है और कई आतंवादी संगठन उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई व फौज ने ही खड़े किये हैं अतः पाकिस्तान की कोशिश है कि अफगानिस्तान में तालिबानों की जो भी सरकार बने उसमें परोक्ष रूप से उसका दखल ‘हक्कानी तालिबानी गुट’ की मार्फत हो। मगर अफगानिस्तान के पंजशीर प्रान्त में पाकिस्तान ने अपनी वायुसेना का सीधा उपयोग छद्म रूप में करके साफ कर दिया है कि वह इस देश की अन्दरूनी राजनीति में अपने साये में ढके हुए किरदार से पर्दा उतारने में नहीं हिचकेगा। यह बहुत खतरनाक खेल पाकिस्तान खेल रहा है जिसके अन्तर्राष्ट्रीय परिणाम अन्ततः उसे भुगतने पड़ेंगे मगर फिलहाल वह सोच रहा है कि एेसा करके वह अफगानिस्तान में भी अपनी ‘छाया सरकार’ गठित कर सकता है और तालिबानी सरकार  को अंतर्राष्ट्रीय वैधता प्रदान करने में मदद कर सकता है। 
जिस ‘पंजशीर’ प्रान्त पर अपना कब्जा करने का दावा तालिबान कर रहे हैं वहां पर राष्ट्रभक्त अहमद मसूद के नेतृत्व में लड़ाई अभी भी जमीन पर जारी है, बेशक तालिबानों ने इसके राज्यपाल कार्यालय पर अपना झंडा फहरा दिया है। ऐसा करने के लिए पाकिस्तान की हवाई सेना की मदद से तालिबान ने पंजशीर में हवाई गोले दाग कर अहमद मसूद के लड़ाकों को शिकस्त देने की जरूर कोशिश की मगर इसके समानान्तर यह भी खबर मिली है कि अफगानी राष्ट्रीय सेना के हवाई लड़ाकों ने तालिबानों पर गोले बरसाने शुरू कर दिये हैं। ये हवाई सैनिक मय लड़ाकू विमानों के ताजिकिस्तान में छिप गये थे। इससे यही अन्देशा बढ़ रहा है कि अफगानिस्तान गृह युद्ध की लपटों में लिपट सकता है। क्योंकि पंजशीर वह प्रान्त है जहां 80 के दशक में रूसी सेना ने नौ बार हमला किया था मगर उसे हासिल कुछ नहीं हो पाया था और 1996 में तालिबानी भी इस पर नियन्त्रण नहीं कर सके थे। अतः यदि इस बार पाकिस्तान की मदद से तालिबान पंजशीर पर फतह पाने में कामयाब होते हैं तो पूरे अफगानिस्तान में तालिबान विरोधी भावनाएं भड़कने में देर नहीं लगेगी क्योंकि यह कार्य पाकिस्तान की मदद से हुआ है।
 काबुल में इसकी शुरूआत भी हो गई है और वहां पाक विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गये हैं। सड़कों पर लोग अपना राष्ट्रीय ध्वज लिये पाकिस्तान विरोधी नारे लगा रहे हैं और तालिबानी सिपाही उन पर जुल्म ढहा रहे हैं और गोलियां तक चला रहे हैं। दूसरी तरफ अफगानी महिलाएं भी अपने हक के लिए काबुल की सड़कों पर उतर रही हैं तथा तालिबानी सरकार बनने से पहले ही चेतावनी दे रही हैं कि उन्हें 1996 से 2001 की तर्ज पर चला तालिबानी निजाम कबूल नहीं होगा। हकीकत यह है कि काबुल में अभी तक कोई सरकार नहीं है और हर तरफ अव्यवस्था और अऱाजकता का माहौल है जिसका फायदा पाकिस्तान हर सूरत में उठाने की कोशिश कर रहा है और तालिबानों के नाम पर अपनी हुक्मरानी थोपना चाह रहा है। बेशक फिलहाल रूस व चीन का उसे समर्थन प्राप्त है और अफगानिस्तान के तालिबानों के प्रति भी इन दोनों देशों का रवैया दोस्ताना बना हुआ है। मगर इसके साथ यह भी हकीकत है कि खुद तालिबानों में ही कई गुट हैं जिनमें हुकूमत में आने के लिए आपस में ही कलह मची हुई है। 
रूस व चीन का मुहाइदा मुल्ला बरादर के गुट के तालिबानों से हुआ लगता है जबकि हक्कानी व दूसरा गुट ज्यादा जेहादी तेवरों का समझा जाता है लेकिन लगता है कि हुकूमत बनने से पहले ही तालिबानी अफगानिस्तान में इस्लामी कानून लागू करने की मुहीम पर निकल पड़े हैं जिसकी वजह से औरतों पर जगह- जगह जुस्म ठहाये जा रहे हैं और देश के सहशिक्षा विद्यालयों में पुरुष व महिला विद्यार्थियों को अलग-अलग किया जा रहा है लेकिन इन सबसे ऊपर पूरा अफगानिस्तान सूखे की चपेट में आ चुका है जिसकी वजह से इस देश में अनाज की व्यापक कमी महसूस की जा रही है। इसके साथ ही  इसके सभी आर्थिक स्रोत सूख चुके हैं। तिजारत के नाम पर इसके बाजार चौपट पड़े हुए हैं । विदेशों से कारोबार बन्द है। कोई भी विदेशी कम्पनी या फर्म अफगानी कम्पनी या फर्म पर यकीन नहीं कर रही है। सरकारी कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे हैं। हालत यह है कि यदि कोई महिला सरकारी कर्मचारी काम पर जाने की हिम्मत भी जुटाती है तो उसे जख्मी करके वापस भेज दिया जाता है। स्कूल और विश्वविद्यालय बन्द से ही पड़े हुए हैं। निष्कर्ष यह है कि अफगानिस्तान को पाकिस्तान ने गृहयुद्ध के मुहाने पर लाकर बैठा दिया है। सितम देखिये कि पाक खुफिया एजेंसी के प्रमुख फैज हमीद किस रसाई के साथ काबुल में जमे हुए हैं। 
‘‘तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था 
औरों पे है वो जुल्म जो मुझ पर न हुआ था।’’ 

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