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अमृत महोत्सवः दर्द अभी जिंदा है-6

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने हमें बहुत जख्म दिए हैं। जम्मू-कश्मीर ही नहीं उसने पंजाब में भी आतंकवाद की आग सुलगाई थी। लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी।

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने हमें बहुत जख्म दिए हैं। जम्मू-कश्मीर ही नहीं उसने पंजाब में भी आतंकवाद की आग सुलगाई थी। लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी। पाकिस्तान ने हमें बहुत जख्म दिए हैं। उनमें से कुछ को याद करके रुह कांप उठती है।
* आतंकवादियों ने लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद तक को नहीं बख्शा।
* जम्मू के रघुनाथ मंदिर से लेकर गुजरात के अक्षरधाम में खून बहाया गया।
* मुम्बई पर आतंकवादी हमला किया गया।
* पुलवामा में हमारे जवानों का खून बहाया गया।
* जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण भारत तक बम धमाके कराए गए।
* घाटी को कश्मीरी पंडितों से खाली कराने के षड्यंत्र भी पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई और पाक समर्थित अलगाववादियों की साजिश का परिणाम थी।
भारत आज तक जम्मू-कश्मीर में पाक प्रायोजित छद्म युद्ध का मुकाबला कर रहा है। कितनी ही महिलाओं का सिंदूर उसने उजाड़ा, कितनी ही मांओं से उनके बेटे छीन लिए गए, कितनी ही बहनों के भाइयों को मौत के ​घाट उतारा गया। हमारे हजारों जवान शहादतों को प्राप्त हुए।  इतना खून बहाने के बावजूद पाकिस्तान को क्या हासिल हुआ?
पाकिस्तान का इतिहास ऐसा रहा है कि उनकी पांच साल से पहले ही प्रधानमंत्री पद गंवा देने की आशंका लगातार बनी हुई थी। 75 साल के इतिहास में आज तक पाकिस्तान में 23 व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं, लेकिन अब तक कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया, यही​ नहीं 1958, 1977 और  1999 में सेना निर्वाचित सरकार को हटाकर सत्ता पर काबिज हो चुकी है, यानी पाकिस्तान में आर्मी राज का भी अच्छा खासा इतिहास है।
एक अलग राष्ट्र के रूप में सामने आने के बाद से ही पाकिस्तान में कई बार आर्मी सत्ता अपने हाथों में ले चुकी है। 75 वर्षों के इतिहास में दशकों तक पाकिस्तान में आर्मी सत्ता का केन्द्र रही है। पाकिस्तान में 1958 से 1971 तक सैन्य शासन रहा, 1977 से 1988 तक और 1999 से 2008 तक पाकिस्तान में लोकतंत्र को कुचल कर आर्मी सत्ता में रही। इसके अलावा भी 1951, 1980 और 1995 में भी पाकिस्तानी सेना ने सत्ता हथियाने  की कोशिश की थी, लेकिन वह असफल रही। यही नहीं 1953-54 मेें पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी एक बार संवैधानिक तख्तापलट कर चुके हैं। जनरल अयूब खान, जनरल याहया खान, जनरल जिया उल हक और  जनरल परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के ऐसे सैन्य अधिकारी रहे, जिन्होंने आर्मी के बूटों तले लोकतंत्र को कुचल कर रख दिया। पाकिस्तान ने जुल्फिकार अली भुट्टो का शासन भी देखा और बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ का शासन भी देखा।
जून 2013 में नवाज शरीफ एक बार फिर चुनाव जीतने के बाद सत्ता में लौटे, लेकिन पनामा पेपर लीक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2017 में उन्हें इस पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। इस तरह से उनका करीब 4 साल, 2 महीने के कार्यकाल का अंत हुआ। पार्टी ने शाहिद खकान अब्बासी को सत्ता सौंपी और 300 दिन से अधिक समय तक वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे। साल 2018 के चुनाव में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई और इमरान खान देश के 22वें प्रधानमंत्री बने। गरीबी और महंगाई से जूझ रहे पाकिस्तान में साल 2022 की शुरूआत में हालात ऐसे बने कि इमरान के सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ दिया। उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और कई दांव-पेंच के बाद आखिरकार उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने ही पड़ी। अब उनकी जगह शाहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए हैं। 
इस समय पाकिस्तान भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। महंगाई रिकार्ड स्तर पर है। देश में पहली बार विकास दर नकारात्मक दर्ज की गई है। इस समय पाकिस्तान के ऊपर 51.724 ट्रिलियन का कर्ज है। पाक के हुकमरान कटोरा लेकर खड़े हैं। पाकिस्तान ने जितना धन आतंकवाद की खेती करने पर लगाया है, काश! वह उस धन का इस्तेमाल गरीबी और निरक्षरता दूर करने में, उद्योगों को स्थापित करने में लगाता। पाक के हर राज्य में असंतोष है। सिंध और ब्लूचिस्तान में आक्रोश बढ़ रहा है। अगर शहबाज सरकार आर्थिक स्थिति को सम्भाल नहीं पाई तो अराजकता फैल जाएगी, इससे देश में हिंसा फैलने का खतरा बन गया है। इस स्थिति में पाकिस्तान टूट भी सकता है। (क्रमशः)
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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