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आवेदन, निवेदन फिर दनादन!

कैसा संयोग रहा कि जब विगत बुधवार को राज्यसभा में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए पूरे देश को यह आश्वस्त कर रहे थे कि उनकी पार्टी की सरकार की नीति किसी भी ‘प्रभाव या दबाव’ के समक्ष समझौता करने की कभी नहीं हो सकती तभी थोड़े समय बाद ही उसी दिन मध्य प्रदेश के इन्दौर से चुने गये भाजपा विधायक ‘आकाश विजयवर्गीय’ ने यहां की नगर निगम के एक अधिकारी को क्रिकेट के बल्ले से धुनते हुए अपने ‘प्रभाव’ का दबदबा कायम कर दिया।

कैसा संयोग रहा कि जब विगत बुधवार को राज्यसभा में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए पूरे देश को यह आश्वस्त कर रहे थे कि उनकी पार्टी की सरकार की नीति किसी भी ‘प्रभाव या दबाव’ के समक्ष समझौता करने की कभी नहीं हो सकती तभी थोड़े समय बाद ही उसी दिन मध्य प्रदेश के इन्दौर से चुने गये भाजपा विधायक ‘आकाश विजयवर्गीय’ ने यहां की नगर निगम के एक अधिकारी को क्रिकेट के बल्ले से धुनते हुए अपने ‘प्रभाव’ का दबदबा कायम कर दिया। 
एक जनता के नुमाइन्दे ने सीधे कानून को अपने हाथ में लेकर ऐलान कर दिया कि कानूनन काम करने वाले सरकारी कारिन्दों को उसके कानून के आगे सिर झुकाना होगा। वह सरकारी अधिकारी अपना काम कर रहा था और एक जर्जर हालत में खड़े मकान को ध्वस्त करने के आदेशों से लैस था मगर आकाश विजयवर्गीय तो ठहरे जनता के सेवक इसलिए उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने उस कानून को अपने हाथ में ले लिया जिसकी हिफाजत करने की कसम उन्होंने अपना चुनावी पर्चा भरते वक्त और उसके बाद विधानसभा में पहुंच कर खाई थी। जीत के नशे में मदहोश इस विधायक को गरूर भी क्यों न होता क्योंकि उसके पिता भारतीय जनता पार्टी के एेसे महासचिव हैं जिनके चलते प. बंगाल में भाजपा को जबर्दस्त चुनावी सफलता मिली है। 
आकाश की यही योग्यता राजनीति में अपना प्रभाव काबिज करने के लिए काफी है कि वह कैलाश विजयवर्गीय का बेटा है लेकिन देखिये क्या जज्बा था इन्साफ करने का आकाश में कि उसने निगम अधिकारी की पिटाई करने के बाद कहा कि वह जिस सिद्धान्त पर चलता है वह है  ‘पहले आवेदन फिर निवेदन और फिर दनादन!’ क्या गजब का फलसफा पेश किया इस ‘होनहार’ युवा नेता ने कि पूरी युवा पीढ़ी ही फिदा हो जाये और पूरे देश में ‘रामराज्य’ की स्थापना कर डाले। भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े नेता नाहक ही लोकतन्त्र में सुशासन और लोगों के द्वार तक सरकारी स्कीमों को पहुंचाने के लिए तरह-तरह की तजवीजें लड़ाते हैं और पूरी कार्यपालिका से लेकर विधायिका के बीच में उन पुलों का निर्माण करने की तकनीकें खोजते रहते हैं जिनके जरिये आम आदमी तक सरकारी सुविधाएं जल्दी से जल्दी पहुंचें। उन्हें यह सब करने की क्या जरूरत है जब ईश्वर ने ‘आकाशवाणी’ करके ऐसे  ‘आकाश’ को पृथ्वी पर उतार दिया है जो हाथों-हाथ ही मिनटों-सैकेंडों में डिलीवरी सिस्टम को चुस्त-दुरुस्त बना सकता है। 
रास्ता सीधा-सादा और बिना किसी झंझट का है। पहले आवेदन पत्र लिख कर दो , फिर स्वयं जाकर निवेदन करो  और इस पर भी बात न बने तो बिना वक्त गंवाये जो भी हाथ में आये उसी से ‘दनादन’ कर दो-हो गई डिलीवरी। गौर कीजिये यह वह देश है जिसे कानून से चलने वाला मुल्क कहा जाता है और कानून ऐसा है जो हर छोटे-बड़े आदमी को एक ही तराजू पर रखकर तोलता है। यदि मध्य प्रदेश का हर विधायक आकाश विजयवर्गीय की तरह व्यवहार करने लगे तो इस मुल्क में कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने काम को अंजाम नहीं दे पायेगा और पूरी तरह अराजकता का माहौल फैल जायेगा। 
