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गुजरात में सभी मन्त्री नये !

गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन पर जिस तरह राजनीतिक क्षेत्रों में आश्चर्य पैदा हुआ था उसी प्रकार मन्त्रिमंडल गठन पर भी अचम्भा हुआ है।

गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन पर जिस तरह राजनीतिक क्षेत्रों में आश्चर्य पैदा हुआ था उसी प्रकार मन्त्रिमंडल गठन पर भी अचम्भा हुआ है। राज्य के नये मुख्यमन्त्री भूपेन्द्र पटेल के मन्त्रिमंडल में आज एक भी पुराने विजय रुपानी  के मन्त्रिमंडलीय सहयोगी को शपथ नहीं दिलाई गई। नये मन्त्रिमंडल में कुल 24 नये सदस्यों को लिया गया जो सभी नये मन्त्री हैं। एक प्रकार से यह भाजपा ने खुद ही अपनी पार्टी की नई सरकार गठित की है जबकि नये चुनाव  होने में अभी लगभग एक साल का समय शेष है। इसे एक नया प्रयोग भी कहा जा सकता है क्योंकि स्वतन्त्र भारत के इतिहास में आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई सत्तारूढ़ पार्टी अपना मुख्यमन्त्री बदले और उसके साथ ही पूरा मन्त्रिमंडल  भी बदल डाले। इससे पहले अक्सर ऐसा होता रहा है कि सत्तारूढ़ पार्टियां मुख्यमन्त्रियों को लेकर प्रयोग करती रही हैं मगर ऐसा कभी नहीं हुआ कि मुख्यमन्त्री के साथ उसके पूरे मन्त्रिमंडल की भी बिदाई कर दी जाये। 
पूर्व में कांग्रेस की प्रधानमन्त्री स्व. इंदिरा गांधी इस मामले में अपनी अलग पहचान रखती थीं । वह मुख्यमन्त्रियों को इस तरह बदलती थीं जैसे किसी दफ्तर में पानी पिलाने वाले को बदला जाता है। इसके बावजूद उन्होंने कभी जाने वाले मुख्यमन्त्री के साथ उसके सभी सहयोगियों को अलविदा नहीं कहा। अतः भाजपा ने ऐसा प्रयोग गुजरात में करके एक बहुत बड़ा जोखिम भी लिया है क्योंकि नई सरकार में अब ऐसा एक भी मन्त्री नहीं होगा जिसे शासन करने का पूर्व अनुभव है मगर इससे नये मुख्यमन्त्री की नई सरकार पुराने किसी भी ऐसे ‘असबाब’ को ढोते हुए नहीं चलेगी जिसमें किसी भी पुराने मन्त्री के कथित कुकर्मों की बू आ रही हो। एक मायने में यह पूरी तरह नई सरकार होगी जिसके हर मन्त्री को अपने कारनामों से जनता का दिल जीतना होगा। वैसे संसदीय प्रणाली का यह अलिखित नियम होता है कि मुख्यमन्त्री बदलने पर सरकार का चेहरा बदल जाता है मगर भाजपा ने गुजरात में चेहरा ही नहीं बल्कि पूरा ‘शरीर’ ही बदल डाला है। इसीलिए यह एक प्रयोग कहा जायेगा। हालांकि मुख्यमन्त्री को भी पहले से प्रशासनिक अनुभव नहीं है क्योंकि वह पहली बार ही विधायक बने हैं मगर लोकतन्त्र में इसका कोई खास महत्व नहीं होता क्योंकि जनता द्वारा चुना गया हर विधायक ही मुख्यमन्त्री बनने की क्षमता रखता है। 
संसदीय प्रणाली में चुने हुए विधायकों में से मुख्यमन्त्री का चुनाव होता है जिसका निर्वाचन स्वयं विधायक ही करते हैं। अतः पहली बार या दूसरी बार चुने गये विधायक में कोई अन्तर नहीं होता है। अन्तर केवल किसी भी व्यक्ति की योग्यता व कार्यक्षमता से पड़ता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी हैं जिन्हें नवम्बर 2001 में अहमदाबाद स्व. केशूभाई पटेल को अपदस्थ करके भेजा गया था। उस समय वह भाजपा संगठन के महासचिव थे। मुख्यमन्त्री बनने के बाद ही वह 2002 का पहला विधानसभा चुनाव लड़े थे और विजयी रहे थे। उनके शासन के दौरान गुजरात भाजपा का गढ़ बन गया जो अभी तक जारी है। हालांकि 2014 में श्री मोदी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और वह प्रधानमन्त्री बने। उनके प्रधानमन्त्री के लिए चयनित होने पर भाजपा के ही नेता और उप प्रधानमन्त्री रहे श्री लालकृष्ण अडवानी ने  भाजपा संसदीय दल की बैठक में जब यह कहा था कि श्री मोदी पहली बार राष्ट्रीय फलक पर सबसे बड़े पद के दावेदार हैं तो श्री मोदी ने उत्तर दिया था कि ‘अडवानी जी आदमी हर काम पहली बार ही करता है’। वैसे भी यह राज्य स्वयं प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री का गृह राज्य है अतः मुख्यमन्त्री भूपेन्द्र पटेल को उनका दिशा-निर्देशन लगातार मिलता रहेगा। मगर विपक्ष खास कर कांग्रेस पार्टी इस प्रयोग की यह कह कर आलोचना कर रही है कि भाजपा ने पूरे मन्त्रिमंडल को बदल कर यह स्वीकार कर लिया है कि विजय रूपानी की पिछली सरकार पूरी तरह नाकारा और नाकाबिल थी जिसकी वजह से इसके हर मन्त्री को बदलना पड़ा है। 
राजनीति में कुछ भी ऐसा करना गलत नहीं होता जो संविधान सम्मत हो। पूरे मन्त्रिमंडल को बदलना मुख्यमन्त्री का विशेषाधिकार होता है। अतः सफलता या असफलता का प्रश्न नयी सरकार के कार्यकलापों को देख कर ही लगाया जा सकता है। राज्य स्तर पर मुख्यमन्त्री के इस्तीफे को पूरी सरकार के इस्तीफे के समकक्ष ही कानूनी तौर पर रखा जाता है। अतः मुख्यमन्त्री के साथ पूरा मन्त्रिमंडल बदलना निश्चित रूप से एक लोकतान्त्रिक प्रयोग है। मगर गांधी नगर में आज एक और प्रयोग किया गया। सभी नये मन्त्रियों को पांच-पांच के चार जत्थों व चार के एक जत्थे में सामूहिक शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई। यह संवैधानिक नैतिकता का प्रश्न है क्योंकि मुख्यमन्त्री की स्थिति सभी मन्त्रियों में प्रथम मन्त्री की होती है। जाहिर तौर पर संसदीय प्रणाली में किसी भी मन्त्री द्वारा किया गया फैसला सरकार का सामूहिक फैसला ही माना जाता है और इसकी जिम्मेदारी भी सामूहिक ही होती है परन्तु प्रत्येक मन्त्री का अपना पृथक अस्तिव भी होता है। स्वतन्त्र भारत के इतिहास में एेसा भी पहली बार हुआ कि मन्त्रियों को सामूहिक रूप से शपथ दिलाई गई। इसकी विवेचना निश्चित रूप से विधि विशेषज्ञ करेंगे। मगर फिलहाल भूपेन्द्र पटेल की नई सरकार को बधाई देने का समय है कि यह सरकार कोरोना की दूसरी लहर से पीड़ित गुजरातियों को खुशहाल बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करें और पुराने दुख-दर्दों को दूर करने का प्रयास करें।

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