पिछले कुछ दिनों से अगले वर्ष मार्च तक देश के आधे एटीएम बंद होने की काफी चर्चा है। किसी भी एटीएम पर जाइए, आपको लोग ऐसी चर्चा करते मिल जाएंगे। आज एटीएम जिन्दगी का अहम हिस्सा है। एटीएम सुविधा आज के आधुनिक युग की जरूरत बन गई है। हर कोई बैंकों की भीड़ से बचने के लिए जरूरत पड़ने पर दिन-रात को भी पैसे लेने एटीएम पहुंच जाते हैं। समाज भी इतना सुविधा भोगी हो चुका है कि उसे चिन्ता सताने लगी है कि एटीएम बंद हुए तो क्या होगा? एटीएम बंद होने के जो कारण बताए जा रहे हैं उनमें इनके रखरखाव पर हर माह औसतन 75 हजार से एक लाख का खर्च आना बताया जा रहा है। बैंकों का मानना है कि एटीएम उनके लिए सफेद हाथी बन चुके हैं। हार्डवेयर और साफ्टवेयर में बदलाव लाने की लागत वहन करना बैंकों के लिए मुश्किल भरा है। भारी एनपीए का दबाव झेल रहे बैंकों के लिए नकदी प्रबंधन मानक और कैश लोड करने के कैसेट स्वैप मैथड संबंधी नियमों में हाल ही में किए गए नियामकीय बदलावों के चलते अब एटीएम का संचालन करना व्यावहारिक नहीं रहा।
कैश लाजिस्टिक्स आैर कैसेट स्वैप के नए तरीकों से ही उद्योग पर तीन हजार करोड़ रुपए की लागत का बोझ बढ़ जाएगा। नोटबंदी से उद्योग अभी तक उबर नहीं पाए हैं। ऐसे में स्थिति और गंभीर हो गई, क्योंकि नए नियमों के अनुपालन के कारण खर्च बहुत अधिक बढ़ाना जरूरी हो गया है। सेवा प्रदाताओं के पास इस भारी-भरकम लागत को पूरा करने के लिए वित्तीय जरिया भी नहीं है। उन्हें मजबूरन एटीएम बंद करना पड़ सकता है। देश में इस समय लगभग दो लाख 38 हजार एटीएम हैं, जिसमें एक लाख 13 हजार एटीएम बंद हो जाएंगे। इससे बेकारी आएगी, जो अर्थव्यवस्था में वित्तीय सेवाओं के लिए हानिकारक होगी।
उद्योग को एटीएम पर किए जाने वाले हर लेन-देन पर 15 रुपए शुल्क मिलता है। एटीएम उद्योग संगठन (कैटमी) पिछले 5 वर्ष से इस शुल्क में बढ़ौतरी करने की मांग कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक नए नियमन से उद्योग पर 35 अरब रुपए का बोझ पड़ेगा। सबसे ज्यादा नुक्सान व्हाइट लेबल एटीएम सेवा प्रदाताओं को होगा, क्योंकि एटीएम अंतर शुल्क ही उनकी आय का मुख्य स्रोत है। भारतीय बैंक संघ भी रिजर्व बैंक से निमयों में ढील देने का आग्रह कर रहा है। कई बैंकों के एटीएम तो खराब ही रहने लगे हैं। बैंकों के पास दो तरह के एटीएम हैं। एक तो उनके खुद के हैं, दूसरे किराए पर लिए गए हैं। कई बैंकों ने किराए पर लिए एटीएम घटा दिए हैं।
यदि एटीएम बंद हुए तो बैंकों के सामने फिर से लम्बी कतारें देखने को मिल सकती हैं जैसे नोटबंदी के बाद लगी थीं। आर्थिक रूप से कमजोर तबकों की सब्सिडी का पैसा सीधे बैंक खातों में जाता है जिसकी वजह से लोगों की निर्भरता भी एटीएम पर बढ़ी है। एटीएम बंद होने से सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम को झटका लगेगा। अब तो ग्रामीण इलाकों के भी लाेग एटीएम का इस्तेमाल करने लगे हैं। उनकी परेशानी भी बढ़ जाएगी। एटीएम बैंक परिसर के बाहर इसलिए लगाए गए क्योंकि बैंक शाखा में लेन-देन बैंकों के लिए घाटे का सौदा था। कुछ वर्ष पहले लोग रकम निकलवाने, बैंक स्टेटमैंट लेने या रकम ट्रांसफर करने के लिए बैंक जाते थे।
बैंक कर्मचारियों पर काम का दबाव बहुत रहता था। बैंक घोटाले सामने आने पर की गई सख्ती की वजह से बैंक अभी भी दबाव में हैं। एटीएम बंद न हों इसके लिए स्थिति की गंभीरता को समझते हुए बैंकों काे अनुपालन संबंधी अतिरिक्त लागत का बोझ उठाने के लिए आगे आना होगा। सरकार को भी बैंकों के साथ मिलकर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिसमें कोई भी एटीएम की सुविधा से वंचित न रहे। रिजर्व बैंक को भी किसी नियम या कानून को लागू करने से पहले उससे जुड़े सभी पहलुओं पर गौर करना होगा, ताकि देश के लोगों को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़े। लोगों को एटीएम की आदत पड़ चुकी है, सुविधा असुविधा में बदली तो परेशानी का वातावरण बन जाएगा।