लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

अनंत सिंह की अनंत कथा

बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का अपना इतिहास रहा है। लगभग हर पार्टी और हर जाति में अपराधी रहे हैं। राजनीतिक दलों और समुदायों ने भी उन्हें नायक के रूप में स्वीकार कर लिया।

बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का अपना इतिहास रहा है। लगभग हर पार्टी और हर जाति में अपराधी रहे हैं। राजनीतिक दलों और समुदायों ने भी उन्हें नायक के रूप में स्वीकार कर लिया। राजनीति का अपराधीकरण ऐसी समस्या बन गया कि आज तक हम इससे मुक्त नहीं हो पाये। आज भी अपने-अपने इलाकों के बाहुबलियों की धमक मौजूद है। अनेक बाहुबलियों को जनता ने धूल चटाई तो अनेक जेल की सलाखों के पीछे चले गये। बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं की पैठ काफी पुरानी है लेकिन 80 के दशक से वह इतनी परवान चढ़ी कि कई दबंग तो दहशत के दम पर विधानसभा से लेकर संसद तक पहुंच गये। 
अदालतों ने न्याय किया तो उन्होंने अपनी विरासत अपनी पत्नी और बच्चों को सौंप दी। छूट मिली तो फिर राजनीति के अखाड़े में पहुंच गये। मोहम्मद शहाबुद्दीन, काली पांडे सूरजभान, आनंद मोहन, पप्पू यादव आदि नाम काफी चर्चित रहे हैं। अब बिहार में मोकामा से बाहुबली विधायक अनंत कुमार सिंह कुख्यात हो चुके हैं। उनके गांव स्थित घर से पुलिस की सात घंटे तक छापेमारी में ए के-47 राइफल के अलावा दो ग्रेनेड, 26 जिंदा कारतूस और मेगजीन बरामद की गई। अनंत कुमार सिंह की गिरफ्तारी किसी भी क्षण हो सकती है। 
अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी लोकसभा का चुनाव मुंगेर से लड़ी थी। उनका मुकाबला जनता दल (यू) के ललन सिंह से था और ललन सिंह भारी मतों से जीते थे। अब अनंत सिंह ने ललन सिंह पर आरोप लगाया है कि यह सब कुछ उनके इशारे पर हो रहा है, उनके खिलाफ साजिश हो रही है क्योंकि ललन सिंह नहीं चाहते कि 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ू। उनके आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो जांच का विषय है लेकिन यह भी सच है कि कभी अंनत सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सिक्कों से तोला था। अनंत सिंह के घर पर राबड़ी देवी के कार्यकाल में भी छापेमारी हुई थी और घंटों तक फायरिंग हुई थी। 
तब की राजनीतिक परिस्थिति में अनंत सिंह पर नीतीश कुमार और ललन सिंह का आशीर्वाद रहा। ललन सिंह ने ही अनंत सिंह को नीतीश कुमार के समर्थन में काम करने के लिये मनाया था। नीतीश कुमार के सत्ता में आते ही अनंत सिंह की पो बारह हो गई। चर्चा है कि उन्होंने औने-पौने दाम पर पटना में काफी सम्पत्ति खरीदी। अनंत सिंह ने बिहार विधानसभा का चुनाव भी निर्दलीय के तौर पर जीता और अनंत सिंह की दबंगई की कहानियां विस्तार पाती गई। बाहुबली बन कर उसने जो मन में आया किया। अब जबकि नीतीश कुमार और ललन सिंह का बरदहस्त उस पर से हटा तो पुलिस ने एक्शन किया। पुलिस ने जो भी एक्शन लिया उसका क्षेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही जाता है क्योंकि देर से ही सही उन्होंने कार्रवाई कर हिम्मत तो दिखाई है।
अब सवाल यह है कि राजनीति में अपाधियों का अपने समर्थन में इस्तेमाल और विरोधी हो जाने पर पुलिस एक्शन का खेल कब तक चलता रहेगा। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीति के अपराधीकरण पर कड़ा रुख अपनाया था और सजायाफ्ता राजनीतिज्ञों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध का कानून बनाया गया था लेकिन आज की आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग सत्ता की सीढि़यां चढ़ने में सफल हो जाते हैं। एक प्रश्न और भी यहां बड़ा प्रासंगिक है कि आखिर अपराधी राजनीति में ही क्यों आना चाहते हैं? दुनिया का कोई पेशा उन्हें पसंद क्यों नहीं? अपराधियों की यह इच्छा कभी नहीं होती कि कम्प्यूटर चलाना सीखें, इंजीनियर बने, डाक्टर बने, केवल राजनीति की ओर वे क्यों दौड़ते हैं? इसका एक कारण यह है कि यहां किसी भी शैक्षणिक योग्यता की कोई जरूरत नहीं। राजनीति में प्रवेश के लिये कोई टेस्ट नहीं होता।
दरअसल चुनावों में विजय हासिल करने के लिये राजनीतिज्ञों ने हमेशा दबंगों का इस्तेमाल किया। दबंग इस्तेमाल भी होते रहे लेकिन उन्होंने सोचा कि जब हम दूसरों को चुनाव जिता कर विधानसभा और संसद में भेज सकते हैं तो यह काम अपने लिये क्यों नहीं कर सकते। बिहार के जंगल राज के दिनों में क्या हुआ, उसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। वह काल लूट, हत्या, खून, अपहरण और बलात्कार से भरा राज था। ऐसी-ऐसी घटनायें हुई जब दिनदहाड़े अच्छे घरों की बेटियां उठा ली गई और प्रशासन सोता रहा।
– क्या पत्रकार नगर कांड भुलाया जा सकता है?
– क्या शिल्पा जैन कांड भूला जा सकता है।
– क्या चम्पा विश्वास कांड भूला जा सकता है।
अगर कृष्णैया जैसे आईएएस अधिकारी ने जुबान खोली तो उसकी हत्या कर दी गई। तब भी एक सांसद के घर से प्रतिबंधित हथियार, चोरी की बंदूकें और राइफलें बरामद हुई थी। आज भी बिहार में लगातार हत्याएं हो रही हैं और कानून व्यवस्था की स्थिति कोई ज्यादा अच्छी नहीं। नीतीश कुमार को अपराधियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने होंगे। अनंत सिंह की अनंत कथा को पुनः पढ़ना होगा कि आखिर उसे बाहुबली किसने बनाया। देश की जनता को भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को राजनीतिक रूप से ठुकराना होगा क्योंकि ऐसे लोग समाज में विचरण के लायक ही नहीं हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

12 + seven =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।