लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी में एक बार फिर गठबंधन होने के आसार दिखने लगे हैं। दोनों ही पार्टियों के नेताओं के द्वारा अब एक-दूसरे के प्रति नरम रुख अपनाया जाने लगा है। जो नेतागण कुछ दिन पहले तक एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं कर रहे थे जिसके चलते यह लग रहा था कि इस बार लोकसभा का चुनाव दोनों पार्टियों के द्वारा अपने बलबूते पर लड़ा जायेगा। हालांकि शिरोमणि अकाली दल का शीर्ष नेतृत्व खासकर सुखबीर सिंह बादल गठबंधन के लिए खासे उतावले दिख रहे थे। वह भलि भान्ति जानते हैं कि बिना भाजपा के अकाली दल को हिन्दू वोट नहीं मिलने वाला जिससे पिछली बार की दो सीटें भी कहीं हाथ से ना निकल जाएं इसलिए उनके द्वारा हर कोशिश करके भाजपा हाई कमान को विश्वास में लेने के प्रयास किये जा रहे थे मगर पंजाब भाजपा के ज्यादातर नेता इस बार अकाली दल के बिना चुनाव लड़ने के मूड बनाए़ हुए हैं, उनके द्वारा जमीनी स्तर पर वोटरों को लुभाने का काम भी किया जा रहा है। वहीं भाजपा से जुड़े सिख भी नहीं चाहते कि दोनों पार्टियों में गठबंधन हो क्योंकि ऐसा होने से उनका कद कम हो जाएगा। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कोई चूक नहीं करना चाहते जिससे पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में भाजपा को कठिनाई हो इसी के चलते सभी स्थानीय पार्टियों के साथ समझौता कर एनडीए का दायरा मजबूत किया जा रहा है।
शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर अकाली दल संयुक्त का गठन सुखदेव सिंह ढींडसा के द्वारा किया गया था जिसे समाप्त कर वह पुनः अकाली दल में शामिल हो गये। इसके पीछे तर्क भले ही ढींडसा और उनके समर्थक पंथ और पंजाब की बेहतरी के दे रहे हों पर असल सच्चाई यह है कि पर्दे के पीछे अकाली भाजपा गठबंधन होने की भनक उन्हें लग चुकी थी जिसके चलते उन्होंने अकाली दल में वापिसी करना बेहतर समझा। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक संघ के नेताओं ने भी भाजपा हाईकमान को गठबंधन पुनः करने की हरी झण्डी दे दी है जिसके बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पंजाब के नेताओं को विश्वास में लेकर उन्हंे यह आश्वासन दिया है कि इस बार गठबंधन तो होगा मगर भाजपा कैडर को पहले की भान्ति अकाली दल के नीचे लगकर काम नहीं करना पड़ेगा और अपनी शर्तों को ऊपर रखकर ही गठबंधन किया जायेगा। उधर सुखबीर सिंह बादल को अगर अकाली सांसदों को विजय बनाना है तो किसी भी सूरत में गठबंधन करने को तैयार होना पड़ेगा। ऐसे में देखना होगा कि भाजपा हाईकमान के आगेे सुखबीर सिंह बादल पंजाब या पंथ बेहतरी की कितनी मांगे रखते हैं और सरकार बनने के बाद भाजपा उसमें से कितनों को पूरा करती है यह आने वाला समय ही बताएगा।
सिख पंथ में महिलाओं को सम्मान
सिख पंथ में महिलाओं को खासा सम्मान दिया गया है। गुरु नानक देव जी के समय महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान देना तो दूर उन्हें अपनी मर्जी से कार्य करने की आजादी तक नहीं थी। धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी। पति की मौत के बाद महिला को जिन्दा चिता में जला दिया जाता था। गुरु नानक देव जी ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने की बात कही। जहां दूसरे धर्मों में महिलाओं को कुछ दिनों के लिए अछूत माना जाता है उस परिस्थिति में भी महिलाओं को गुरुद्वारों में आकर पूजा-अर्चना करने तक की इजाजत दे दी गई। आज समय बदल चुका है महिलाएं किसी भी परिस्थिति में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। शिरोमणि अकाली दल दिल्ली इकाई की वरिष्ठ नेता मनदीप कौर बख्शी जो कि निगम पार्षद भी रह चुकी हैं उनका मानना है कि बचपन से ही लड़कियों में आत्मविश्वास पैदा करना चाहिए ताकि बड़े होकर वह हर परिस्थिति का मुकाबला करने में सक्षम हो सके। गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा बताई गई श़स्त्र विधा हर सिख बच्ची को सीखनी चाहिए जिससे जरूरत पड़ने पर अपनी आत्मरक्षा भी की जा सके। उन्होंने कहा सिख पंथ में बीबी भानी, माई भागौ, माता सुन्दरी जी, माता साहिब कौर जी, माता खीवी जी जैसी अनेक महिलाओं की मिसाल है जिन्हें लड़कियों को अपना रोल माडल बनाकर उनके रास्ते पर चलना चाहिए। मगर आज भी समाज में कुछ तंग मानसिकता वाले लोग हैं जो स्त्री जाति को केवल दिल बहलाने वाला खिलौना समझते हैं। हाल ही में जब सभी लोग अर्न्तराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे थे तो इन्हीं में से 7 लोगों ने मिलकर स्पेन से भारत आई एक महिला के साथ मारपीट के बाद बलात्कार किया। वैसे तो इस तरह की घटनाएं आम होती जा रही हैं यहां तक कि नाबालिकों को भी नहीं बख्शा जाता। इसके लिए सख्त कानून तो बनना ही चाहिए साथ ही सभी महिलाओं को अपने बच्चों को बचपन से ही महिलाओं का सम्मान करने की शिक्षा अवश्य देनी चाहिए तभी इन पर लगाम लग सकती है।
