कहने वाले ने क्या खूब कहा है कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। ऊपर वाले की चक्की चलती बहुत धीरे है लेकिन पीसती बहुत महीन है। एक और बात कही गई है कि जैसी कथनी, वैसी करनी। इतिहास अपने आपकाे खुद में दोहराता है। सत्ता के नशे में चूर होकर कानून को अपने घर के दरवाजे पर बांध कर रखते हुए काम करने के लिए कुख्यात नेता चिदम्बरम की गिरफ्तारी को लेकर कुछ ऐसा ही कहा जा रहा है। यह आदमी सत्ता प्राप्त करने के लिए किस हद तक गिर सकता है कि जब चाहे देश का गृहमंत्री बनता है और जब चाहे देश का वित्त मंत्री बन जाता है। यह भी क्या इत्तेफाक है और सियासत की कैसी दास्तान जो भारतीय लोकतंत्र की जमीन पर 21 अगस्त की रात को लिखी गई।
चिदम्बरम को आईएनएक्स केस में कथित रूप से रिश्वत लिए जाने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया जबकि इतिहास के पन्नों पर 25 जुलाई 2010 का वह दिन भी दर्ज है जब चिदम्बरम देश के गृहमंत्री थे उस वक्त गुजरात का सोहराबुद्दीन शेख एनकाऊंटर मामला पूरे चरम पर था और ऐसे में चिदम्बरम के इशारे पर अमित शाह को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था। वक्त ने क्या जालिम करवट ली है कि अब चिदम्बरम गिरफ्तार हो चुके हैं और श्री अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं।
चिदम्बरम साहब 29 नवम्बर 2008 से 31 जुलाई 2012 तक देश के गृहमंत्री रहे और अब वक्त का पहिया ऐसा घूमा है कि सब कुछ लौट कर आ गया है। करीब-करीब 10 साल पहले की कहानी अब सबके सामने है। फर्क सिर्फ इतना है कि नाम और चेहरे वही हैं बस किरदार बदल गए हैं। इंसाफ के तराजू पर चिदम्बरम की रिश्वतखोरी सिद्ध होती है या नहीं यह देखना बाकी है। हालांकि ईडी और एजैंसी लगभग 300 करोड़ की रिश्वत को चिदम्बरम से जोड़ रहे हैं। कुछ लोग कह रहे हैं िक चिदम्बरम के साथ ये हो गया वो हो गया परन्तु इन लोगों ने तब कोई आवाज नहीं उठाई थी जब अमित शाह को बिना वजह सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में फंसाया गया था तब चिदम्बरम उन्हें दोषी मानकर रोज सुर्खियां बटोर रहे थे। मैं बेकसूर हूं, मैं बेकसूर हूं कह-कह कर सबका ध्यान खींचने वाले अमित शाह की कोई बात नहीं सुनी जा रही थी।
इसी चिदम्बरम ने जब राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता के चलते हिन्दू विचारधारा वाले लोगों को भाजपा से जोड़ कर दिमागी खुरापात की तो उन्हें भगवा आतंकवाद नजर आया। अमित शाह को 2010 में सीबीआई ने गिरफ्तार तो किया ही लेकिन तीन महीने से ज्यादा उन्हें सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सका लेकिन उन्हें 2 साल तक के लिए गुजरात बदर कर दिया गया। अमित शाह हार मानने वाले नहीं थे और गुजरात हाईकोर्ट ने उन्हें बेल प्रदान कर दी। हालांकि 2012 तक श्री अमित शाह गुजरात के बाहर ही रहे। वह मुम्बई भेज दिए गए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सच का सच करते हुए फैसला लिखा और उन्हें गुजरात वापस आने की इजाजत दे दी। उन दिनों 2012 में गुजरात विधानसभा के चुनाव भी थे। तब भाजपा का यह कहना कि यूपीए सरकार अमित शाह के खिलाफ बदले की कार्रवाई कर रही है, यह गलत नहीं था।
आईएनएक्स मामले में चिदम्बरम हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत पाने पर बेफिक्र होकर बैठे थे कि कोई उनका कुछ बिगाड़ ही नहीं पाएगा लेकिन हिन्दुस्तान के कानून की यही खूबी है कि यहां कानून किसी के बाप की जागीर नहीं है। हाईकोर्ट ने चार दिन पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि अग्रिम जमानत अब खारिज की जा रही है तो ईडी और सीबीआई पूरी जांच-पड़ताल के बाद चिदम्बरम से पूछताछ भी कर चुकी थी। अब जब आपकी बेल रिजैक्ट हो चुकी है तो स्वभाविक है कि गिरफ्तारी तो होनी ही थी लेकिन यहां भी चिदम्बरम कानूनी प्रक्रियाओं को पांव तले रौंद कर गायब हो गए। सुप्रीम कोर्ट में उनके वकीलों की फौज ने याचिका लगा दी परंतु कोर्ट ने उस दिन जमानत देने से इन्कार करते हुए तिथि आगे बढ़ाई। ऐसे में गिरफ्तारी से बचने के लिए चिदम्बरम फरार हो गए।
होना तो यह चाहिए था कि चिदम्बरम खुद को ईडी और सीबीआई के हवाले कर देते तो यह एक शानदार उदाहरण होता लेकिन 27 घंटे तक गायब रहने के बाद उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय पहुंच कर खुद को महात्मा गांधी की तरह प्रोजैक्ट किया। उन्होंने खुद को पाक साफ बताते हुए भाजपा सरकार पर यह आरोप लगा दिया कि मेरे खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध लिया जा रहा है। वाह! चिदम्बरम वाह! जब अमित शाह को गिरफ्तार किया था वह दिन आप भूल गए तब सत्ता के नशे में अपने एक्शन को भूल गए आज दूसरों पर आरोप लगाने वाले चिदम्बरम काश! पहले अपने गिरेबां में झांक लेते।
सच तो यह है कि कांग्रेस के अंदर एक बड़ा वर्ग चिदम्बरम जैसों के भ्रष्टचारी आचरण से दुखी है। जब हाईकोर्ट ने चिदम्बरम को मुख्य साजिशकर्त्ता माना है और मनी लांड्रिंग में उनके खिलाफ ढेरों केस दर्ज हैं तो भी चिदम्बरम के बचाव में जो लोग आगे आ रहे हैं उनकी भी कोई मजबूरी रही होगी वरन् शायर ने ठीक ही कहा है-
यूं ही कोई वेबफा नहीं होता, कुछ तो मजबूरियां रही होंगी।
हम तो यही कहेंगे कि चिदम्बरम के भ्रष्टाचार को लेकर अगर सोशल साइट्स की बात मान ली जाए और विशेषज्ञों की बात की जाए तो चिदम्बरम अब बेनकाब हो चुके हैं। चुनावी हार-जीत से लेकर जिस तरह वह ईडी और सीबीआई को चलाते रहे हाें ऐसे लोगों के खिलाफ कोर्ट की यह टिप्पणी करना कि आप सरगना की तरह व्यवहार कर रहे हैं, यह बहुत कुछ साबित करता है। देश और कांग्रेस अब चिदम्बरम को लेकर कुछ सोचे वरन् गृहमंत्री अमित शाह की देखरेख में जांच एजैंसियां सही काम कर रही हैं और अदालत के फैसले को आप गलत नहीं ठहरा सकते। यह जवाब कांग्रेस अब चिदम्बरम से लेने की बजाय खुद फैसला करते हुए अदालत के फैसले का सम्मान करे तो यह स्वाभिमान और नैतिकता की एक नजीर बन जाएगी।