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अर्थव्यवस्था को एक और झटका

2019 में अर्थव्यवस्था को लेकर काफी नकारात्मक खबरें आती रही हैं। आर्थिक मंदी को लेकर भी बड़े सवाल खड़े होते रहे हैं। आर्थिक मंदी को अनेक अर्थशास्त्रियों ने काफी भयानक माना तो कुछ ने इसे कुछ समय के लिए आर्थिक सुस्ती करार दिया।

2019 में अर्थव्यवस्था को लेकर काफी नकारात्मक खबरें आती रही हैं। आर्थिक मंदी को लेकर भी बड़े सवाल खड़े होते रहे हैं। आर्थिक मंदी को अनेक अर्थशास्त्रियों ने काफी भयानक माना तो कुछ ने इसे कुछ समय के लिए  आर्थिक सुस्ती करार दिया। अब बीत रहे वर्ष के अंतिम दिनों में रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की। जिसमें कहा गया है कि सरकारी बैंकों का एनपीए अभी और बढ़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि रियल्टी क्षेत्र को दिए गए कर्ज के मामले में एनपीए का अनुपात जून 2018 के 5.74 की तुलना में 2019 में 7.3 फीसदी हो गया है। 
सरकारी बैंकों के मामले में तो स्थिति और भी खराब है क्योंकि ऐसे कर्ज के मामले में उनका एनपीए 15 फीसदी बढ़कर 18.71 फीसदी हो गया है। आंकड़े बताते हैं कि 2016 में रियल्टी क्षेत्र से सम्बन्धित ऋण में एनपीए का अनुमान कुल बैंकिंग प्रणाली में 3.90 फीसदी और सरकारी बैंकों में 7.06 फीसदी था, जो 2017 में बढ़कर 4.38 और 9.67 फीसदी पर पहुंच गया है। रियल्टी क्षेत्र को दिया गया कुल ऋण लगभग दोगुणा हो चुका है। देशवासी नए वर्ष में अर्थव्यवस्था के सुधरने की उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन जो हालात दिखाई दे रहे हैं, उससे साफ है कि नया वर्ष भी चुनौतियों से भरा होगा। अर्थशास्त्री पहले ही यह अनुमान व्यक्त कर चुके हैं कि नए वर्ष में भी रोजगार के अवसर सृजित होने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे हैं। इससे बेरोजगारी को लेकर ​चिंता बढ़ गई है।
बीते दिनों अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था गम्भीर संकट में है और नीतिगत सुधारों की तत्काल जरूरत है। इसके बाद मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविन्द सुब्रमण्यन ने भी कुछ ऐसी ही बातें कही थीं। उनका कहना था कि भारत की अर्थव्यवस्था आईसीयू की तरफ जा रही है, यह कोई सामान्य आर्थिक संकट नहीं है, बल्कि स्थिति बहुत गम्भीर है। अर्थव्यवस्था से जुड़े जितने भी प्रमुख संकेतक हैं उनमें या तो नकारात्मक वृद्धि दर दिख रही है या फिर नाममात्र की बढ़ौतरी।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय टिवन  बैलेंस शीट (टीबीएस) की दूसरी लहर का सामना कर रही है जिसके चलते इसमें असाधारण सुस्ती आ गई है। टीबीएस की समस्या तब पैदा होती है जब निजी कम्पनियों द्वारा लिया गया विशाल कर्ज एनपीए में तब्दील हो जाता है। हाल  ही के वर्षों में बहुत से एनबीएफसी ऐसे हैं जिन्होंने ज्यादातर पैसा रियल एस्टेट में ही लगाया है। भारत के आठ शहरों में ऐसे मकानों और फ्लैट्स का आंकड़ा दस लाख है जिनका कोई खरीददार नहीं है। इनकी कीमत अनुमानतः 8 लाख करोड़ है। यानी आगे खाई साफ नजर आ रही है। कुछ रियल एस्टेट कम्पनियों ने तो ग्राहकों के साथ सीधी धोखाधड़ी की, जो अब दिवाला प्रक्रिया में उलझी हुई हैं।
अर्थव्यवस्था की सुस्ती के बीच भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि आर्थिक नरमी के ​िलए केवल वैश्विक कारक पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। रिजर्व बैंक आिर्थक नरमी, मुद्रास्फीति में वृद्धि, बैंकों और एनबीएफसी की वित्तीय हालत को दुरुस्त करने के लिए कदम उठाएगा। रिजर्व बैंक ने समझ लिया था कि आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ने वाली है। इसलिए  उसने फरवरी से ही रेपो दर में कटौती शुरू कर दी थी। लगातार बढ़ती महंगाई के कारण सरकार को लगातार झटका लगा है। मंदी से जूझ रही सरकार आर्थिक वृद्धि को किसी भी कीमत पर तेज करना चाहती है। सरकार की कोशिशों को पिछले काफी समय से आरबीआई का साथ मिल रहा है लेकिन सफलता नहीं मिल रही। खुदरा महंगाई इस स्तर पर आ गई है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
इस समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नए बजट की तैयारी कर रही हैं। वह लगातार उद्योग जगत और अन्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों से मिल रही हैं। देखना होगा कि अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए वित्त मंत्रालय क्या कदम उठाता है। बीत रहे वर्ष में भी कई बैंक घोटाले सामने आए जिनका संबंध भी रियल एस्टेट कम्पनियों से रहा है। आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए सरकार को हर मोर्चे पर उपाय तेज करने होंगे। सीएए, एनआरसी और एनपीआर में फंसी मोदी सरकार को मंदी के साथ-साथ महंगाई से भी जूझना होगा।

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