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अमेरिकाः ऐतिहासिक सत्ता बदल

अमेरिका के पिछले डेढ़ सौ वर्षों के इतिहास में सेना के साये में लोकतान्त्रिक सत्ता बदल जिस पारंपरिक समारोह के बीच हुआ है वह सेवानिवृत्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इस विश्व शक्ति समझे जाने वाले देश को

अमेरिका के पिछले डेढ़ सौ वर्षों के इतिहास में सेना के साये में लोकतान्त्रिक सत्ता बदल जिस पारंपरिक समारोह के बीच हुआ है वह सेवानिवृत्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इस विश्व शक्ति समझे जाने वाले देश को ऐसी ‘सौगात’ समझी जायेगी जिसके निशान आने वाले अमेरिका इतिहास पर हमेशा दिखाई पड़ते रहेंगे। इस सब के बावजूद अमेरिका का लोकतन्त्र दुनिया का ऐसा मजबूत और सुदृढ़ लोकतन्त्र है जिसमें विभिन्न संवैधानिक व संसदीय संस्थान हर संकट का मुकाबला सिर उठा कर करने की अभूतपूर्व क्षमता रखते हैं। संस्थानों की यह मजबूती अमेरिकी लोकतन्त्र की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है जिससे राष्ट्रपति प्रणाली होने के बावजूद इस देश में कभी तानाशाही का खतरा नहीं मंडरा सकता। नये राष्ट्रपति श्री जो बाइडेन के शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व राष्ट्रपति का भाग न लेना बेशक इस देश की जनता को शंकित कर सकता है मगर अमेरिका की महान और उदार लोकतान्त्रिक परंपराएं ऐसी आशंका को समूल नष्ट करने में समर्थ रहेंगी, इस अपेक्षा से पूरे विश्व की लोकतान्त्रिक शक्तियां सर्वदा अमेरीकियों को प्रेरित करती रहेंगी।
 दरअसल 2021 से आधुनिक अमेरि​का एक नये अध्याय को लिखने की तरफ बढ़ रहा है। श्री बाइडेन के नेतृत्व में इस देश को अपनी उस पुरानी मानववाद पर आधारित संस्कृति को पुनर्जागृत कर पूरी दुनिया के सामने सभी प्रकार के भेदभावों से ऊपर उठ कर मानवीय सम्मान और प्रतिष्ठा को ट्रम्प के शासनकाल से पहले का रुतबा बहाल करना होगा और ‘श्वेत व अश्वेत’ नागरिकों में बंटे अमेरिका की उसी बुलन्द छवि को दुनिया के सामने पेश करना होगा जो इसकी वास्तविक पहचान रही है। पचास राज्यों वाले इस देश की खूबी विभिन्न नस्लों के लोगों का एक साथ एक राष्ट्र के रूप में रहते हुए समन्वित विकास करने की रही है। इसमें दुनिया के विभिन्न देशों के नागरिकों ने भी यहां बस कर अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित की है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला देवी हैरिस हैं, जो भारतीय मां और अफ्रीकी पिता की सन्तान है। वह अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति भी हैं। उनका इस पद पर चुना जाना बताता है कि आम अमेरिकी नागरिक किस हद तक विशाल हृदयी और वैचारिक दृष्टि से उदारमान हैं। इससे पहले ट्रम्प से पूर्व अमेरिकी नागरिकों ने पहली बार एक अश्वेत राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा को लगातार दो बार चुन कर सिद्ध कर दिया था कि मानवीय अधिकारों के मामले में इस देश का पूरी दुनिया में कोई दूसरा सानी नहीं है, परन्तु पिछले चार साल के शासन में ट्रम्प ने अमेरि​कियों को जिस तरह काले-गोरे के भेद के आधार पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की नीति चलाई उसने पूरी दुनिया में अमेरिका का रुतबा किसी औपनिवेशिक राष्ट्र के समकक्ष लाकर रख दिया।  इससे इस देश को न केवल सामाजिक स्तर पर बल्कि आर्थिक स्तर पर भी भारी नुकसान पहुंचा है।
 ट्रम्प ने संसदीय संस्थाओं से लेकर अमेरिका की न्यायायिक संस्थाओं का रुतबा गिराने की भी कोशिशें कीं जिनका जमकर विरोध भी हुआ और उन्हीं की रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से ऐसे कदमों का पुरजोर विरोध भी हुआ। पूरी लोकतान्त्रिक चुनाव प्रणाली को जिस तरह ट्रम्प ने अपने अहम के दम्भ में हड़पना चाहा उसे भी उन्हीं के उपराष्ट्रपति श्री माइक पेंस ने चकनाचूर कर डाला। श्री बाइडेन ने राष्ट्रपति पद गृहण करने के बाद अपने पहले राष्ट्रीय सम्बोधन में सबसे ज्यादा जोर इसी बात पर दिया कि उनके सामने नागिरकों के बीच पैदा की गई खाई को भरने और पूरे अमेरिका को बिना किसी भेदभाव के एकजुट करने का महान लक्ष्य है जो केवल प्रेम के रास्ते से ही पूरा होगा। जाहिर है ट्रम्प ने अपने चार साल के शासन में अमेरिका को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जिसमें काले-गोरे के आधार पर आदमी-आदमी के बीच नफरत का भाव पैदा हो गया। श्री बाइडेन ने इस दीवार को गिराने का ही संकल्प लेते हुए साफ किया कि अमेरिका हर नागरिक का है और इसके विकास में उसकी हिस्सेदारी मायने रखती है। उनका यह कहना कि उनकी चुनावी जीत लोकतन्त्र की जीत है, बताता है कि अमेरिका किस ‘खतरे’ से बाहर निकल कर आया है।
 अब्राहम लिंकन और जार्ज वाशिंगटन के इस देश में मार्टिन लूथर किंग भी हुए जिन्होंने ‘गांधीवाद’ का रास्ता अपना कर 1963 के करीब अश्वेत लोगों के लिए एक समान मताधिकार प्राप्त किया। मगर ट्रम्प शासन के दौरान इस देश में महात्मा गांधी को ही नस्लवादी कहने की जुर्रत कुछ लोगों द्वारा की गई, इसी से पता चलता है कि अमेरिका किस भीषण झंझावत से बाहर निकल कर श्री बाइडेन और श्रीमती कमला हैरिस के नेतृत्व में अपनी आगे की विकास यात्रा पूरी करना चाहता है और मानववाद का झंडा फहराना चाहता है।

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