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आतंकवाद पर एयर स्ट्राइक

यूरोप एक बार फिर इस्लामी आतंकवादी ताकतों के निशाने पर है। वैसे तो कई यूरोपीय देशों को आईएस और अलकायदा के ऐसे आतंकी हमलों का सामना करना पड़ा है

यूरोप एक बार फिर इस्लामी आतंकवादी ताकतों के निशाने पर है। वैसे तो कई यूरोपीय देशों को आईएस और अलकायदा के ऐसे आतंकी हमलों का सामना करना पड़ा है लेकिन फ्रांस में​ पिछले कुछ वर्ष से आतंकी हमले बढ़े हैं और फ्रांस भी पूरी ताकत के साथ आतंकवादियों का मुकाबला कर रहा है। फ्रांस ने माली में एयर स्ट्राइक कर 50 अलकायदा आतंकियों को मार ​गिरा कर कड़ा संदेश दे दिया है। पिछले हफ्ते नीस और लियोन शहर में चर्च पर हमले कर तीन लोगों की चाकू मार कर हत्या कर दी गई है। इससे पहले एक शिक्षक की गला काट कर हत्या कर दी गई थी। आतंकवादियों ने आस्ट्रिया की राजधानी वियना में एक कैफे में अंधाधुंध फायरिंग कर सात लोगों को मार डाला। इस बात से स्पष्ट संकेत हैं कि मुस्लिम आतंकी संगठन ईसाइयत के विरुद्ध लम्बी जंग के लिए तैयारी कर चुके हैं। अब खतरा इस बात का है कि क्या यह टकराव ईसायत बनाम इस्लाम में परिवर्तित तो नहीं हो जाएगा। भविष्य में ऐसा होता है तो इससे दुनिया भर में विध्वंस ही होगा। इस्लामी आतंकवादियों ने ब्रिटेन, स्पेन, स्वीडन और नीदरलैंड में भी काफी कहर बरपाया है। साढ़े तीन वर्ष पहले ब्रिटेन की संसद के बाहर हमले में पांच लोग मारे गए थे और उसी साल मानचैस्टर में भी आतंकी हमले में 22 लोग मारे गए थे। यह कैसी विचारधारा है जो धर्म के नाम पर 20 से 30 वर्ष के युवाओं को कट्टर इस्लाम का प्रशिक्षण देकर उन्हें मरने के लिए भेज देता है। आस्ट्रिया में मारे गए हमलावर के पास ​जिस तरह के हथियार और विस्फोटक मिले हैं, उससे पता चलता है कि वह किसी बड़े आत्मघाती हमले की तैयारी में थे। पैरिस में साल 2015 में शार्ल एब्दो में छापे पैगम्बर मोहम्मद को लेकर छापे कार्टूनों से इस्लामी जगत में काफी आक्रोश व्याप्त है। जनवरी 2015 को पैरितस में शार्ली एब्दो साप्ताहिक के कार्यालय में हुए शूटआउट को लोग आज तक नहीं भूले। जिसमें आठ कार्टूनिस्ट, दो मेहमान,  पुलिस कर्मी मारे गए थे। उसके बाद भी साप्ताहिक ने कार्टून छापना बंद नहीं ​किया। तत्कालीन फ्रांस्वा ओलांद सरकार ने ऐलान किया था कि हम कट्टरपंथियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हम सब पक्षधर हैं लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी अपनी सीमाएं हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई जानी चाहिए। फ्रांस में 84 लाख मुसलमान आबादी है, जो फ्रांस की कुल जनसंख्या के 12 प्रतिशत के आसपास है। इनमें से ज्यादातर अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की, अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, बंगलादेश, पाकिस्तान और पूर्वी एशियाई देशों से आए हैं। इनकी मौजूदगी की वजह से फ्रांस के विरुद्ध तीव्र प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। कई देशों ने फ्रांसीसी सामानों का बहिष्कार का आह्वान कर दिया है।
कार्टून के सवाल पर तुर्की और अन्य मुस्लिम देशों ने अपनी धार्मिक रोटियां सेंकनी आरम्भ कर दी हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महायिर मोहम्मद ने भी फ्रांस के विरुद्ध जहर उगला है। तुर्की इसलिए मुखर हो रहा है क्योंकि वह सऊदी अरब की लकीर को छोटी​ करना चाहता है। मुस्लिम देश ऐसा करके पूरे विश्व में युद्ध का वातावरण तैयार करने में लगे हैं। यह कोई नहीं सोच रहा कि कट्टरपंथी विचारधारा से पूरी दुनिया में मुस्लिमों का बहुत बड़ा नुक्सान हो रहा है। फ्रांस ने डेढ़ सौ से ज्यादा कट्टरपंथी मुस्लिमों को देश से बाहर करने का फैसला भी कर लिया है।
कौन नहीं जानता कि तुर्की के रास्ते पश्चिमी देशों से आईएस या अलकायदा के आतंकी यूरोपी पहुंचते हैं और यूरोप में रहने वाले कट्टर मुस्लिम उनका साथ देते हैं। पश्चिम देशों के युवा सीरिया जाकर आईएस की तरफ से लड़ते रहे हैं। कुछ दशकों से आतंकवादी ताकतों ने ऐसा वातावरण तैयार कर डाला कि इस्लाम खतरे में है, जिन मुस्लिमों ने तलवार न उठाई तो वह इस्लाम का दुश्मन है। युवाओं के दिमाग में जहर भर उन्हें धर्म की रक्षा के ​िलए भेजा जाता है। उनसे कहा जाता है कि पट्टी तुम्हारा भविष्य है और काफिरों का खून एक मात्र लक्ष्य है।
जीत गए तो गाजी
मारे गए तो शहीद
दुर्दांत संगठन आईएस, अलकायदा और तालिबान पूरी दुनिया के दुश्मन हैं। आज उदारवादी लोगों की लड़ाई उस कट्टरपंथी ​विचारधारा से है जो कैंसर की तरह पूरे विश्व में फैलती जा रही है। आज हमारी लड़ाई उस अवधारणा से है जो केवल खुद को ठीक समझती है और बाकी को गलत मानती है। जिहाद के नाम पर पाखंड खड़ा करने वाले ये लोग न जाने किस मिट्टी के बने हैं कि इनके मुंह से शांति और प्रेम के स्वर दिखाई नहीं देते। हर एक मर्ज का एक ही इलाज है इनके पास-आतंकवाद।
आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में लक्ष्य अन्तहीन है। हमें सिर्फ आतंकवाद से मुक्ति नहीं पानी बल्कि उस आतंकवाद से मुक्त होना है, जो मजहबी जुनून के नाम पर सारे विश्व में फैल चुका है। फ्रांस की मैक्रो सरकार ने आतंकवाद का डटकर मुकाबला करने का संकल्प लिया है, यह एक अच्छी बात है लेकिन उसे इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं किया जाए। कोई भी देश अपने नागरिकों की हत्याएं स्वीकार नहीं कर सकता। प्रेम की किसी भी भाषा से ​सिरफिरे लोगों का उपचार नहीं किया जा सकता। यह परीक्षा की घड़ी है। जिहादी आतंकवाद के विरुद्ध पूरे विश्व को एकजुट होना होगा। जहां भी मानवता के दुश्मन हो उन पर एयर स्ट्राइक कर उन्हें नेस्तनाबूद करना ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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