डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक देश, एक विधान और एक प्रधान का संकल्प 5 अगस्त, 2019 को उस समय पूरा हो गया था जब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35-A द्वारा दिए गए विशेष दर्जे को एक झटके में निरस्त कर ऐतिहासिक भूल को ठीक करने वाला साहसिक कदम उठाया था। अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर राज्य पर भारतीय संविधान की अधिकतर धाराएं लागू नहीं होती थीं, लेकिन अब जम्मू-कश्मीर के लोगों को वह सभी अधिकार प्राप्त हो गए हैं जो पूरे देश में लागू हैं। तब से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर में बहुत कुछ बदला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलते हुए सभी सुरक्षा एजैंसियां आतंकवाद से निर्णायक लड़ाई लड़ रही हैं। एक समय था जब जम्मू और कश्मीर में लगभग रोजाना बम धमाकों और पथराव की खबरें आती थीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों की कमर तोड़ कर रख दी है। ऐसे में बचे-खुचे और हताश आतंकवादियों ने राज्य में आतंक फैलाने के लिए नया हथकंडा अपना लिया। अब वे टारगेट किलिंग पर उतर आए हैं। टारगेट किलिंग के इसी पैट्रन के तहत गैर कश्मीरियों और कश्मीरी हिन्दुओं की हत्याएं की जा रही हैं। टारगेट किलिंग आतंकियों के लिए बहुत ही आसान होता है। इसके लिए न बहुत ज्यादा आतंकियों की जरूरत होती है और न ही बड़े हथियारों की। कम लोग छोटे हथियारों की मदद से निहत्थे लोगों को निशाना बना सकते हैं।
गृहमंत्री अमित शाह अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद चौथी बार जम्मू-कश्मीर के दौरे पर पहुंचे और उन्होंने राजौरी जिले के डांगरी गांव में आतंकी हमले में मारे गए हिन्दुओं के परिवारों से बातचीत की और उन्हें सांत्वना देते हुए भरोसा दिया कि दुख की घड़ी में सरकार उनके साथ खड़ी है। उन्होंने आतंकवादियों को चुनौती देते हुए कहा कि राजौरी हमले के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और आतंक पर प्रचंड वार होगा। गृहमंत्री ने तीन महीने में 360 डिग्री सुरक्षा का चक्र बनाने का भरोसा भी दिया है। गृहमंत्री पीड़ितों से मिलने और उनका दुख साझा करने गांव डांगरी जाने वाले थे लेकिन खराब मौसम के चलते उनका हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर पाया। तब उन्होंने फोन पर पीड़ित परिवारों से बातचीत की। आतंकवाद से पीडि़त परिवारों का कहना है कि आतंकी हमलों के बावजूद वह गांव नहीं छोड़ने वाले। आतंकवादी हमले में दो बेटों को खोने वाली महिला सरोज को गृहमंत्री ने भरोसा दिया कि उनके बेटों के हत्यारों को बख्शा नहीं जाएगा। गृहमंत्री ने राजभवन में अधिकारियों के साथ आतंकवाद के खात्मे को लेकर कई पहलुओं पर चर्चा की और सुरक्षा बलों को नई रणनीति के तहत काम करने पर विचार भी किया गया। इस बैठक से सीधे संकेत मिले हैं कि जम्मू-कश्मीर में आतंक के समूल नाश के लिए सरकार कुछ बड़ा करने जा रही है।
गृहमंत्री का मिशन कश्मीर यही है कि जितनी जल्दी हो सके राज्य में शांति स्थापित हो तथा गैर कश्मीरियों और हिन्दुओं को अपनी सुरक्षा का भरोसा कायम हो। जम्मू-कश्मीर में इस वर्ष अप्रैल या मई में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। शहरी स्थानीय निकाय और पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल भी अक्तूबर 2023 में समाप्त होने जा रहा है। सम्भावना यह भी है कि तीनों चुनाव एक साथ हो सकते हैं। अमित शाह ने अगले तीन महीनों में राज्य में आतंकवाद के सफाये का जो टारगेट रखा है उसका अर्थ यही है कि सुरक्षा के हालात ठीक कर राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरूआत की जा सके। चुनावों की सुगबुगाहट को देखते हुए सियासी दलों के अलावा प्रशासन भी सक्रिय हो गया है। राज्य में परिसीमन का काम पूरा हो चुका है और मतदाता सूचियों के प्रकाशन पर काम किया जा रहा है। राज्य में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद बहुत कुछ बदला है। 2016 में चरम पर हुई पत्थरबाजी अब नहीं हो रही। हिंसा की घटनाएं भी नहीं हुईं।
आतंक का गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रोें में भी स्थिति शांत है। इस वर्ष 25 लाख से ज्यादा पर्यटक जम्मू-कश्मीर पहुंचे हैं। भीड़भाड़ और लोगबाग, सब कुछ खुली हवा में सांस लेने वाली कश्मीरियत के अंदाज में दिखाई देते हैं। गृहमंत्री अमित शाह पिछले वर्ष नवम्बर में जम्मू-कश्मीर गए थे, तब उन्होंने बारामूला के खजबाग में डिग्री कालेज के मैदान में जनसभा की थी, जिसमें लगभग 35 हजार से अधिक लोगों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। क्या कोई कल्पना कर सकता था कि एक जनसभा में हजारों लोग इकट्ठे हो जाएंगे? जम्मू-कश्मीर का प्रशासन भी आवाम की इच्छा के अनुरूप काम कर रहा है, जिससे जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाएं मिल रही हैं। राज्य में अमन भी है लेकिन राख के नीचे चिंगारी भी दबी है। आतंकवादी अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के इशारे पर टारगेट किलिंग कर रहे हैं। सरकार का एक ही लक्ष्य है आतंकवाद को खत्म करना और लोगों का भरोसा जीतना। कश्मीरी आवाम भी अपने बच्चों का भविष्य सुन्दर बनाना चाहता है, शांति चाहता है। चुनावी प्रक्रिया में राष्ट्रवादी ताकतों का उदय होगा और कश्मीर में नई सुबह का इंतजार रहेगा। उम्मीद है कि कश्मीर फिर से धरती का जन्नत बन जाएगा।