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अमृत महोत्सव : अब जाकर कम हुआ दर्द-7

किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की गगनचुम्बी इमारतों की ऊंचाई से नहीं नापी जा सकती। राष्ट्र की ऊंचाई हमेशा वहां के राष्ट्र नायकों और लोगों के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने की शैली से मापी जाती है।

किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की गगनचुम्बी इमारतों की ऊंचाई से नहीं नापी जा सकती। राष्ट्र की ऊंचाई हमेशा वहां के राष्ट्र नायकों और लोगों के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने की शैली से मापी जाती है। अमृत महोत्सव के दौरान इस बात का विश्लेषण करना भी जरूरी है कि हम ने क्या खोया, क्या पाया। भारत के हिस्से में कितना अमृत और कितना विष आया। भारत ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक अनेक प्रधानमंत्रियों को देखा। आजादी के बाद की विषम चुनौतियों के बावजूद सभी ने भारत के विकास में यथाशक्ति और यथासम्भव योगदान दिया। अपवाद स्वरूप संकीर्णता, स्वार्थ, राजनीतिक विसंगतियों, आर्थिक अपराधों, शोषण, बड़े-बड़े घोटालों, नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार और प्रशासनिक जटिलताओं के चलते आजादी के वास्तविक अर्थों को धुंधला किया। बार-बार यह सवाल उठा कि क्या आजादी हमें यह सब करने के​ लिए मिली थी। इन सब अवरोधों के बावजूद भारत ने अपना रास्ता स्वयं खोजा और राष्ट्र लगातार सशक्त होता गया। चुनौतियों से जूझने की क्षमता भारत को अपनी आजादी के उदय काल से ही प्राप्त हो गई थी। आजाद भारत के निर्माताओं ने जिस सूझबूझ, कर्मठता और बुलंद हौंसलों के साथ हर स्थिति से लोहा ​लिया, वह इतिहास के स्वर्णिम पन्ने हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हीं पन्नों के एक राष्ट्र नायक हैं। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का दर्द समूचे राष्ट्र ने महसूस किया लेकिन मोदी सरकार में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से एक झटके में अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा कर दी जिसने कश्मीर को बदल कर रख दिया। 
तीन साल पहले 5 अगस्त को मोदी सरकार ने इतना बड़ा कदम उठाया कि समूचा विपक्ष चौंक उठा। सरहद पार बैठे दुश्मनों ने भी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि मोदी सरकार दूसरे कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर इतनी बड़ी चोट कर सकती है। बहुत कुछ कहा गया। कश्मीर घाटी के हाथ से निकल जाने के दावे भी किए गए लेकिन कुछ नहीं हुआ। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में बहुत ही कुशल रणनीति के साथ अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान कर दिया। अनुच्छेद 370 ही जम्मू-कश्मीर के विकास में बड़ा रोड़ा था। कश्मीर घाटी में गरीबी, बेरोजगारी, औद्योगिक विकास का न होना। युवा शक्ति का दिशाहीन और नेतृत्वहीन होना, लगातार बंद भारत विरोधी प्रदर्शनों और  हुर्रियत के नागों द्वारा अलगाव का विष फैलाना आम बात थी। कातिल आतंकवादियों ने कश्मीर की आवाम को बंधक बना के रख दिया था। सरहद पार के दरिन्दे जो अपने आप को फिदाइन कहते थे और जिहाद-जिहाद की रट लगाते थे वे जिस घर में पनाह लेते थे उनका सबसे पहला निशाना उस घर की औरतें होती थीं। जरा सा भी किसी  ने विरोध किया तो व उस घर के छोटे बच्चों तक का कत्ल करने से नहीं चूकते थे। आज भी घाटी में 75-80 साल के बुजुर्ग मौजूद हैं, जिन्होंने ऐसे मंजर सामने देखे हैं।
हुुर्रियत के नागों ने अपने बच्चे तो अंग्रेजी स्कूलों में या फिर ​विदेशों में पढ़ाए। लेकिन कश्मीरी बच्चों के हाथों में किताबों की जगह पत्थर पकड़वा दिए। अनुच्छेद 370 हटने के बाद पत्थरबाज और आतंकवादी संगठन के झंडे लहराए जाते थे, वहां अब तिरंगे फहराए जा रहे हैं। श्रीनगर के लालचौक पर जहां कभी तिरंगा फहराना अपराध हो गया था वहां अब शान से तिरंगा फहर रहा है। जम्मू-कश्मीर के लोगों को आतंकवाद से काफी राहत मिली है। अब स्थानीय निवासी बनने के नियमों में परिवर्तन हो चुका है। घाटी से बाहर के लोग भी कश्मीर में गैर कृषि योग्य जमीन खरीद सकते हैं। अब जम्मू-कश्मीर में वही कानून लागू हैं  जो पूरे देश में लागू हैं और कश्मीरी अवाम को वह सब सुविधाएं मौजूद हैं जो पूरे देश के लोगों को मिल रही हैं। 
बुरहान वानी गैंग का सफाया होने के बाद आतंकवादी सरगनाओं की उम्र काफी कम रह गई है। इस  वर्ष अब तक 125 से ज्यादा आतंकवादी मारे जा चुके हैं। दर्द सिर्फ इस बात का है कि कट्टरपंथी ताकतों को कश्मीर में शांति गवारा नहीं हो रही और उन्होंने अब दुबारा से टारगेट किलिंग शुरू कर दी है। कश्मीरी पंडितों को फिर से निशाना बनाया जा रहा है। इस सबके बावजूद आतंकवाद के दिन अब बचे-खुचे ही लग रहे हैं। सुरक्षा बलों का आपरेशन आल आऊट काफी सफलतापूर्वक चल रहा है। छिटपुट आतंकवादी घटननों के बीच कश्मीर में पर्यटन बढ़ा है और इस बार कश्मीर के पर्यटक स्थलों पर भारी भीड़ देखी गई है। चिनार के पेड़ अब उदास नहीं हैं। डल झील की लहरें पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं। बाजार फिर से गुलजार हो चुके हैं। वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर में विकास की धारा लगातार बहेगी और कश्मीरी आवाम शांति से अपना जीवन जी सकेगा। अब जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव इस वर्ष के अंत तक कराए जाने के संकेत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दे दिए हैं और सम्भव है कि जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाए। जब कश्मीरी अवाम राजनीतिक गति​विधियों से जुड़ेगा तो निश्चित रूप से स्थितियां बदलेंगी और वह राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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