मानसिक रोगी गुरुद्वारों को ही शिकार क्यों बनाते हैं
अक्सर गुरुद्वारों में बेअदबी के मामले सामने आते रहते हैं और तकरीबन सभी मामलों में आरोपी को यह कहकर छोड़ दिया जाता है कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं। सिख भी उन पर तरस खा कर माफी दे देते हैं जबकि ऐसा नहीं है इसके पीछे कोई बड़ी ताकत भी काम कर रही हो सकती है। आज तक पंजाब से लेकर देश के अन्य राज्यों में जितनी भी बेअदबी की घटनाएं हुई सभी गुरुद्वारों में क्यों की जाती है यह सोचने का विषय है। हाल ही में दिल्ली के मायापुरी खजान बस्ती में एक युवक द्वारा अपनी पैंट खोलने के बाद गुरुद्वारा साहिब को आग लगाने की नाकाम कोशिश की। अगर सेवादार मुस्तैदी ना दिखाता तो शायद वह अपने मंसूबों में कामयाब भी हो गया होता। मौके पर दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी महासचिव जगदीप सिंह काहलो पहुंचे, वहीं बड़ी गिनती में सिख संगत भी पहुंच गई।
कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, अकाली दल बादल नेता परमजीत सिंह सरना, मनजीत सिंह जीेके, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा के द्वारा पुलिस अधिकारियों से बात करके मामले की तह तक जाकर इसके पीछे कौन सी शक्तियां है उनका पता लगाने की मांग की गई। जो भी हो जब तक ऐसे केसों में सख्त सजा का प्रावधान नहीं होता यह रुकने वाली नहीं है। इसके साथ ही गुरुद्वारों में सेवादारों पर ही पूर्ण निर्भर ना रहकर संगत को भी चौकन्ना रहना होगा। ज्यादातर गुरुद्वारों में देखा जाता है कि दोपहर के समय कोई सेवादार भी मौजूद नहीं रहता जिसके चलते ऐसी मानसिकता वाले लोग जो कि हिन्दू सिख एकता में दरार डालना चाहते हैं इस तरह की घटनाओं को अन्जाम दे सकते हैं। सिख बुद्धिजीवि कुलबीर सिंह की मानें तो गुरुद्वारा साहिब के प्रधान, महासचिव सहित कमेटियों के सभी नुमाईंदों को चाहिए कि समय बांटकर गुरुद्वारा साहिब में मौजूद रहें। आमतौर पर देखा जाता है कि कमेटियों में लड़-झगड़कर पद तो हासिल कर लिये जाते हैं मगर किसी विशेष कार्यक्रम या वी आई पी लोगों के आगमन के समय ही कमेटियों के नुमाईंदे दिखाई पड़ते हैं वरना वह गुरुद्वारा साहिब हाजरी भरना भी मुनासिब नहीं समझते।
गुरुद्वारों में पंजाबी भाषा का प्रचार
आमतौर पर देखा जाता है कि गुरुद्वारों को कीर्तन या लंगर तक सीमित रखा जाता है। अब कहीं जाकर गुरुद्वारों की कमेटियों के द्वारा एजुकेशन और मेडिकल पर भी ध्यान केन्द्रित करना शुरु किया है पर वह भी चंद बड़े गुरुद्वारों में ही देखा जा सकता है। पुरातन समय में गुरुद्वारे भले ही कच्चे हुआ करते थे पर उनके साथ स्कूल जरुर बनाये जाते थे जहां पर बच्चे शिक्षा के साथ-साथ कीर्तन, गुरमत की शिक्षा भी लिया करते, पंजाबी भाषा का ज्ञान उन्हें मिलता जिससे वह गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ भी किया करते। समय के साथ-साथ बदलाव आता गया और आज स्थिति यह बन चुकी है कि ज्यादातर सिख घरानों में पंजाबी भाषा लिखना-पढ़ना तो दूर बोलने में संकोच किया जाता है। गुरुद्वारों में आए दिन महंगे से महंगे रागी जत्थे को बुलाकर कीर्तन करवाया जाता है जो गुरबाणी कीर्तन को व्यापार समझते हैं और खुलेआम गुरबाणी बेचने की बात करते हैं। लाखों करोड़ों के लंगर लगा दिये जाते हैं पर शिक्षा के नाम पर किनारा कर लिया जाता है। इन सब से हटकर साहिबाबाद के एक गुरुद्वारा साहिब में शब्द कीर्तन के अलावा पंजाबी भाषा के प्रति जागरुकता लाने हेतु सेमीनार करवाया गया जिसमें पंजाबी हैल्पलाइन के मुखी प्रकाश सिंह गिल ने पहुंचकर बच्चों और उनके माता पिता को मातृ भाषा के प्रति जागरुक करते हुए पंजाबी में रोजगार के साधन होने की जानकारी भी दी।
– सुदीप सिंह