पिछले दिनों से ऐसे कई मामले सामने आ रहे थे कि राजधानी दिल्ली में कोरोना संक्रमण से ग्रस्त मरीज दिनभर अस्पतालों के चक्कर लगातेे रहे और अंततः बिना इलाज के मरीज की मौत हो गई। प्राइवेट अस्पतालों ने कोरोना महामारी की आपदा को अवसर बना लिया यानि लूट का अवसर।
कोरोना महामारी से मरने वालों के शवों की दुर्गति देख कर हर कोई दहल गया। ऐसा नहीं है कि यह स्थिति केवल देश की राजधानी की है, अन्य राज्यों में भी बदतर हालात देखने को मिल रहे हैं। अब जबकि विशेषज्ञ बार-बार कह रहे हैं कि कोरोना की महामारी अभी और विकराल रूप लेगी तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोरोना वायरस के फैलते दायरे को समेटा कैसे जाए।
दिल्ली के हालात बिगड़े तो मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ट्विटर और वीडियो मैसेज से दिल्ली वालों की राय इन बिन्दुओं पर ली कि क्या दिल्ली में केवल दिल्ली वालों का ही इलाज हो और क्या दिल्ली की सीमायें अन्य पड़ोसी राज्यों से आने वाले लोगों के लिए सील कर दी जाएं? उन्होंने दोनों कदमों का ऐलान भी कर दिया।
पहली दृष्टि से देखा जाए तो अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली की सीमायें सील करने की घोषणा गलत नहीं थी, जब हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने दिल्ली वालों के लिए सीमायें सील की थी तब किसी ने इस पर आपत्ति नहीं की थी लेकिन जब केजरीवाल ने ऐसा किया तो इसका जमकर विरोध किया। अन्य दलों को देश की संघीय व्यवस्था की याद आने लगी। जमकर राजनीति भी हुई, शब्दों के तीखे बाण भी चले।
सबसे बड़ी चुनौती तो दिल्ली वालों को उपचार उपलब्ध कराने की है परन्तु राजनीतिक दलों के बीच बजारू शास्त्रार्थ छिड़ गया। दिल्ली में राजनीतिक दलों ने कोरोना के समय में भी राजनैतिक बयानों को उसी तरह बेचने की कोशिश की जिस तरह बाजार में कोई उत्पाद बिकता है। यह समय राजनीति का नहीं है, यह समय कोरोना वायरस के सामने मुट्ठियां तानकर खड़े होने का है। जनता की पीड़ा को दूर करने के लिए सत्ता से जुड़े सभी प्रतिष्ठानों को एकजुट होकर काम करना ही पड़ेगा।
देश में जब भी कभी प्राकृतिक आपदायें आईं या पड़ोसी देशों से युद्ध हुआ तो न केवल सरकारों ने लड़ाई लड़ी बल्कि देश के लोगों ने भी जमकर सहयोग दिया। संकट की घड़ी में हमेशा भारत ने एकजुटता दिखाई। राजनीतिक दलों ने भी एकजुट होकर काम किया तभी हर बार देश संकट से निकल कर फिर उठा और विकास की दौड़ में आगे रहा। राजधानी दिल्ली में कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने अब कमान खुद संभाल ली है।
गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली के उपराज्यपाल बैजल और मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ मैराथन बैठकें की। उन्होंने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई। कोरोना से जंग सर्वदलीय ही होनी चाहिए। गृहमंत्री ने दिल्ली को कोरोना से लड़ने के लिए आवश्यक संसाधन जैसे आक्सीजन सिलैंडर, वेंटिलेटर्स, पल्स ऑक्सीमीटर और अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने का आश्वासन दिया।
देश ने हर संकट का मुकाबला जन सहयोग से ही किया है। कई स्वयंसेवी संस्थायें बहुत उत्कृष्ट कार्य कर रही हैं। इसी क्रम में स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस और अन्य समाजसेवी संस्थाओं को इस महामारी में स्वास्थ्य सेवाओं में वालंटियर के नाते जोड़ने का भी निर्णय किया है। गृहमंत्री ने दिल्ली सरकार को भारत सरकार के पांच वरिष्ठ अधिकारी भी दिए हैं, साथ ही केन्द्र और दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग को सभी फैसले अच्छे से अमल में लाने के निर्देश भी दिए हैं।
कोरोना काल में इस सारी कवायद को हमें किसी की जीत या किसी की हार के तौर पर परिभाषित नहीं करना चाहिए। दिल्ली में मरीजों की संख्या 40 हजार के पार हो चुकी है। ऐसे में कोई भी सरकार अकेले व्यवस्था नहीं कर सकती। चुनौती बहुत बड़ी है और इससे पार पाने के लिए सभी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करना होगा। टैस्टिंग की धीमी गति का परिणाम हम भुगत रहे हैं, हर रोज हजारों की संख्या में नए संक्रमितों का आना हमारी चिन्ता होनी चाहिए। कई देशों ने तेजी से टैस्टिंग करके कोरोना काे काफी हद तक परास्त कर दिया है।
महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, तमिलनाडु में लगातार नए मामले सामने आ रहे हैं। भारत में मृत्यु का आंकड़ा काफी कम है, रिकवरी रेट भी 50 फीसदी हो चुका है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हाॅट स्पॉट वाले क्षेत्रों में तेजी से जांच हो, इसके साथ लोगों को भी सतर्कता बरतनी होगी। राज्यों के स्वास्थ्य ढांचे को देखते हुए लोगों के पास तनाव के हर उपाय को अपनी आदत बनाने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। दो गज की दूरी, मास्क और सैिनटाइजेशन तो अनिवार्य शर्तें हैं ही।
अमित शाह और केजरीवाल की बैठक काफी सकारात्मक रही और दिल्ली को कोरोना वायरस से बचाने और उन्हें स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध कराने के लिए व्यवस्था करने के कदम उठाये गए। कोरोना को पराजित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों में पूर्ण समन्वय होना ही चाहिये।
मुख्यमंत्री केजरीवाल भी बार-बार कह रहे हैं कि यह राजनीति का समय नहीं, इस समय दिल्ली सरकार केन्द्र सरकार से तालमेल बनाकर काम कर रही है। दिल्ली में टैस्टिंग को बढ़ाकर तीन गुना करने, कंटेनमैंट जोन में घर-घर जाकर जांच करने, दिल्ली को 500 रेलवे कोच देने, दिल्ली के निजी अस्पतालों के कोरोना बैड 60 फीसदी कम रेट में उपलब्ध कराने का फैसला किया गया।
राजनीतिक दलों को भी चाहिये कि इस समय अनर्गल बयानबाजी कर वातावरण को कड़वा न बनायें बल्कि स्थिति की संवेदनशीलता को समझ कर एकजुट होकर कोरोना से लड़ें क्योंकि देश के सामने चुनौतियों का अवसर खड़ा है, अगर कोरोना काल में भी वोटों की तलाश की जाती रही तो हालात नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।