अब यह सच सबके सामने उजागर हो चुका है कि कांग्रेस बदल चुकी है। दो टर्म के बाद लोकसभा चुनावों में पचास से भी नीचे सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस ने बड़ा मुश्किलों भरा सफर तय किया है। जब कांग्रेस ने पांच राज्य 2014 चुनावों में पराजय के बाद पा लिए तो उसने 2019 के आते ही प्रियंका गांधी के रूप में ऐसा ब्रह्मास्त्र चला जिसके बारे में राजनीतिक पंडित यह कहने को मजबूर हो गए हैं कि देश की राजनीति की दिशा बदल सकती है। जमीन से लेकर आसमान तक भले ही समाज बंटा हो लेकिन इसी समाज में प्रियंका गांधी में अपनी दादी प्रधानमंत्री रहीं श्रीमती इंदिरा गांधी का अक्स देखने वालों की कोई कमी नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बात को बारीकी से समझा और बहन प्रियंका को महासचिव बनाकर मास्टर स्ट्रोक खेल दिया।
कल कुछ भी हो जाए अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन अवधारणा तो यह बन ही गई है कि प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से भाजपा का अंक गणित गड़बड़ा गया है। इसीलिए प्रियंका को लेकर इस समय भारतीय जनता पार्टी की ओर से जो बयान उसके बड़े नेता दे रहे हैं उनके लिए बहुत ही चुनौतियों भरा समय है कि वे अब तोल-तोल कर बोलें। इतना ही नहीं कांग्रेस नेताओं को भी यह ध्यान रखना होगा कि वह ऐसा कोई बयान न दें जो उनकी छवि को बदनुमा बनाता हो। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप भले ही चलते हैं, लेकिन इसे पर्सनल तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान में जाकर एक समारोह में कहा कि उन्हें पाकिस्तान में प्यार मिलता है और भारत में दुश्मनी। इसलिए भारत-पाक के बीच अगर रिश्तों में मधुरता लानी है तो मोदी सरकार को चलता करो। उन्होंने यह हमला भारत में तथाकथित असहिष्णुता को लेकर किया था।
अय्यर ने गुजरात चुनावों में पीएम श्री मोदी को नीच कहा था। इतना ही नहीं अभी दो दिन पहले लोकसभा की स्पीकर श्रीमती सुमित्रा महाजन ने तमाम राजनीतिक प्रोटोकोल और पद की मर्यादा को दरकिनार रखते हुए यह कह डाला कि राहुल गांधी कमजोर हो गए हैं तभी बहन प्रियंका को राजनीति में ले आए हैं। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या लोकसभा या राज्यसभा का स्पीकर सब राजनीतिक पदों से ऊपर उठकर मर्यादा निभाते हैं परंतु सुमित्रा महाजन के इस बयान और आचरण की चहुं ओर निंदा हो रही है। इंदिरा गांधी की हूबहू कार्बन कॉपी प्रियंका गांधी को अपने वर्किंग स्टाइल से दादी की तरह अपने करिश्माई व्यक्तित्व के दम पर परिणामों की कसौटी पर खरा उतरना होगा।
जहां देश के उत्तरी और सर्वाधिक हिन्दी भाषी इलाके उत्तर प्रदेश में प्रियंका को अपना दमखम दिखाना है तो बड़ी बात यह है कि कांग्रेस की भी अग्नि परीक्षा शुरू हो गई है कि आज की तारीख में इंदिरा गांधी का वह दौर खत्म हो गया जब करिश्माई व्यक्तित्व हावी था। आज की राजनीति जात-पात, संप्रदाय और मजहब में बदल चुकी है। ऐसे में आप कास्ट फैक्टर कैसे खेलेंगे इस बात का हिसाब-किताब प्रियंका को वोट बैंक के रूप में रखने वाले कांग्रेसी रणनीतिकारों को अभी नफे-नुकसान की तराजू पर ताेलना होगा। आज का लोकतंत्र गठबंधनों पर फोकस है। प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने का मतलब है कि कांग्रेस के लिए यह चुनाव अब करो या मरो का बन गया है और अब उसका मुकाबला चुनावी समर में जहां पीएम मोदी, यूपी के सीएम योगी और गठबंधन सुप्रीमो अखिलेश और मायावती से होगा तो वहीं अकेले दम पर कांग्रेस आक्रामक रुख अपनाकर मंजिल की ओर कैसे चलेगी, यह भी देखने वाली बात होगी।
