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सेना, रेलवे पुल और सवाल

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मैं भारत की सेनाओं को नमन करता हूं। इनके महान नायकों को मेरा शत्-शत् नमन है। युद्धकाल में भारतीय सेना की कार्यकुशलता से दुश्मन हमेशा अचंभित रहा है। प्राकृतिक आपदा के समय तो भारतीय सेना के जवानों का कौशल देखने वाला होता है। बाढ़ हो या भूकम्प, सेना को ही लाखों लोगों की जिन्दगियां बचाने का श्रेय जाता है। केदारनाथ की प्राकृतिक आपदा के बाद लोगों की जान बचाते सेना के जवानों ने अपनी जान भी गंवाई है। दंगे हों या किसी राज्य में विद्रोह की स्थिति, नागरिक प्रशासन की मदद के लिए सेना को ही तैनात किया जाता है। जब भी कभी नागरिक प्रशासन को जरूरत पड़ी तो उसने सेना की मदद ली है। सबको याद ही होगा कि दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों के शुरू होने से पहले जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के पास निर्माणाधीन पुल ढह गया था। खेल शुरू होने वाले थे, विदेशी मेहमान पहुंच चुके थे। ऐसे में देश की प्रतिष्ठा का सवाल था। सेना के मद्रास सैपर्स के इंजीनियरों ने दिन-रात काम करके ढहे पुल की जगह दूसरा पुल बना दिया था। सेना के इंजीनियरों, जवानों ने दिन में तो काम किया ही, रात में फ्लड लाइटों की रोशनी में भी काम किया। युद्ध क्षेत्र में यह काम घुप्प अंधेरे में बीटा लाइटों की मध्यम रोशनी में किया जाता है। इस बीटा रोशनी में परछाइयां नहीं बनतीं। केवल 5 दिन में जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के निकट इस पैदल पुल को बनाकर भारतीय सेना ने एक बार फिर अपनी कार्यकुशलता, बारीकी, उच्च स्तर की कारीगरी और राष्ट्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सिद्ध कर दिया था।

सेना का काम देश की सुरक्षा करना है। देश की सीमाओं की सुरक्षा ही उसका मुख्य दायित्व है। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने एङ्क्षल्फस्टन में रेलवे ब्रिज को जल्द बनाने के लिए रक्षा मंत्रालय से गुजारिश की थी कि वह सेना को इसके निर्माण की इजाजत दे। पिछले महीने एल्फिंस्टन ब्रिज हादसे में 23 लोगों की मौत हो गई थी। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने सेना प्रमुख से बातचीत कर इसकी अनुमति दे दी है। सेना मुम्बई में एल्फिंस्टन के अलावा करीरोड और आंबीवली रेलवे स्टेशन पर भी पुल बनाएगी। रेलवे पुल बनाने के लिए भारतीय सेना के इस्तेमाल पर विवाद शुरू हो गया है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि नागरिक प्रशासन के कामों के लिए सेना को लगाया जा रहा है।

महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना की गठबंधन सरकार है जिन्हें जनता ने निर्वाचित किया है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ने ट्वीट कर कहा है कि ‘सेना का काम युद्ध के लिए प्रशिक्षित करना है। रक्षा संसाधनों का नागरिक कार्यों में इस्तेमाल न करें। आप वही कर रही हैं जो 1962 के युद्ध से पहले जनरल कौल ने किया था। इससे एक गलत मिसाल पेश होगी, कृपया बचें।” सत्ता में भागीदार शिवसेना और राकांपा ने भी इसका विरोध किया है। सेना का नागरिक कार्यों में इस्तेमाल तब किया जाता है जब लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकारें अक्षम हों या काम करने में नाकाम हो जाएं। रेलवे पुल तो पहले भी बनते रहे हैं तो फिर सेना का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। ऐसा करके महाराष्ट्र सरकार ने अपने निकम्मेपन का सबूत दे दिया है। बड़े-बड़े फ्लाईओवर, गगनचुम्बी अट्टालिकाएं बनाने वाली राज्य सरकार व समुद्र पर पुल बनाने वाले विभाग क्या रेलवे के फुटओवर ब्रिज नहीं बना सकते। यह सही है कि सेना बहुत जल्द ऐसे पुल बनाने में सक्षम है लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि सेना को नागरिक कामों में लगाया जाए। क्या सरकारों के पास योग्य और अनुभवी इंजीनियरों और कामगारों की कमी है? ऐसा लगता है कि भारतीय सेना को स्पीड डायल पर रखा जा रहा है। पिछले वर्ष दिल्ली में यमुना नदी पर भी एक तैरता पुल बनाया था, जब श्री श्री रविशंकर की आर्ट ऑफ लिङ्क्षवग का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, हालांकि कार्यक्रम में पर्यावरण से जुड़े नियमों को लेकर काफी विवाद हुआ था। इसी वर्ष सेना की एक बटालियन को जल संसाधन मंत्रालय ने बुलाया था ताकि गंगा नदी में अपशिष्ट पदार्थ फैलाने वालों पर कड़ी नजर रखी जाए।

यह सही है कि शांतिकाल में सेना के पास अधिक कार्यभार नहीं होता। जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्व के हालात देखें तो वहां सेना को तैनात करना ही अन्तिम विकल्प था। सेना की विशिष्ट भूमिका सीमापार के शत्रुओं से लडऩे की है, इसलिए उसे विशिष्ट भूमिका निभाने के लिए हमेशा तैयार रखा जाना चाहिए। देखा यह जाता है कि नागरिक जीवन में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए बार-बार सेना को तलब किया जाता है, यह प्रवृत्ति अच्छी नहीं। राज्यों को अपना पुलिस बल सशक्त बनाना चाहिए ताकि बार-बार सेना को बुलाना ही नहीं पड़े। सेना की छवि देश के रखवाले की है, उससे रेलवे पुल बनवाना गलत उदाहरण होगा। कल कोई सरकार यह भी कह देगी कि सेना सड़कों का भी निर्माण करे।

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