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बड़ी शक्तियों का अखाड़ा यूक्रेन

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गोपनीय तरीके से कीव पहुंच कर सबको चौंका दिया है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गोपनीय तरीके से कीव पहुंच कर सबको चौंका दिया है। कीव की जमीन पर खड़े होकर बाइडेन ने रूस को तो चेतावनी दी ही साथ ही चीन को भी सीधी चुनौती दी है। अब जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध को 24 फरवरी को एक वर्ष पूरा होने वाला है। ऐसे में बाइडेन ने कीव पहुंच कर आग में घी डालने का काम ही किया है। बाइडेन ने 50 करोड़ डॉलर की अतिरिक्त सैन्य सहायता देने का ऐलान किया है जिससे रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग के तेवर और भी सख्त हो गए हैं। पुतिन का यह गुस्सा आने वाले समय में यूक्रेन पर बढ़ते हमलों के रूप में दिखाई दे सकता है।
यूक्रेन अभी तक रूस के खिलाफ युद्ध में टिका हुआ है, उसका सबसे बड़ा कारण है अमेरिका। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि अमेरिका शुरूआत से यूक्रेन को हर तरह से समर्थन करता रहा है, फिर चाहे वो हथियार मुुहैया करना हो या रूस पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाना। अमेरिका शुरूआत से इस जंग को लेकर रूस के खिलाफ वैश्विक मंच पर माहौल बना रहा है। अब यूक्रेन पहुंच कर बाइडेन ने साबित कर दिया है कि अमेरिका अंतिम क्षण तक जेलेंस्की के साथ खड़ा रहेगा। जेलेंस्की भी कई बार इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि अमेरिका का इस जंग में उसको काफी समर्थन मिला है।
अमेरिका और मित्र देशों ने रूस के खिलाफ नए प्रतिबंधों का ऐलान भी किया है। अब तक रूस ने इन आर्थिक प्रतिबंधों की कोई परवाह नहीं की। युद्ध का सबसे ज्यादा नुक्सान दोनों देशों को तो हुआ ही है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी हुआ है। अब तक बीस हजार से ज्यादा आम नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं। लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी मां की गोद। युद्ध बेकारी, बेरोजगारी, महंगाई और मंदी को अपने साथ लेकर आया है। एक साल बाद भी युद्ध किसी निर्णायक स्थिति मेें नहीं पहुंचा है। समाधान का कोई रास्ता नजर नहीं आता। अब यह कहा जाने लगा है कि यह युद्ध असीमित काल तक जारी रह सकता है। दोनों देशों के युद्ध से हथियारों की नई रेस शुरू हो गई है। वर्ष 1945 में दूसरे महायुद्ध के बाद यूरोप में पहली बार जोरदार जंग हुई है जिससे बड़ी शक्तियां हथियारों की दौड़ में शामिल हो चुकी हैं। यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका और चीन में तनाव भी काफी हद तक बढ़ चुका है। आसमान में फोड़े जा रहे चीनी जासूसी गुब्बारों को गिराए जाने के बाद से दोनों देशों में तल्खी पहले ही बढ़ी हुई थी। 
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ​ब्लिंकन ने म्यूनिक में ग्लोबल ​​सिक्योरिटी कांफ्रैंस के इतर चीनी राजनयिक वांग यी से मुलाकात के बाद सीधी चेतावनी दी थी कि अगर उसने युद्ध में रूस को हथियार और दूसरे साजो-सामान दिए तो इसके नतीजे खतरनाक होंगे। इस पर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पलटवार किया कि अमेरिका अपनी ताकत का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहा है और संबंधों को जानबूझकर नुक्सान पहुंचा रहा है। अमेरिका के पास ऐसी रिपोर्टें हैं कि चीन रूस को लीथल सपोर्ट देने पर विचार कर रहा है। चीन का कहना है कि अमेरिका स्वयं यूक्रेन को हथियार भेज रहा है तो फिर उसे किसी दूसरे को उपदेश देने की जरूरत नहीं है। संघर्ष को हवा कौन दे रहा है। लड़ाई में उकसाने के लिए हथियार कौन भेज रहा है, यह सारी दुनिया जानती है। चीन ने भी अमेरिका को सीधी चेतावनी दे दी है कि वो चीन-रूस संबंधों में किसी के हस्तक्षेप को सहन नहीं करेगा। अमेरिका इस बात काे लेकर चिंतित है कि चीन रूसी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए लगाए गए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से बचने में रूस की मदद कर रहा है। चीन के साथ रूस का व्यापार लगातार बढ़ रहा है। भारत ने अपने हितों को देखते हुए रूस से तेल और गैस खरीदकर उसकी मदद ही की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के मित्र हैं और उन्होंने अब तक यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा नहीं की है। चीन ने अब तक युद्ध को समाप्त करने के लिए बयानबाजी के अलावा कुछ नहीं किया। सच तो यह है कि अब तक जितनी भी कोशिशें हुई हैं वे इस युद्ध को विश्व युद्ध में बदलने को रोकने वाली ही रही हैं।
युद्ध की शुरूआत से ही हर पक्ष की ओर से इस बात का ध्यान रखा गया है कि इस तरह का नैरेटिव जाए कि युद्ध बढ़ाने के लिए वह जिम्मेदार नहीं है। पहले रूस को ही लें, वह लगातार चेतावनी देता रहा है कि यूक्रेन नाटो से अपनी नजदीकियों से बाज आ जाए नहीं तो उसे अंजाम भुगतना होगा। आखिरकार पुतिन ने यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई के नाम पर पिछले साल 24 फरवरी को अपनी सेना भेज दी। वहीं ​पश्चिमी देशों ने, जिसमें नाटो के रूप में अमेरिका और यूरोपीय देश प्रमुख रूप से शामिल थे, यूक्रेन का साथ देने का ऐलान तो कर दिया लेकिन उससे सीधे तौर पर सहायता से बचते रहे जिससे युद्ध विश्व युुद्ध में तब्दील ना हो जाए। वहीं रूस ने भी साफ कहा कि किसी दूसरे देश का सीधा दखल युद्ध को व्यापक स्तर पर ले जाएगा, जिसके लिए वह खुद जिम्मेदार नहीं होगा। अब जबकि युद्ध को एक साल होने जा रहा है, किसी को यह पता नहीं है ​कि युद्ध खत्म कैसे होगा। अमेरिका युद्ध की आड़ में चीन के खिलाफ मुखर हो रहा है। जंग शुरू करना आसान होता है लेकिन खत्म करना बहुत मुश्किल होता है। दूर-दूर तक उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती। अमेरिका और पश्चिमी देश भी कोई समाधान नहीं चाहते, बल्कि यूक्रेन को प्रोक्सी बनाकर रूस को नुक्सान पहुंचाना चाहते हैं और अमेरिका चीन पर दबाव बनाना चाहता है। ऐसे में युद्ध खत्म होगा तो कैसे?

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