चुनावों की गहमागहमी के बीच किसी का ज्यादा ध्यान केरल और तमिलनाडु में आए चक्रवाती तूफान ओखी से हुई तबाही की तरफ नहीं गया। चुनाव के दौरान आए इस तूफान के गुजरात पहुंचने से पहले कमजोर पड़ने से गुजरात को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा हालांकि इसके प्रभाव से हुई वर्षा के कारण चुनाव प्रचार जरूर प्रभावित हुआ था। ओखी से तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में बहुत ज्यादा नुक्सान हुआ। केरल में सैकड़ों लोगों की जिन्दगी तबाह हो गई है। अनेक लोगों की जान गई है। अनेक मछुआरे आज भी लापता हैं हालांकि 475 मछुआरे बचाए गए हैं। नौसेना, वायुसेना और तटरक्षक बल के जवान मछुआरों की तलाश में मदद कर रहे हैं लेकिन तटीय गांवों के लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है क्योंकि ओखी तूफान से पहले प्रशासन कोई पुख्ता इंतजाम करने में विफल रहा। अब राहत शिविरों में व्यवस्था खराब है, यहां तक कि बुनियादी चीजें तक उपलब्ध नहीं।
मछुआरों के समुदाय ने खुद की पहल से बचाव अभियान शुरू करने का फैसला किया। लापता मछुआरों का पता लगाने के लिए उन्होंने नौकाओं से समुद्र का रुख किया हुआ है। तूफान ने लक्षद्वीप में भी भारी तबाही मचाई। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने तिरुअनंतपुरम जाकर तूफान पीड़ितों से मुलाकात की थी तब पीड़ितों ने उन्हें बताया था कि इस प्रकार की त्रासदियों को रोकने के लिए बेहतर चेतावनी प्रणाली की जरूरत है। राहुल गांधी ने यह भी कहा था कि अब समय आ गया है कि केन्द्र में मछुआरों के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया जाए। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कन्याकुमारी जाकर बचाव अभियान का जायजा लिया था।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने केन्द्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंस कन्ननथानम से ओखी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की अपील की थी। बचाव अभियान के संचालन के तरीके को लेकर लोगों के निशाने पर आए मुख्यमंत्री विजयन ने कहा है कि चक्रवाती तूफान ओखी को लेकर पूर्व में कोई सूचना नहीं मिली थी। अगर एेसा है तो स्पष्ट है कि भारत आज भी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में अक्षम है आैर आपदा प्रबंधन के नाम पर राज्य सरकारों के पास अनुभव की कमी है। अगर प्राकृतिक आपदाओं में राज्याें में जान आैर माल की बहुत ज्यादा क्षति हुई है तो फिर इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने में किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। शायद केन्द्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंस की नज़र में नुक्सान इतना ज्यादा नहीं हुआ जिसके चलते इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए।
केरल सरकार के मुताबिक तूफान से हुए नुक्सान की भरपाई के लिए केन्द्र से 1,843 करोड़ की आर्थिक मदद चाहिए। तमिलनाडु में द्रमुक नेता स्टािलन ने राज्य के लिए 2 हजार करोड़ की मदद मांगी है। चुनाव परिणामों में भाजपा का परचम लहराए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी काम में जुट गए हैं आैर वह सोमवार की रात ही कर्नाटक के मैंगलौर पहुंच गए थे। आज उन्होंने लक्षद्वीप, कावारत्ती, कन्याकुमारी और तिरुअनंतपुरम में राहत कार्यों की समीक्षा की। मछुआरों एवं किसानों के प्रतिनिधिमंडलों सहित तूफान प्रभावित लोगों से भी मुलाकात की। केन्द्र सरकार दोनों राज्यों को आपदा से निपटने के लिए राहत दे रही है लेकिन अभी आपदा प्रबंधन की दिशा में बहुत काम करना बाकी है। पहले तूफान के संबंध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हाेती थी लेकिन मौसम वैज्ञानिकों ने अब पहले से अधिक सटीक जानकारी देने की प्रणाली विकसित कर ली है। अब बर्बादी आैर तबाही लाने वाले समुद्री तूफानों का भी विधिवत् नामकरण किया जाता है और इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है।
1900 के मध्य में समुद्री तूफान का नामकरण करने की शुरूआत हुई ताकि इससे होने वाले खतरे के प्रति लोगों को जल्द सतर्क किया जा सके, संदेश आसानी से पहुंचाया जा सके ताकि सरकार आैर लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन आैर तैयारियां कर सकें। ओखी तूफान के बारे में चेतावनी पहले ही दी जा रही थी, अलर्ट जारी था लेकिन राज्य सरकार आपदा प्रबंधन में विफल रही। मछुआरों तक संदेश पहुंचाने में भी वह विफल रही। लोग भी इस संबंध में जागरूक नहीं रहे। अगर लोग जागरूक होते तो समुद्र में जाते ही क्यों। अब अहम सवाल है कि मछुआरों के परिवारों की आर्थिक मदद की जाए। किसानों के लिए तो केन्द्र में मंत्रालय है जो कृषि से जुड़े मुद्दों को लगातार सुलझाता है। मछुआरों के जीवन की रक्षा करने के लिए अलग मंत्रालय बनाया जा सकता है। मछुआरे हमारे समाज का ही हिस्सा हैं।