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भारत की मदद में अमेरिका

कोरोना संक्रमण के इस संकट काल में विश्व के विभिन्न देश जिस तरह भारत की मदद के लिए आगे आ रहे हैं उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की उस साख का पता चलता है

कोरोना संक्रमण के इस संकट काल में विश्व के विभिन्न देश जिस तरह भारत की मदद के लिए आगे आ रहे हैं उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की उस साख का पता चलता है जो इसकी विदेश नीति के जारी रहते बनी है परन्तु सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत की मदद करने के लिए अमेरिका ने अपनी  ‘पहले अमेरिकी’ नीति में संशोधन किया है। निश्चित रूप से इसका श्रेय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को दिया जा सकता है जिन्होंने पिछले साल आयी कोरोना की प्रथम लहर के दौरान अमेरिका को औषधियां भेज कर उसे संकट से बाहर निकालने में मदद की थी। इसके साथ ही विश्व के अन्य अग्रणी देशों जैसे जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन व रूस आदि ने भी संकट के इस दौर में भारत की तरफ जिस तरह मदद का हाथ बढ़ाया है वह प्रधानमन्त्री के इन देशों के नेताओं के साथ मधुर सम्बन्ध होने का द्योतक ही कहा जा सकता है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने आज भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से फोन पर बात करके आश्वस्त किया कि अमेरिका कोरोना वैक्सीन कोविडशील्ड के लिए जरूरी कच्चा माल भेजने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगायेगा और इसकी सप्लाई जारी रखेगा। पहले राष्ट्रपति बाइडेन की सरकार ने घोषणा की थी कि कोविड महामारी से निपटने के लिए अमेरिका पहले अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करेगा उसके बाद अन्य देशों के बारे में सोचेगा किन्तु अमेरिका का यह हृदय परिवर्तन होना बताता है कि वह भारत के साथ सम्बन्धों को विशेष महत्व देता है। पीएम मोदी बराबर हालात पर नजर रखे हुए हैं और अमरीका ने उनकी उम्मीदों पर अपने सहयोगात्मक विश्वास की मुहर लगा दी है। इसका पता इस तथ्य से भी चलता है कि अमेरिका ने अभी तक कुछ अन्य देशाें की भांति अपने यहां भारत से आने वाली उड़ानों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया है बल्कि अपने नागरिकों के लिए  केवल यह सलाह जारी की है कि वे भारत की यात्रा करने से बचें।अमेरिका की जिस यूनाइटेड एयरलाइन ने पहले अपनी नई दिल्ली के लिए उड़ानें बन्द करने की घोषणा की थी उसे भी उसने अब वापस ले लिया है। हालांकि इस एयर लाइन ने शिकांगों या न्यूयार्क से नई दिल्ली तक का एक तरफ का किराया बढ़ा कर साढे़ सात लाख रु. कर दिया है।  अभी तक ईरान व कुवैत ने भारत से आने-जाने वाली सभी उड़ानों को स्तगित किया है परन्तु कुछ अन्य देशों ने भारत से आने वाली उड़ानों पर प्रतिबन्ध कड़े कर दिये हैं। इनमें  ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, हांगकांग, कनाडा ने केवल अपने नागरिकों को ही देश में आने की इजाजत दी है। जाहिर है कि ये देश भारत से आने वाले यात्रियों के अपने देश में प्रवेश को इसलिए प्रतिबन्धित कर रहे हैं जिससे उनके यहां कोरोना संक्रमण को फैलने में मदद न मिल सके। मगर इससे यह तो पता चलता ही है कि भारत में कोरोना संक्रमण की भयावहता की क्या स्थिति है। बेशक प्रत्येक देश को अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने का जायज हक है मगर कोरोना की मार झेल रहे भारत की मदद करने से भी ये पीछे नहीं हट रहे हैं। कोविशील्ड वैक्सीन के लिए आवश्यक कच्चा माल अमेरिका से ही आता था और दो दिन पहले ही इस वैक्सीन की निर्माता कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने राष्ट्रपति बाइडेन से अपील की थी कि वह अपनी सरकार के औधष निर्यात पर लगाये गये प्रतिबन्ध के फैसले पर पुनर्विचार करें। वैसे भी अमेरिका मानवीय अधिकारों का पूरे विश्व में अलम्बरदार माना जाता है । यदि इस संकट की घड़ी में वह भारत की मदद करने के लिए अपनी नीति में संशोधन नहीं करता तो इसे ‘अमानवीय” के दायरे में लाया जा सकता था। दूसरी तरफ जब अमेरिका में पिछले साल राष्ट्रपति ट्रम्प की सरकार थी तो भारत ने सारी आलोचना के बावजूद अमेरिका को क्लोरोक्वीन गोलियाें का पर्याप्त मात्रा में निर्यात किया था। जाहिर है प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने तब केवल मानवीयता के आधार पर ही अपना यह फर्ज समझा था कि अमेरिकी लोगों की मदद यदि भारत में बनी औषधि से हो सकती है तो उससे पीछे नहीं हटा जाना चाहिए।  यह भारत की सदाशयता ही थी जिसका जवाब अमेरिका ने उसी उत्साह के साथ दिया है बावजूद इसके कि अब वहां राष्ट्रपति बाइडेन की सरकार है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि किन्हीं भी दो देशों के बीच के सम्बन्ध मानवीयता के आधार पर ही टिकाऊ हो सकते हैं। 

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