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अफगानिस्तान में हिन्दुओं-सिखों पर अत्याचार

अफगानिस्तान और भारत के सबन्ध वर्षों पुराने हैं। वह सातवीं सदी तक अखंड भारत का हिस्सा था। अफगानिस्तान पहले हिन्दू राष्ट्र था, फिर बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह एक इस्लामिक राष्ट्र है।

अफगानिस्तान और भारत के सबन्ध वर्षों पुराने हैं। वह सातवीं सदी तक अखंड भारत का हिस्सा था। अफगानिस्तान पहले हिन्दू राष्ट्र था, फिर बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह एक इस्लामिक राष्ट्र है। कभी अफगानिस्तान पर सिख साम्राज्य के प्रतापी राजा दिलीप सिंह का वर्षों तक शासन रहा।
अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया और यहां के लोग ध्यान तथा रहस्य की खोज में लग गए। इस्लाम के आगमन के बाद एक नई क्रांति की शुरूआत हुई।
बुद्ध के शांति के मार्ग को छोड़कर लोग क्रांति के मार्ग पर चल पड़े। शीत युद्ध के दौरान अफगानिस्तान को तहस-नहस कर दिया गया। यहां की संस्कृति और प्राचीन धर्म के चिन्ह तक मिटा दिए गए। अफगानिस्तान विदेशी ​शक्तियों का अखाड़ा बन गया। पहले सोवियत संघ ने हस्तक्षेप किया और अपनी सेनायें अफगानिस्तान भेज कर अपना दबदबा कायम किया। 
सोवियत संघ की फौजों को खदेड़ने के लिए अमेरिका ने वहां इस्लामिक मुजाहिद्दीन को खड़ा किया, उसे हथियार और धन मुहैया कराया, 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और लादेन की खोज में तोराबोरा की पहाड़ियों की खाक छानी।पहले इस्लामिक मुजाहिद्दीन, अलकायदा और अब तालिबान ने लगभग देश की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को तबाह करके रख दिया है।
बामियान की सबसे ऊंची और विश्व प्रसिद्ध बुद्ध की प्रतिमा को तोड़ा गया, उसे पूरे विश्व ने देखा। अमेरिकी सेना अब काफी वापस आ चुकी है लेकिन देश में अराजकता का दौर जारी है। अफगानिस्तान में शांति स्था​पित होने की संभावनायें नजर नहीं आ रही। यद्यपि अफगानिस्तान में अफगान सरकार और तालिबान में समझौता भी हो चुका है लेकर गृह युद्ध जैसी स्थितियां आज भी जारी है। इन परिस्थितियों में वहां सदियों से रह रहे सिखों और हिन्दुओं पर अत्याचार ढाये जा रहे हैं। 1992 में काबुल में तख्ता पलट के समय दो लाख 20 हजार सिख और हिन्दुओं के परिवार थे जो अब घट कर महज 250-300 रह गए हैं।
कभी ये परिवार पूरे मुल्क में फैले हुए थे लेकिन अब बस नागरहार, गजनी और काबुल के आसपास ही बचे हैं। कट्टर इस्लामिक हुए अफगानिस्तान में अब हिन्दुओं और सिखों का जीना दुश्वार हो चुका है। इन पर हमले किए जा रहे हैं। सार्वजनिक तौर पर इनकी हत्याएं की जा रही हैं।
लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबन्दी लगाई जाती है। उन्हें अलग ढंग के कपड़े पहनने को विवश किया जाता है ताकि उन्हें पहचाना जा सके। बहु-बेटियों की इज्जत सुरक्षित नहीं। आतंकी इनका धर्म परिवर्तन करा इनसे शादियां करना चाहते हैं। वहां इन पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। इनकी जमीनों को कब्जाया जा रहा है। ज्यादातर परिवार जान बचाकर भारत आ गए हैं।
हाल ही में अफगानिस्तान के पकतिया प्रांत में चमकनी जिले के एक गुरुद्वारे की सेवा करते हुए सिख समुदाय के एक नेता निदान सिंह सचदेवा का अपहरण कर लिया गया था। उन्हें मुक्त कराने के लिए भारत सरकार ने काफी दबाव बनाया हुआ था। निदान सिंह सचदेवा अब परिवार समेत भारत आ गए हैं।
निदान सिंह सचदेवा के अपहरण का आरोप तालिबान पर लगा था लेकिन तालिबान ने इससे इन्कार किया और कहा है कि अगवा करने वालों को सजा दी जाएगी। निदान सिंह और उनका परिवार 1990 में ही भारत आ गया था फिर भी उनका अफगानिस्तान आना-जाना लगा रहता है। उनका परिवार लांग टर्म वीजा पर रहता है।
अफगानिस्तान के कुछ इलाके तालिबान का चरम केन्द्र बन चुके हैं और कई क्षेत्रों में पाकिस्तान समर्थित हक्कानी गुट का दबदबा है। जो हिन्दू और सिख परिवार वहां रह रहे हैं उनके साथ उत्पीड़न और धार्मिक प्रताड़ना की घटनाएं होती रहती हैं। इसी साल मार्च महीने में आतंकियों ने राजधानी काबुल में गुरुद्वारे पर हमला कर दिया था जिसमें 25 लोगों की मौत हो गई थी।
गुरुद्वारे पर हमले के बाद निदान सिंह सचदेवा का अपहरण सिखों से जुड़ी दूसरी सबसे बड़ी घटना थी। यह साफ है कि पाक की खुफिया एजैंसी आईएसआई के इशारे पर तालिबान या अन्य कोई दूसरा आतंकी गुट वहां हिन्दुओं और सिखों को निशाना बना रहे हैं। देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद पड़ोसी देशों खास कर अफगानिस्तान में रहने वाले हिन्दू-सिख परिवार भारत में आना चाहते हैं। अनेक परिवार आवेदन भी कर चुके हैं।
अफगानिस्तान में अत्याचार सह रहे परिवार भारतीय ही हैं। अगर वह मुसीबत में होंगे तो भारत उन्हें सहारा नहीं देगा तो कौन देगा? मोदी सरकार उनकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। अब इन परिवारों को नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में लगा है, भारत ने अनेक परियोजनाओं में धन लगा रखा है। अफगानिस्तान की संसद तक का निर्माण भारत ने किया है लेकिन पाकिस्तान वहां भारत की मौजूदगी देखना नहीं चाहता।
भारतीय ठिकानों पर हमले भी आईएसआई ने ही करवाये थे। पाकिस्तान अफगानिस्तान में ऐसी सरकार चाहता है जो उसके इशारे पर काम करे। अमेरिका अब गृह युद्ध से जर्जर हो चुके अफगानिस्तान को उसके रहमोकरम पर छोड़ना चाहता है। युद्ध एवं प्रताड़ना के कारण लगभग हिन्दू-सिख परिवार भारत, यूरोप या उत्तर अमेरिका चले गए हैं।
अमेरिका के सांसद जिम कोस्टा ने सिखों ​और हिन्दुओं को शरणार्थी का दर्जा देने के प्रयासों की सराहना करते हुए ट्रंप प्रशासन से भी अफगानिस्तान में सताये गए धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भारत जैसी व्यवस्था करने की अपील की है। नागरिकता कानून का विरोध करने वाले भी समझ लें कि यह कानून अपने ही भाई-बहनों के लिए हैं तो फिर बवाल क्यों मचा। भारतीयों को चाहिए कि अपना घर-बार छोड़ कर भारत मां की गोद में आने वालों की यथा संभव मदद करें ताकि वे सम्मान से जीवन यापन कर सकें।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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