यद्यपि अमेठी और रायबरेली में प्रियंका अपना जलवा दिखा चुकी हैं। वर्करों के बीच उनका संवाद कमाल का है और टीवी पर उनकी प्रजेंटेशन और भी जबर्दस्त है लेकिन कांग्रेसी वर्करों के जोश के बावजूद यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल और आंध्र के गठबंधन में पंजे की क्या भूमिका रहेगी इस बात का जवाब भी वक्त ही देगा। चुनावी पंडितों और राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा है कि प्रियंका के रूप में इंदिरा गांधी की वापसी की उम्मीद भले की कांग्रेसियों और देश को है, इस सवाल का जवाब अभी समय के गर्भ में हो सकता है लेकिन कांग्रेस को जिस तरह से चैनलों और सर्वेक्षणकर्ताओं ने अकेले दम पर डेढ़ सौ सीटों के आसपास पर रखा है तो ये अच्छे संकेत हैं। सोशल मीडिया पर तो साफ कहा जा रहा है कि भाजपा की 2019 की सारी गेम प्रियंका ने बिगाड़ कर रख दी है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि पानी गर्म हो या ठंडा वह आग तो बुझा ही देता है, यह मंथन भाजपा को कर लेना चाहिए। बसपा, सपा से कांग्रेस का गठबंधन नहीं हुआ, बिहार में राजद भी उससे दूरियां बढ़ा रही है, पश्चिम बंगाल में ममता दीदी से उनकी बन नहीं रही, आंध्र में टीडीपी किनारा कर चुकी है। ऐसे में कांग्रेस के बारे में हरियाणा, पंजाब, एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ में लाभ की स्थिित बताई जा रही है परंतु गठबंधन के बगैर यूपी में पंजे वाली पार्टी को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। यह सच है कि राजनीति हमेशा सकारात्मक पहलू के साथ की जानी चाहिए।
सोशल साइट्स पर कहा जा रहा है कि भाजपा के कई बड़बोले नेताओं ने जिस तरह से राहुल को बार-बार निशाने पर रखते हुए उन पर नकारात्मक हमले किए इससे राहुल को ही लाभ मिला। इसी तरह अब भाजपा के बड़बोले नेता प्रियंका की मौजूदगी को लेकर जिस तरह से अपनी सीटें यूपी में 71 ही रहने के दावे कर रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रियंका कोई बड़ी चुनौती नहीं, उन्हें यकीनन पर्सनल हमलों से बचना चाहिए। साथ ही अति आत्मविश्वास के सागर में बड़ी डींगें नहीं हांकनी चाहिए। आज की तारीख में राहुल गांधी एक परिपक्व नेता बन चुके हैं और वह हर शब्द तोल-तोल कर बोल रहे हैं और राफेल हो या पीएम मोदी, हर मामले पर आक्रमण कर रहे हैं तो किसी नीति के तहत ही वह ऐसा कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने चुनावी गठबंधन को लेकर अपनी चाबियों का स्टैंड सैट कर लिया है और उन्हें पता है कि किस ताले की चाबी कहां लगनी है। इसीलिए वह अकेले दम पर चुनाव में उतरने को तैयार है।
एक बात तय है कि प्रियंका को लेकर राहुल का ब्रह्मास्त्र ऐसे वक्त चलाया गया है जिसकी उम्मीद भाजपा को नहीं थी। लक्ष्य काफी दूर है लेकिन कांग्रेस की दिशा सही है। कांग्रेस की ओर से प्रियंका और राहुल की मार्फत एक तीर से कई निशाने साधे गए हैं। गठबंधनों को लेकर मुश्किल हालात के बावजूद कांग्रेस ने सारे विकल्प खुले रखे हैं। ऐसे में प्रियंका को बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी देना एक सोची-समझी योजना है, तभी तो राजनीतिक पंडित इन नारों को गंभीरता से देख रहे हैं, जिनमें लिखा है- कांग्रेस की आंधी प्रियंका गांधी। सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि अगर 2014 के चुनावों में मोदी की आंधी चल सकती है तो 2019 में प्रियंका गांधी की आंधी का इंतजार कांग्रेस और देशवासियों को है। इस सवाल का जवाब भी ढाई महीने बाद मिल जाएगा। कहने वाले कह रहे हैं प्रियंका की वापसी से ही 2019 में कांग्रेस की वापसी संभव है।