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अफगानिस्तान : शांति की तलाश

7वीं सदी तक अफगानिस्तान अखंड भारत का हिस्सा था। अफगान पहले हिन्दू राष्ट्र था फिर यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह इस्लामिक राष्ट्र है।

7वीं सदी तक अफगानिस्तान अखंड भारत का हिस्सा था। अफगान पहले हिन्दू राष्ट्र था फिर यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह इस्लामिक राष्ट्र है। 26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर उपगण स्थान अफगानिस्तान उसे सौंप दिया था। यहां हिन्दू कुश नाम की पहाड़ी है जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन जाया जा सकता है। ईसा के 700 वर्ष पूर्व तक यह स्थान आर्यों का था। उसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत और अन्य ग्रन्थों में मिलता है। अफगानिस्तान बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विरासतों को सहेजे हुये है। इस्लाम के आगमन के बाद एक नई शुरूआत हुई। बुद्ध के शांति के मार्ग को छोड़कर यहां के लोग क्रांति के मार्ग पर चल पड़े। 
शीत युद्ध के दौरान अफगानिस्तान को तहस-नहस कर दिया गया। यहां की संस्कृति और प्राचीन धर्म के चिन्ह मिटा दिये गये। अफगानिस्तान के इतिहास के हर पन्ने पर युद्ध और गृहयुद्ध की त्रासदी है। सभ्यता और संस्कृति की विरासत तबाही में बदल चुकी है। सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। सोवियत सेना ने अपनी जबरदस्त सैन्य क्षमता और आधुनिक हथियारों के दम पर कई इलाकों पर कब्जा कर लिया। सोवियत संघ की इस बड़ी सफलता को कुचलने के लिये उसके पुराने दुश्मन अमेरिका ने पाकिस्तान का सहारा लिया। पाकिस्तान के पास इतनी क्षमता नहीं थी कि वह अफगानिस्तान में सोवियत सेना से टक्कर ले सके। 
इसलिये उसने तालिबान नामक संगठन को खड़ा किया जिसमें पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को जेहादी शिक्षा देकर भर्ती किया। अमेरिकी एजैंसी सीआईए ने तालिबान को पैसा और हथियार उपलब्ध कराये। सऊदी अरब और ईराक तथा अन्य कई मुस्लिम देशों ने भी तालिबान की मदद की। सोवियत हमले को अफगानिस्तान पर हमले की जगह इस्लाम पर हमले का माहौल बनाया गया। कई मुस्लिम देशों के लोग सोवियत सेनाओं से लोहा लेने अफगानिस्तान पहुंच गये। अंतत: सोवियत सेनाओं को अफगानिस्तान से लौटना पड़ा। फिर तालिबान प्रमुख मुल्ला उमर और अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन का उदय हुआ। तालिबान देश की सत्ता अपने हाथों में ले ली और शरीयत कानून लागू कर दिया। 
2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हुये आतंकी हमले के बाद स्थितियां बहुत खतरनाक हो गई तब अफगानिस्तान के तालिबान शासन का दमन करने के लिये अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। अमेरिका ने तोरा वोरा की पहाडि़यों की खाक छानी, बम बरसाये लेकिन ओसामा बिन लादेन नहीं मिला। पाकिस्तान में घुसे ओसामा बिन लादेन को अंततः मार गिराया गया। तालिबान को सत्ता से हटाकर अमेरिका ने चुनाव कराये और अपनी पिट्ठू सरकार बना ली। तब से लेकर आज तक अफगानिस्तान शांति की तलाश कर रहा है। तालिबान और अलकायदा से जुड़े संगठन सक्रिय हैं और बम धमाकों से अफगानिस्तान जर्जर हो चुका है। भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में जुटा है। अमेरिका अब अपनी सेनाओं की पूरी तरह वापिसी चाहता है। 
इसलिये अमेरिका ने तालिबान से कई दौर की वार्ता की। वार्ता का मसौदा तैयार भी हुआ लेकिन तालिबान ने हिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा और लगातार हमले करता रहा। आखिरकार ट्रंप ने अब वार्ता करने से साफ मना कर दिया है। कतर की राजधानी दोहा में तीन अगस्त से 12 अगस्त के बीच दोनों पक्षों में बातचीत असफल रहने के बाद नौवें दौर की बातचीत हुई। अमेरिका चाहता है कि उसकी सेना वहां से हट जाये और तालिबान वादा करे कि देश को आतंकी हमले का आधार नहीं बनने दिया जायेगा। तालिबान सत्ता में भागीदारी के लिये बात करे और युद्ध विराम की घोषणा करें। अमेरिका के विशेष दूत जालमे, खलील जाद और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच नौवें दौर की बातचीत के बाद शांति समझौते पर मुहर तो लगी लेकिन इस बीच हमले की वजह से अमेरिका ने वार्ता तोड़ दी। 
इस हमले में अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई थी। भारत पूरी स्थिति पर नजर रख रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार कहा है कि अफगानिस्तान की सुरक्षा की जिम्मेदारी में भारत भूमिका निभाये लेकिन भारत अफगानिस्तान में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका देखना नहीं चाहता। भारत ने अपनी चिंताओं से सुरक्षा परिषद को अवगत करा दिया है। भारत तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत को जल्दबाजी में किया गया प्रयास बता रहा है क्योंकि बातचीत में अफगानिस्तान के हितों की बहुत ज्यादा अनदेखी की गई है। 
भारत चाहता है कि अफगानिस्तान में आतंकी नेटवर्क को मदद देने वाले पाकिस्तान पर भी नकेल कसी जाये। पाकिस्तान पर शिकंजा कसे बिना अफगानिस्तान में शांति संभव नहीं। अफगानिस्तान में गृह युद्ध खत्म होना ही चाहिये। फिलहाल कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही। अफगानिस्तान का भविष्य क्या होगा यह तो वक्त ही बतायेगा। जिस तालिबान को अमेरिका ने खड़ा किया था वही अब उसके लिये सिरदर्द बना हुआ है।

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