जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को लेकर बहुत बहस हो चुकी है लेकिन अब फोकस धारा 35ए पर हो गया है। धारा 35ए समाप्त करने और उसे बनाये रखने के सम्बन्ध में याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं। धारा 35ए को लेकर प्रत्येक राजनीतिक दल अपनी विचाराधारा और समझ के अनुसार बहस करते रहे हैं लेकिन यह धारा 35ए कहां से आई और यह है क्या, इस सम्बन्ध में देशवासियों को पता होना ही चाहिये। इसकी शुरूआत 14 मई 1954 को हुई जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने एक अध्यादेश जारी करके अनुच्छेद 35 के साथ ए जोड़ दिया। भारतीय संविधान के अध्याय-3 में भारतीय नागरिकों को जो मानव अधिकार दिये गये हैं वे जम्मू-कश्मीर में भी लागू हो सकते थे लेकिन उन्होंने 35ए लागू कर जम्मू-कश्मीर को दबोच के रख दिया गया। अनुच्छेद 370 और धारा 35ए लोगों के सिर पर तलवार बनकर लटक रही है।
गौरतलब है कि 17 नवम्बर 1956 को स्वीकार किये गये जम्मू-कश्मीर संविधान में राज्य के स्थाई नागरिक को इस तरह से परिभाषित किया गया है कि वह 14 मई 1954 में राज्य का नागरिक हो या राज्य में दस वर्ष से रह रहा हो और उसने कानूनन राज्य में अचल संपत्ति हासिल की हो। राज्य के संविधान की धारा 51 के अनुसार जो व्यक्ति स्थाई नागरिक नहीं है वह विधान सभा/परिषद का सदस्य नहीं बन सकता। धारा 140 के तहत मतदान का अधिकार 18 वर्ष या उससे अधिक के स्थाई नागरिक को ही होगा। जो स्थाई नागरिक नहीं है वह राज्य में संपत्ति नहीं खरीद सकता। जो स्थाई नागरिक नहीं है वह राज्य सरकार द्वारा चलाये जा रहे किसी प्रोफेशनल कॉलेज में जॉब नहीं पा सकता और न ही उसे सरकारी फण्ड से किसी भी प्रकार की सरकारी ऐड मिल सकती है।
जुलाई 2015 में आरएसएस के थिंक टैंक ‘जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर’ ने पहली बार यह विचार प्रतिपादित किया कि अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाये। इस अनुच्छेद के खिलाफ एक याचिका द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई। इस याचिका में आपत्ति यह की गई है कि अनुच्छेद 35ए को संविधान में संशोधन की कानूनी प्रक्रिया का पालन करके नहीं जोड़ा गया है और धारा 370 में राष्ट्रपति को इतना अधिकार नहीं दिया गया है कि संसद का काम करते हुए संविधान का संशोधन कर दिया जाये। चूंकि इसकी बुनियादी संरचना संविधान प्रक्रिया का उल्लंघन करती है, इसलिए अनुच्छेद 35ए को नियम विरुद्ध घोषित कर दिया जाये।
कुल मिलाकर अनुच्छेद 35ए के खिलाफ मुख्य आपत्तियां इस प्रकार हैं- महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है कि वह राज्य के अस्थाई नागरिक से अपनी पसंद से विवाह नहीं कर सकती क्योंकि तब उनके बच्चों को संपत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा। राज्य से बाहर के बच्चों को राज्य के कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिलता। अच्छे डाक्टर राज्य में नहीं आ पाते। औद्योगिक व निजी क्षेत्र संपत्ति खरीदने पर लगे प्रतिबंध से प्रभावित होते हैं लेकिन यह तस्वीर का एक ही रुख है। जो लोग अनुच्छेद 35ए के समर्थन में हैं उनका कहना है कि इस पर आपत्ति सांप्रदायिक मानसिकता के लोग निहित स्वार्थों के कारण ही करते हैं। उनके अनुसार संविधान की विभिन्न धाराओं के तहत देश के अन्य राज्यों व क्षेत्रों को भी वही अधिकार प्राप्त हैं जो जम्मू-कश्मीर को प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र व कर्नाटक के अनेक क्षेत्रों में ‘स्थाई नागरिक’ के अलावा कोई अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता लेकिन इस पर कोई आपत्ति नहीं की जाती है।
स्वस्थ लोकतन्त्र में वैचारिक संघर्ष, बहस और नीतिगत विरोध एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यदि ऐसा न हो तो संसदीय शासन प्रणाली गूंगी, बहरी गुड़िया से अधिक कुछ भी नहीं। नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इस मुद्दे पर बहस तेज हुई है। भाजपा अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने का वायदा कर सत्ता में आई है। पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती लगातार धमका रही हैं कि अगर धारा 35ए हटाई गई तो कश्मीर में तिरंगे को कोई कंधा देने वाला नहीं रहेगा और कश्मीर फलस्तीन की तरह हो जायेगा। नैकां संरक्षक फारूक अब्दुल्ला और नैकां अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला भी इसे हटाने का विरोध कर रहे हैं। हुर्रियत के नाग और आतंकवादी संगठन भी आग-बबूला हैं। सच तो यह है कि धारा 35ए ने कश्मीर को एक स्वायत्तशासी टापू में बदल दिया है।
भारतीय संविधान से मुक्त होकर वह भारत के चीनी, चावल, पैट्रोल, गैस, सीमेंट को मजे से ले रहा है। इसी धारा की आड़ में कश्मीरी नेताओं ने दिल्ली आकर आलीशान बंगले बना लिये, होटल बना लिये, आम भारतीय वहां एक झौपड़ी भी नहीं खरीद सकता। नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और अमित शाह अब देश के गृहमंत्री हैं। इन दोनों को मिलकर भारत में एक नया इतिहास रचना होगा। गृहमंत्री अमित शाह उस पद पर विराजमान हैं जिस पद पर सरदार पटेल विराजमान थे। यही समय है कि सरकार धारा 35ए को हटा दे। अगर यह धारा हटा दी गई तो अनुच्छेद 370 का कोई महत्व ही नहीं रह जायेगा। राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिये अमित शाह को सरदार पटेल बनना ही होगा।