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सरकार की आक्रामक कूटनीति

आज का युग बड़ा ही राजनीति का है, कूटनीति का है।

आज का युग बड़ा ही राजनीति का है, कूटनीति का है। कूटनीति में जो सामने दिखाई देता है वह वास्तव में होता नहीं है और जो होता है वो पर्दे के पीछे होता है। भारत में कूटनीति के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। चाणक्य नीति इस मामले में खरी उतरती है। भगवान कृष्ण की नीति को अगर किसी ने समझा तो वह चाणक्य ने समझा था। उसके बाद छत्रपति शिवाजी ने भी अपने कूटनीतिक कौशल का परिचय दिया था। देश की स्वतंत्रता के समय तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिस तरह से साम-दाम-दंड-भेद, हंसते हुए, मुस्कुराते हुए, मनाते हुए देश की सियासतों को इकट्ठा कर खंडित भारत को अखंड बना दिया। कूटनीति की सफलता इस बात में है कि किसी देश द्वारा खामोशी से किए जा रहे कामों का साकारात्मक फल निकले। कूटनीति में भी शतरंज की तरह ही राजा के सारे मार्ग बंद करके अचानक शह दी जाती है और उसे बचाने के लिए तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
लंदन में भारतीय उच्चायोग पर खालिस्तान समर्थकों का हमला और तिरंगे का अपमान भारत के स्वाभिमान का मुद्दा बन गया है। हालांकि ​ब्रिटेन सरकार के पास ऐसे खुफिया इनपुट्स थे कि खालिस्तान समर्थक भारतीय उच्चायोग पर हमला कर सकते हैं। इसके बावजूद ब्रिटेन सरकार ने समय रहते कोई एक्शन नहीं ​लिया। भारत सरकार ने पहले तो ब्रिटेन के राजनयिक को बुलाकर अपना कड़ा प्रोटेस्ट जताया था लेकिन ब्रिटेन सरकार द्वारा भारत की बातों पर तवज्जो न देने  पर आक्रामक कूटनीति को अपनाया गया। बुधवार को दिल्ली स्थित ब्रिटिश उच्चायोग और ​ब्रिटिश उच्चायुक्त के आवास का सुरक्षा घेरा हटा लिया गया। वैसे देखा जाए तो कूटनीति में ज्यादातर गोपनीय चालों का सहारा लिया जाता है लेकिन मोदी सरकार ने ऐसा करके जैसे को तैसा की नीति अपनाई है। इसके बाद यह खबर आई कि लंदन में भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। भारत के रुख को देखते हुए ऋषि सूनक सरकार को सुरक्षा बढ़ाने पर विवश होना पड़ा है। ब्रिटेन के खिलाफ भारतीय एक्शन को देखते हुए कई देशों को डर सता रहा है कि भारत जल्द ही अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया के खिलाफ एक्शन ले सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में भारत दौरे पर आए आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीस से भी वहां हिन्दू मंदिरों पर खालिस्तान समर्थकों के हमलों को लेकर बात की थी और कहा था कि आस्ट्रेलिया सरकार ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी। 
ब्रिटेन इन दिनों आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। वहां महंगाई आसमान छू रही है। भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सूनक देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए भारत के साथ मुक्त व्यापार संधि करना चाहते हैं। अगर यह संधि नहीं हुई तो ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो सकती है। ब्रिटेन भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी मजबूत करना चाहता है लेकिन ब्रिटेन कई बार भारत की बातों को अनसुना कर देता है। हालांकि लंदन में भारतीय उच्चायोग के बाहर खालिस्तान समर्थकों ने ताजा प्रदर्शन भी किया है लेकिन इस बार ब्रिटेन के सुरक्षा प्रबंध भी दिखाई दिए हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बीबीसी की डाक्यूमैंटरी पर भी​ विवाद उठ खड़ा हुआ था। खालिस्तान समर्थकों द्वारा विदेशों में लगातार विरोध-प्रदर्शनों के पीछे भारत  को बदनाम करने की अन्तर्राष्ट्रीय साजिश नजर आ रही है। अगर ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों और भारतीय राजनयिकों को सुरक्षा प्रदान नहीं करता तो यह वियना संधि का उल्लंघन है।
स्वतंत्र और संप्रभु देशों के बीच राजनयिक संबंधों को लेकर सबसे पहले 1961 में ​वियना कन्वैंसन हुआ था उसके तहत एक ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया जिसमें राजनयिकों को विशेष अधिकार दिए गए। इसके आधार पर ही राजनयिकों की सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का प्रावधान किया गया। 
भारतीय राजनयिकों और उच्चायोगों की सुरक्षा करना ब्रिटेन का दायित्व है। भारत में ब्रिटेन के राजनयिकों को कोई खतरा नहीं है। इसके बावजूद उनको भारी सुरक्षा दी जाती है। ​ब्रिटेन उच्चायोग का सुरक्षा घेरा घटाए जाने का कदम वैसा ही है जैसा कि भारत ने दिसम्बर 2013 में किया था। न्यूयार्क में भारतीय राजनयिक देवयाणी खोबरगड़े को जब भारतीय घरेलू कामगार के कथित बीजा फ्रॉड में गिरफ्तार कर उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया था तो दिल्ली में अमेरिकी दूतावास से सुरक्षा व्यवस्था हटा ली गई थी, जिसे बाद में बहाल कर दिया गया था। भारतीय कूटनीति मजबूत इरादों के साथ काम कर रही है और  गूढ़ योजना के साथ पाकिस्तान, चीन और अन्य देशों से निपट रही है। पाकिस्तान आज पूरी दुनिया में अलग-थलग खड़ा है तो इसका श्रेय मोदी सरकार की आक्रामक नीति को ही जाता है।

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