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अमेरिका किसी का दोस्त नहीं

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अमेरिका के लोगों के बारे में एक बात काफी मशहूर है कि उनके लिए दोस्ती कोई मायने नहीं रखती। उनके लिए अपने हित सर्वोपरि हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो पाकिस्तान कब का टूटकर बिखर गया होता। अमेरिका पाकिस्तान की रग-रग को जानता था लेकिन उसने कई वर्ष तक उस पर नजर टेढ़ी नहीं की। 9/11 के हमले के बाद भी पाकिस्तान की असलियत सामने आ चुकी थी। परिदृश्य तो बदला पाकिस्तान की आर्थिक सहायता रोकी गई। पाक के एबटाबाद में घुसकर अमेरिकी जवानों ने लादेन को मार गिराया और समुद्र में बहा दिया। अमेरिका की आंख के इशारे से इस्लामाबाद एक मरघट में बदल सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। अमेरिका हमेशा ही डबल गेम चलता रहा है। अमेरिका उसका विध्वंस करता भी कैसे क्योंकि उसने अपने डॉलरों से ही पाकिस्तान को बनाया था। भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रेडवार का मुंह भारत की तरफ कर दिया है।

उन्होंने कहा है कि भारत से आने वाले सामानों पर 25 फीसदी का टैरिफ ठोक देना चाहिए। अमेरिका भारत और तुर्की को व्यापार में तरजीह देना बन्द करने की तैयारी में है। अमेरिका के जीएसपी प्रोग्राम के तहत आने वाले देश अगर अमेरिकी कांग्रेस की शर्तों पर खरे उतरते हैं तो अमेरिका में उनके कुछ उत्पादों पर टैरिफ नहीं लगता। डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को ऊंची दर से टैरिफ लगाने वाला देश बताया था। उन्होंने अमेरिका की हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिल का उदाहरण देते हुए कहा था कि जब हम भारत को मोटरसाइकिल भेजते हैं तो उस पर वहां 100 प्रतिशत शुल्क लगाया जाता है लेकिन जब भारत हमें मोटरसाइकिल भेजता है तो हम उनसे कुछ भी शुल्क नहीं लेते हैं। ट्रंप ने मिरर टैक्स यानी एक-दूसरे के अनुरूप टैक्स लगाने का संकेत तो बहुत पहले ही दे दिया था।

अमेरिका और चीन के बीच छिड़ा ट्रेडवार अभी थमा नहीं है कि अब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि भारत ने हर्ले डेविडसन से इम्पोर्ट ड्यूटी 100 फीसदी से कम करके 50 फीसदी करने की बात कही थी और ट्रंप ने इसका स्वागत भी किया था। अमेरिकी संसद को नोटिफिकेशन के 60 दिन बाद जीपीएस स्टेट्स हटता है। इससे भारत से अमेरिका भेजे जाने वाले सामान महंगे हो जाएंगे और भारत से अमेरिका होने वाला व्यापार कम हो सकता है। डोनाल्ड ट्रंप भारत को अपना खास दोस्त बताते रहे हैं और भारत भी अमेरिका से दोस्ती का दंभ भरता है लेकिन खास दोस्त भारत को झटका देने में कभी पीछे नहीं हटा। चाहे वह प्रवासी भारतीयों के लिए एच-1 बी1 वीजा प्रणाली हो या व्यापार। भले ही उसने भारत के प्रति बाद मेें नरम रुख अपनाया लेकिन कहीं न कहीं उससे भारतीय हित प्रभावित हुए हैं।

जीएसपी स्कीम के तहत भारत से अमेरिका जाने वाले 1930 उत्पाद आयात शुल्क देने से बच जाते थे। अमेरिका के कड़े रुख से अमेरिका में भारत की हस्तशिल्प चीजें, केमिकल, मत्स्य पालन से जुड़े और कृषि आधारित उत्पादों को आयात शुल्क देना पड़ेगा। अगर इसके आगे की बात करें तो इससे हजारों नौकरियों पर संकट कई मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर्स की प्रतिस्पर्धा को नुक्सान होगा। ज्यादातर केमिकल उत्पादों की कीमत 5 फीसदी की दर से बढ़ने की सम्भावना है जो कि भारत के कुल निर्यातक का एक बड़ा हिस्सा है। अमेरिका काफी समय से मेडिकल ​डिवाइसों पर लगने वाले प्राइसिंग कैप को हटाने की मांग कर रहा है जिससे अमेरिकी कम्पनियों को नुक्सान हो रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिका से आने वाले आईटी उत्पादों और कृषि क्षेत्र से जुड़े उत्पादों को अपने बाजार में ज्यादा पहुंच उपलब्ध कराए। भारत को जीएसपी का बहुत अधिक फायदा मिलता रहा है।

वर्ष 2017 में भारत उन विकासशील देशों में शामिल था जिसने 5.17 विलियन डॉलर का आयात टैक्स फ्री किया था। अमेरिका मेें 40 हजार करोड़ के भारतीय उत्पाद ड्यूटी फ्री उपलब्ध थे लेकिन अगर अमेरिका सख्त कदम उठाता है तो भारत की अर्थव्यवस्था को झटका झेलना पड़ सकता है। कहा कुछ भी जाए लेकिन भारत और अमेरिका के राजनयिक सम्बन्धों के केन्द्र में व्यापार ही है। हाल ही के दिनों में संरक्षणवादी आवाजें काफी बुलन्द हो उठी हैं। अमेरिका पहले ही भारत से आयात होने वाले स्टील और अल्युमीनियम पर टैक्स बढ़ा चुका है। इसके जवाब में भारत ने भी 29 अमेरिकी उत्पादों पर कर बढ़ाए थे जिनमें बादाम भी शामिल है।

भारत ने हाल ही में नई कॉमर्स नीति जारी की जिससे भारत में व्यापार कर रही अमेरिकी कम्पनियों एमाजॉन और वालमार्ट का व्यवसाय प्रभावित हुआ। भारत एक बड़ा बाजार है जिसे कोई भी देश छोड़ना नहीं चाहेगा। यद्यपि वाणिज्य सचिव का कहना है कि अमेरिका के भारत को जीएसपी से बाहर करने के फैसले से भारत के निर्यात पर कोई असर नहीं पड़ेगा। भारत के पास अभी 60 दिन पड़े हैं। व्यापार संगठनों को उम्मीद है कि कोई न कोई हल निकल आएगा। अमेरिका के साथ भारत के अच्छे सम्बन्ध एक सकारात्मक कदम हैं लेकिन यह परखना जरूरी है कि भारत के विश्वासी मित्र देश कौन-कौन से हैं। पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका पर बढ़ती हमारी निर्भरता को हमारे पारम्परिक और स्वाभाविक मित्र देशों के सम्बन्धों की कीमत से जोड़कर देखा जाने लगा है। भारत को संतुलित और सधी नीति अपनानी होगी।

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