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अमृत महोत्सवः दर्द अभी जिंदा है

भारत आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के संदर्भ में अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृत महोत्सव का अर्थ नए विचारों का अमृत है। यह एक ऐसा महा उत्सव है जिसका अर्थ स्वतंत्रता की ऊर्जा का अमृत है।

भारत आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के संदर्भ में अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृत महोत्सव का अर्थ नए विचारों का अमृत है। यह एक ऐसा महा उत्सव है जिसका अर्थ स्वतंत्रता की ऊर्जा का अमृत है। क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों, देशभक्तों की कुर्बानियों के बाद मिली आजादी के प्रति समर्पित रहने का उत्सव है। आजादी के 75 साल पूरे होने पर साबरमती आश्रम से अमृत महोत्सव  की शुरूआत 12 मार्च, 2021 से हुई थी। जिसके तहत पहला अमृत महोत्सव 15 अगस्त, 2021 को मनाया गया। यह कार्यक्रम 15 अगस्त, 2023 तक चलेगा। आजादी की कहानी को वर्तमान पीढ़ी करीब से नहीं जान पाई क्योंकि उन्होंने इसे केवल पाठ्य पुस्तकों में ही पढ़ा है। युवा पीढ़ी के दिलो-दिमाग पर देश प्रेम की भावनाओं का संचार हो इसलिए ऐसे उत्सवों की जरूरत होती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत में करोड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें इस राष्ट्र से बेपनाह मोहब्बत है। वे अपने राष्ट्र के लिए बड़े ​चिंतित रहते हैं। भारत माता का वरदहस्त हम सब पर बना रहे यह मंगल कामना सदा और  सर्वदा बनी रहती है। आजादी के 75वें वर्ष में मुझे कई ऐसे परिवारों के लोग मिले जिनके पूर्वजों ने देश के बंटवारे का दर्द झेला।  आज भी भारत-पाक बंटवारे के दर्द को यह परिवार भूल नहीं पाया।  भारत और  पाकिस्तान का इतिहास एक है, सांस्कृतिक विरासत सांझी है। मगर दोनों के बीच इतना अविश्वास और कड़वाहट है कि दोनों देश एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी नहीं दुश्मन मानते हैं। 
अमृत महोत्सव अभियान के दौरान इस बात का विश्लेषण करना होगा कि हमने क्या पाया क्या खोया। मेरे पिता स्वर्गीय अश्विनी कुमार के लिखे अनेक लेख आज भी सुरक्षित हैं। यह लेख उन्होंने अपने पिता अमर शहीद रमेश चन्द्र जी द्वारा बताए गए संस्मरणों के अनुरूप लिखे थे। मेरी इच्छा यही है कि राष्ट्र के लोग इन तथ्यों को अवश्य जानें क्योंकि युवा शक्ति से हमारी बड़ी अपेक्षाएं हैं। 75 वर्ष बाद भी हिन्दुओं  का दर्द जिंदा है। आजादी के बाद पिछले 70 वर्षों में भारत और पाकिस्तान के बीच चार बार जंग हो चुकी है। अंतिम बार 1999 में भारत को अपनी ही जमीन पर पाकिस्तान की फौजों से लड़ना पड़ा था और तब जंग का औपचारिक  ऐलान नहीं हुआ  था।
बात 15 अगस्त, 1947 से ही प्रारम्भ करें। अहिंसा औंधे मुंह जा गिरी। भारत दो टुकड़े हो गया। भारत का बुढ़ापा जीत गया और भारत की जवानी समय से एक दिन पूर्व ही तख्ते पर झूल गई। अंग्रेज गए और भारत को दोफाड़ कर गए। उधर लियाकत अली जिन्ना नए मुल्क का सृजन दिवस 14 अगस्त को मना रहे थे। इधर 14 अगस्त की आधी रात को इसे ‘ट्रीस्ट विद डैस्टिनी’ कहकर नेहरू भारत देश की जनता से प्रधानमंत्रित्व की बधाइयां ले रहे थे। पर एक मंजर ऐसा भी था, जिसे केवल सच की कलम से ही बयान किया। लाखों लोग पाकिस्तान से उजड़ कर आ गए। दस लाख से ज्यादा हिन्दू, मुस्लिम और सिख मार दिए गए। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2 लाख से अधिक बच्चे नृृशंसता का शिकार हो गए। मानवता काल कवलित हो गई। चिनाब लहूलुहान हो गई। लेकिन इस मुल्क के नेताओं ने सतियों के शवों से भरे हुए वे कुएं नहीं देखे जो हिन्दू और ​सिख नारियों द्वारा सतीत्व बचाने के लिए भर दिए गए थे।
आज के दिन किसी को यह आज्ञा नहीं थी कि वह साबरमती  के संत को अमृता द्वारा रचित इन पंक्तियों को सुना दें :-
‘‘इक रोई सी धी पंजाब दी,  तूं लिख-लिख मारे वैंण
अज्ज लखां धीयां रोंदीयां,  तैनूं वारिस शाह नूं कैण।
उठ दरदमंदा दया दरदीया,  चल तक आपणा पंजाब,
अज्ज वेड़े लाशां विछियां,  ते लहू नाल भरी चनाब।’’
अगर बापू ने उपरोक्त दृश्य देख लिए होते, तो इतनी सच्चाई उनमें अवश्य थी कि वे ‘अहिंसा और कायरता’ को फिर से परिभाषित करने को विवश हो जाते। बस यहीं से शुरू होती है वह दर्दनाक कहानी जो आज मैं सुनाना चाह रहा हूं। उधर पाकिस्तान बना, हरा झंडा लहराया, और वहां के नेताओं के हौंसले बुलंद हो गए। जिसे देखो वही स्वयं को तीसमारखां समझने लगा। ‘ये आजादी हमने अपनी कुव्वते बाजू से हासिल की है’ जिन्ना ने ऐलान कर दिया। नारा-ए-तकबीर-अल्ला हो अकबर, के नारों से पाकिस्तान गूंज उठा।
जिन्ना और लियाकत अली ने फैसला किया कि ‘आपरेशन कश्मीर’ नामक एक ऐसा अभियान शुरू किया जाए जिसके तहत पहले महाराजा हरि सिंह से ‘यथास्थिति समझौते’ की समाप्ति का ऐलान हो तथा साथ ही हमला भी कर दिया जाए। पहले तो आपरेशन बड़ा गुपचुप रहा और अन्दर ही अन्दर ​तैयारी चलती रही, परन्तु बाद में कराची से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘डान’ ने सबसे पहले पाकिस्तान के मेजर खुर्शीद अनवर (सेवानिवृत्त) का एक इंटरव्यू छापा जिसमें यह दावा किया गया था कि जल्द ही कश्मीर पाकिस्तान का एक हिस्सा हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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