प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में सत्ता सम्भालने के बाद अफ्रीका को शीर्ष प्राथमिकता दी। प्रधानमंत्री के अफ्रीकी देशों से सम्बन्ध बढ़ाने के कई अर्थ हैं। क्योंकि भारत उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, व्यापार के क्षेत्र में भारत को चीन से कड़ी टक्कर मिल रही है, इसलिए प्रधानमंत्री का लक्ष्य है कि दक्षिण एशियाई देशों के अलावा अफ्रीका के देश भारत के साथ हों तो देश को काफी फायदा होगा। अफ्रीकन डेवलपमैंट बैंक में 50 से ज्यादा अफ्रीकी देश शामिल हैं। भारत अफ्रीकन डेवलपमैंट फंड से 1982 से जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात के गांधीनगर में अफ्रीकन डेवलपमैंट बैंक की 42वीं वार्षिक बैठक सम्पन्न हुई। इससे भारत और अफ्रीकी देशों के संबंध और ज्यादा मजबूत हुए।
भारत का नाता अफ्रीका से बहुत पुराना है। राष्ट्रपतिता महात्मा गांधी ने अफ्रीका से संघर्ष की शुरूआत की थी तब से ही यह रिश्ता बना हुआ है। प्रधानमंत्री ने इस बैठक में जापान और भारत के समर्थन से एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा बनाने का आह्वान कर डाला। उनके इस आह्वान को चीन के वन बैल्ट, वन रोड यानी ओबीओआर का जवाब माना जा रहा है। भारत ने चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर हुए सम्मेलन का बहिष्कार किया था। यह परियोजना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा योजनाओं में से है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब जापान यात्रा पर गए थे तब उन्होंने प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ एशिया-अफ्रीका विकास गलियारे पर बातचीत की थी। एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा परियोजना को आगे कैसे बढ़ाया जाएगा इसके लिए भारत-जापान के रिसर्च इंस्टीच्यूट के साथ विचार-विमर्श के विजन डाक्यूमेंट्स भी तैयार कर लिए गए हैं। इसके पीछे विचार यही है कि भारत, जापान और दूसरे भागीदार स्किल, इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में संयुक्त तौर पर की जाने वाली पहल के लिए आगे आएं।
चीन वन बैल्ट वन रोड परियोजना के जरिये यूरोप-एशिया भूभाग को हिन्द-प्रशांत समुद्री मार्ग से जोडऩा चाहता है। उसका इरादा न केवल व्यापार को बढ़ाना है बल्कि दुनिया भर में अपना वर्चस्व कायम करना है। भारत की समस्या यह है कि चीन का आर्थिक गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। भारत पाक अधिकृत कश्मीर को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा मानता है जिसे पाक ने अवैध रूप से कब्जाया हुआ है। पाक में बनाई गई चीन की ग्वादर बंदरगाह का जवाब भारत ने चाबहार बंदरगाह परियोजना से दे दिया है। अब एशिया-अफ्रीका गलियारे पर बात चली है तो इस परियोजना को मूर्तरूप मिलने के साथ ही चीन को ओबीओआरका जवाब मिल जाएगा। आज अफ्रीका में निवेश करने वाला भारत पांचवां बड़ा निवेशक है। भारत ने पिछले 20 वर्षों के दौरान अफ्रीका में 54 अरब डालर का निवेश किया है। पिछले 15 वर्षों में अफ्रीका-भारत का व्यापार कई गुणा बढ़ा है। पिछले 5 वर्षों के दौरान यह दोगुना होकर 72 अरब डालर पर पहुंच गया है। एशिया-अफ्रीका गलियारा बनाने की परियोजना जब सिरे चढ़ेगी तब अन्य देश भी इस परियोजना से जुड़ जाएंगे। चीन की चुनौतियों को देखकर यह जरूरी है कि भारत कूटनीतिक ढंग से आगे बढ़े। वैसे भी भारत के बिना चीन की परियोजना की सफलता पर संदेह है क्योंकि भारत आज एक विशाल बाजार है।