लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

मराठा आरक्षण के बाद….

NULL

महाराष्ट्र सरकार ने नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने की घोषणा की है। सरकार ने राज्य पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए यह फैसला किया है। फड़नवीस सरकार ने मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने का फैसला किया है ताकि इसका प्रभाव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कोटे में न पड़े और सरकार के फैसले के खिलाफ अन्य पिछड़ी जातियां कोई प्रतिक्रिया न दे सकें। वर्तमान में महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52 प्रतिशत है। अनुसूचित जातियों के लिए 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 19 प्रतिशत, विशेष पिछड़ा वर्गों के लिए 2 प्रतिशत, विमुक्त जाति के लिए 3 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति बी के लिए 2.5 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति सी (धनगर) के लिए 3.5 प्रतिशत आैर घुमंतू जनजाति डी (बंजारा) के लिए 2 प्रतिशत का प्रावधान है। अब सरकार के सामने बड़ी चुनौती यह है कि मराठा आरक्षण को किसी भी कानूनी चुनौती के बिना लागू किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक सीमित रखी हुई है, लेकिन तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण लागू है। इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने आरक्षण पर कोई रोक नहीं लगाई। भारतीय संविधान में किसी समुदाय को आरक्षण देने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं, बशर्ते इसका सामाजिक, शैक्षणिक और आ​र्थिक पिछड़ापन स्थापित हो। मराठा समुदाय काे कितने प्रतिशत आरक्षण देना है, इसका फैसला महाराष्ट्र मंत्रिमंडल द्वारा गठित उपसमिति तय करेगी। महाराष्ट्र की सियासत में अच्छा-खासा प्रभाव रखने वाले मराठा समुदाय ने करीब दो दशक तक आरक्षण के लिए संघर्ष किया आैर दो वर्ष पहले मूक मोर्चा निकाल कर अपनी आवाज बुलन्द करने वाले मराठा समुदाय ने इस बार काफी आक्रामक रुख भी अख्तियार कर लिया था। आंदोलन हिंसक भी हो गया था। मराठा समुदाय को आमतौर पर सम्पन्न समुदाय माना जाता है। यह सवाल कई बार उठा कि सम्पन्न समुदाय को आरक्षण की क्या जरूरत है। दरअसल वास्तविकता कुछ और ही है। मराठा समुदाय का एक छोटा सा तबका ही सत्ता और समाज में ऊंची प्रतिष्ठा हासिल कर चुका है लेकिन चन्द लोगों के मंत्री या मुख्यमंत्री बनने से समुदाय के हालात का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

समाज का बड़ा तबका शैक्षिक आैर आर्थिक रूप से अब तक पिछड़ा है। समुदाय के लोग अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च भी वहन नहीं कर पाते। पढ़ाई के लिए खेत गिरवी रख कर्ज लेते हैं। 1990 के बाद वैश्वीकरण का दौर आया। इस दौर में खेती की समस्याएं और उससे जुड़े कई सवाल उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की आबादी 4 करोड़ के लगभग है। आंकड़ों के मुताबिक 90 से 95 फीसदी लोग भूमिहीन हैं। वे असिंचित भूमि पर खेती करते हैं, उनका जीवन काफी पीड़ादायक है। ये लोग भयंकर गरीबी की मार झेल रहे हैं। महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले 90 फीसदी किसान मराठा समुदाय से हैं। मराठा समुदाय असमान विकास की मार झेल रहा है क्योंकि वे सामान्य वर्ग से हैं इसलिए उन्हें नौकरी भी नहीं मिलती। नौकरियां सरकारी हों या प्राइवेट, मराठा समुदाय का प्रतिनिधित्व नगण्य ही है। कृषि क्षेत्र के संकट ने मराठा समुदाय में असंतोष बढ़ने की पृष्ठभूमि तैयार की थी। वर्ष 2014 में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार ने मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 16 फीसदी आरक्षण दिया था लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती।

हाईकोर्ट ने पिछड़ा वर्ग आयोग से मराठा समाज की आर्थिक-सामाजिक स्थिति पर रिपोर्ट मांगी थी। मराठा आंदोलन के उग्र हो जाने से देवेन्द्र फड़नवीस सरकार की मुश्किलें बढ़ गई थीं क्योंकि वह स्वयं ब्राह्मण समुदाय से हैं और ब्राह्मण महाराष्ट्र की जनसंख्या में महज साढ़े तीन फीसदी हैं जबकि मराठा की आबादी 30 फीसदी है। इतनी बड़ी आबादी को नाराज करने का जोखिम कोई पार्टी नहीं उठाना चाहेगी। आेबीसी के लिए निर्धा​िरत 27 फीसदी कोटे में ही मराठों को शामिल करने का जोखिम अगर सरकार उठाती है तो उस स्थिति में आेबीसी आंदोलन शुरू हो सकता था। अब सवाल यह है कि मराठों की तरह अन्य राज्यों में भी सम्पन्न मानी जाने वाली सामान्य वर्ग की जातियां हैं, जो उनकी तरह ही पीड़ित हैं। गुजरात में पटेल समुदाय आरक्षण की मांग कर रहा है।

हरियाणा में जाट समुदाय भी कई बार आरक्षण के लिए हिंसक आंदोलन कर चुका है। राजस्थान में गुर्जर समुदाय आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहा है। राज्य सरकारें मांग तो मान लेती हैं लेकिन कानूनी बाधाओं के चलते फैसले लागू नहीं होते और असंतोष भीतर ही भीतर बढ़ता रहता है। बिहार में निषाद जाति अपने लिए आरक्षण की मांग कर रही है। अन्य राज्यों में भी कुछ समुदाय आरक्षण की मांग कर रहे हैं। 2019 के आम चुनावों से पहले आरक्षण के लिए आंदोलन तेज हो सकते हैं। डर इस बात का है कि आंदोलन उग्र और हिंसक हो सकते हैं। यह सही है कि आरक्षण को खत्म करना काफी मुश्किल है लेकिन अगर इसी तरह चलता रहा तो आरक्षण किसी दिन 80 फीसदी तक भी पहुंच सकता है। बेहतर होगा कि आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया जाए आैर सामान्य वर्गों के गरीबों काे भी सहजता से जीवन जीने का मौका मिले।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

9 + 9 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।