कनाडा के मंदिरों में हिन्दू श्रद्धालुओं पर खालिस्तान समर्थकों के हमले भारत के लिए पूरी तरह अस्वीकार्य हैं। ब्राम्पटन के हिन्दू सभा मंदिर और वैंकूवर में हिन्दू मंदिर के बाहर हिन्दू श्रद्धालुओं के साथ मारपीट आैर हाथापाई की तस्वीरें पहले कभी नहीं देखी गईं। यह पहला मौका है कि भारत के एक समुदाय ने कनाडा की जमीन पर अपने ही देश के दूसरे समुदाय पर हमला किया है। दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं भारत सरकार के खिलाफ एक साजिश हैं। ब्राम्पटन के मंदिर में हुई मारपीट में कनाडा पुलिस का अधिकारी हरिंदर सोही भी शामिल था, जिसे अब निलम्बित कर दिया गया है। पील रीजनल पुलिस ने उसकी पहचान सार्जेंट के तौर पर की है। सोही 18 साल से पुलिस में है। उसे खालिस्तानी झंडा लिए हुए कैमरे में कैद किया गया जिसमें वह भारत विरोधी नारे लगाता नजर आ रहा है। कनाडा पुलिस में अगर खालिस्तान समर्थक तत्व शामिल हैं तो उससे न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है। कनाडा में भारतीय दूतावास हर साल नवम्बर के महीने में काउंसलर सर्विस कैम्प लगाता है। मंदिर और गुरुद्वारों दोनों जगह पर सर्विस कैम्प लगते हैं। इन कैम्पों में पैंशनधारकों को आ रही दिक्कतों को निपटाया जाता है। खालिस्तान समर्थक तत्वों के हिंसक एजैंडे की आशंका पहले से ही थी। फिर भी पुलिस ने उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं की।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि पिछले एक साल से भारत के खिलाफ इतना कुछ क्यों हो रहा है। इसके पीछे राजनीति तो है ही लेकिन भारत विरोधी एजैंडे के पीछे जगमीत सिंह की बड़ी भूमिका है जो कनाडा की नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का प्रधान है और जस्टिन ट्रूडो सरकार का इकलौता राजनीतिक सहारा बना हुआ है। 338 सीटों वाले हाउस ऑफ कॉमन में ट्रूडो की पार्टी के पास 153 सीटें हैं। बहुमत के आंकडे़ से दूर ट्रूडो को एनडीपी का बाहर से समर्थन है। एनडीपी की 25 सीट हैं। एनडीपी का सपोर्ट खत्म होता है तो ट्रूडो की सरकार अल्पमत में आ जाएगी और अक्तूबर 2025 की की जगह कनाडा में अभी आम चुनाव हो जाएंगे। ट्रूडो 10 साल का कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं, इसीलिए वो जगमीत के आगे सरेंडर मुद्रा में हैं। जगमीत जैसे चाह रहा है, ट्रूडो सरकार का इस्तेमाल अपनी सियासी दुकान चमकाने के लिए कर रहा है। कनाडा की पॉलिटिक्स में जगमीत सिंह सिखों का सबसे बड़ा लीडर बनना चाहता है। इसके लिए उसे इससे बेहतर सियासी माहौल नहीं मिल सकता। इकॉनोमी, एंप्लॉयमेंट और इमीग्रेशन को लेकर कनाडा में ट्रूडो के खिलाफ माहौल बना हुआ है ऐसे में जगमीत की एक नाराजगी उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी से दूर कर सकती है इसलिए ट्रूडो चुप हैं और जगमीत सिंह भारत से कनाडा के संबंध बिगाड़ने और कनाडा में भारतीय लोगों को बांटने का एजेंडा चला रहा है क्योंकि भारत सरकार जगमीत सिंह को खालिस्तानी मानती है, एंटी इंडिया एक्टिविस्ट मानती है। जगमीत के भारत आने पर भी पाबंदी है।
यद्यपि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस घटना की निंदा की है आैर कहा है कि उनके देश में हर व्यक्ति को अपनी आस्था के अनुसार पूजा-पाठ करने का हक है लेकिन उनकी यह बयानबाजी केवल ढकोसला है। उनके खालिस्तान समर्थकों के प्रति लगाव और संरक्षण प्रदर्शित करने से सामाजिक विद्वेष तो पैदा हो ही गया है। भारत मूल के सिख और हिन्दू आमने-सामने खड़े दिखाई देते हैं। हिन्दू मंदिरों पर हमलों के विरोध में हिन्दू एकजुट होकर प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर्शन भारत विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब है। ट्रूडो को शायद यह अनुमान नहीं होगा कि सामाजिक विद्वेष से सियासी फायदा उठाने की कोशिशें उनके अपने ही देश में गहरे घाव छोड़ रही हैं। न केवल सत्ता पक्ष बल्कि कनाडा के विपक्षी नेता भी इन घटनाओं की निंदा कर रहे हैं और ट्रूडो की आलोचना हो रही है। ट्रूडो के मंसूबे पूरी तरह से सामने आ चुके हैं। ट्रूडो की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं इतनी प्रबल हो चुकी हैं कि वे अपरिपक्वता के चलते अपने मित्र देश भारत से भी संबंध बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
कुछ िदन पहले उन्होंने अप्रवासन नीति में फेरबदल कर भारत से आने वाले प्रवासियों की संख्या कम करने का इरादा जताया था लेकिन कनाडा की सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि उसकी अर्थव्यवस्था अप्रवासियों पर ही पूरी तरह निर्भर है। भारतीय अप्रवासियों ने कनाडा की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कनाडा की आबादी लगातार बूढ़ी हो रही है। नई नीतियां कनाडा के लिए ही नुक्सानदेह साबित होंगी। कनाडा में उपद्रव मचाने वाले खालिस्तान समर्थक यह नहीं समझ रहे िक उनके हमलों की प्रतिक्रिया भारत में भी हो सकती है। खालिस्तानी समर्थक कुछ भी कर लें भारतीय सिखों से उनको कोई समर्थन प्राप्त नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो टूक शब्दों में कनाडा को चेता दिया है कि वह खालिस्तान समर्थकों पर लगाम लगाएं। भारत ट्रूडो को हर मंच पर मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है। बेहतर यही होगा कि कनाडा सरकार बेलगाम खालिस्तानियों की हरकतों पर अंकुश लगाए, जिनका उद्देश्य वहां के गुरुद्वारों पर कब्जा करना और उनके धन का इस्तेमाल अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए ही करना है।