भाजपा को जो चुनावी विजय मिली है वह इस पार्टी के नेताओं और उनके बेटों को आपे से बाहर होने के लिए नहीं मिली है बल्कि आम जनता की सेवा करने के लिए इस तरह मिली है कि कानून के राज में उनका यकीन और पक्का हो और उनकी जो भी समस्या हो उनका हल कानूनी तरीके से ढूंढा जाये। बेशक मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार है जिसने तुरत-फुरत हरकत में आकर कानून को अपना काम करने की इजाजत देते हुए आकाश को अदालत में पेश किया जहां उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया परन्तु असली सवाल यह है कि एक नेतापुत्र विधायक के पास एेसी कौन सी अतिरिक्त शक्ति आ जाती है कि वह सरेआम एक सरकारी अधिकारी की पिटाई करने के बाद सीना चौड़ा करके खुद को ‘खुदाई खिदमतगार’ की तरह पेश करे मगर मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ताओं ने जिस तरह टीवी चैनलों पर आकर आकाश विजयवर्गीय का बचाव किया उससे नतीजा यही निकलता है कि पार्टी आंखों देखे सच को भी ‘सच’ मानने को तैयार नहीं है। 
लोकतन्त्र में ऐसी हरकतों का असर बहुत दूर तक जाता है और इस हद तक जाता है कि पार्टी के बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करता है। मध्य प्रदेश में भाजपा ने जो भी जनाधार बनाया है वह लोगों में अपनी पार्टी की अनुशासनप्रियता के दायरे में ही बनाया है। इसमें कुछ इस राज्य की ‘तासीर’ भी शामिल रही है क्योंकि यहां के लोग शान्तिप्रिय और सरल प्रवृत्ति के हैं वरना इस राज्य में तो वीरेन्द्र कुमार सखलेचा जैसा भी भाजपा नेता हुआ है जिसकी 60 और 70 के दशक तक मध्य प्रदेश में तूती बोलती थी लेकिन अपनी पार्टी के सिद्धान्तों के खिलाफ जाने पर उनकी स्थिति शून्य हो गई थी। कैलाश विजयवर्गीय किसी भी सूरत में भाजपा की मजबूरी नहीं हो सकते बल्कि भाजपा उनकी मजबूरी है क्योंकि इसी पार्टी की बदौलत उनकी हैसियत में इजाफा हुआ है। अतः राज्य भाजपा को कसूरवार की तरफदारी में कसरत करने की कोई जरूरत मालूम नहीं पड़ती।
उल्टे भाजपा को कानून को अपना काम करने देने के लिए राज्य की कमलनाथ सरकार से सहयोग करना चाहिए और तय करना चाहिए कि भविष्य में कोई विधायक तो क्या साधारण कार्यकर्ता भी ऐसा काम करने की हिमाकत न करे। राजनीतिक संरचना के लोकतन्त्र की सफलता के लिए पहली शर्त यही होती है कि सभी पार्टियों के कारकुन कानून के दायरे में रहकर ही अपना विरोध उन लोगों से करें जिन पर कानून को लागू करने की जिम्मेदारी खुद उन्हीं की पार्टी के चुने हुए नुमाइन्दों ने सौंपी है। 
ये कारिन्दे इन चुने हुए नुमाइन्दों को सलामी इसलिए नहीं ठोकते हैं कि वे उनके मालिक हैं बल्कि इसलिए ठोकते हैं कि जनता ने उन्हें उनके मातहत काम करने का हुक्म दिया है और उन पर भी कानून या संविधान का शासन देखने की जिम्मेदारी डाली है मगर कुछ अन्य राज्यों में भी भाजपा के कार्यकर्ता ऐसी अहमकाना हरकतें कर जाते हैं जिससे आम जनता का विश्वास हिल जाता है। कोई दरोगा को धमका देता है तो कोई किसी बड़े सरकारी अफसर पर रुआब डालता है, ऐसे लोग सबसे ज्यादा नुक्सान अपनी पार्टी का ही करते हैं और पैगाम देते हैं कि ‘सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का।’ 

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