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मालदीव में फिर लोकतंत्र पर हमला

भारत मालदीव की स्थिति को लेकर काफी चिंतित है क्योंकि वहां कट्टरपंथी लगातार लोकतंत्र को चुनौती देते रहते हैं। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद की हालत गंभीर बनी हुई है

भारत मालदीव की स्थिति को लेकर काफी चिंतित है क्योंकि वहां कट्टरपंथी लगातार लोकतंत्र को चुनौती देते रहते हैं। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद की हालत गंभीर बनी हुई है, वह एक बम हमले में बुरी तरह घायल हो गए थे। बम धमाके में एक ब्रितानी नागरिक समेत चार आम लोग घायल हुए थे। यद्यपि इस हमले की जिम्मेदारी किसी संगठन ने नहीं ली है लेकिन धमाकों की जांच में सहयोग के लिए आस्ट्रेलियाई पुलिस वहां पहुंच गई है। यह बम हमला उस समय हुआ था जब कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए मालदीव में नाइट कर्फ्यू लगने जा रहा था। यह हमला मालदीव के लोकतंत्र पर हमला है। मोहम्मद नशीद मालदीव की राजनीति में शीर्ष व्यक्ति हैं। 2008 में सत्ता में आने के बाद फरवरी 2012 में उनके खिलाफ विद्रोह हुआ था और उन्हें सत्ता से हटा दिया गया था। बाद में आतंकवाद निरोधक कानून के तहत उन्हें जेल भेज दिया गया। उन्हें एक सिटिंग जज की गिरफ्तारी का आदेश देने का दोषी पाया गया। हालांकि उन्हें ब्रिटेन जाने की छूट दी गई ताकि वे अपनी स्पाइन का इलाज करा सकें। वर्ष 2016 में उन्हें शरणार्थी का दर्जा दे दिया गया। 2018 में उनकी पार्टी ने जब राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की तो वे वापिस मालदीव लौटे और फिर संसद में जगह बनाई। फिलहाल नशीद मालदीव की संसद के स्पीकर हैं। स्पीकर का पद देश का दूसरा सबसे शक्तिशाली पद माना जाता है। मालदीव को अपने लग्जरी हॉली-डे-रिसोर्ट के कारण माना जाता है लेकिन इस देश में राजनीतिक उथल- पुथल भी रहती है और मुल्क इस्लामी चरमपंथियों की हिंसा से भी त्रस्त है। 
मोहम्मद नशीद कट्टरपंथी इस्लामिक के मुख्य आलोचक रहे हैं। मालदीव सुन्नी मुस्लिम बहुल राष्ट्र है। 2008 में लम्बे समय तक राजनीतिक पद पर रहे अब्दुल गय्यूम की हार के बाद मालदीव में राजनीतिक अस्थिरता रही है। जहां तक भारत का संबंध है, उसे मालदीव की राजनीतिक अस्थिरता को लेकर हमेशा चिंता रहती है। पर चिंता इसलिए भी है कि मालदीव एक तरह से भारत के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। मालदीव हिंद महासागर में स्थित 1200 दीपों का देश है, जो भारत के ​लिए रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है। मालदीव के समुद्री रास्ते से ही निर्वाद रूप से चीन, जापान और भारत को एनर्जी की सप्लाई होती है। चीन एक दशक से पहले ही हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना के जहाजों को भेजना शुरू कर चुका था। अदन की खाड़ी में एंटी पायरेसी अभियानों के नाम पर मालदीव इंटरनेशनल जियो पालिटिक्स में धीरे-धीरे काफी अहम बन गया है। मालदीव में चीन की बड़ी आर्थिक मौजूदगी भारत के लिए चिंता का सबब है। मालदीव को बाहरी मदद का 70 फीसदी हिस्सा अकेले चीन से मिलता रहा है लेकिन मोहम्मद नशीद की पार्टी के सत्ता में आने के बाद चीन का हस्तक्षेप काफी कम हुआ है क्योंकि अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति रहते उन्होंने मालदीव को चीन की झोली में डाल दिया था। तब से मालदीव में चीन विरोधी भावनाएं पनपने लगी थी। यामीन के शासनकाल में मालदीव में कट्टरपंथ तेजी से बढ़ा था। सीरिया की लड़ाई को लेकर मालदीव में कई लड़ाके गए थे। मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं। मालदीव के साथ नई दिल्ली का धार्मिक, भाषाई, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध है। 1965 में आजादी के बाद मालदीव को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में भारत शामिल था। बाद में 1972 में मालदीव में अपना दूतावास भी खोला। मालदीव में करीब 25 हजार भारतीय रह रहे हैं और हर वर्ष मालदीव जाने वाले विदेशी पर्यटकों में 6 फीसदी भारतीय होते हैं। मालदीव के लोगों के लिए शिक्षा, चिकित्सा और व्यापार के लिहाज से भारत एक पसंदीदा देश है। 
नवम्बर 1988 में मालदीव में तख्तापलट की एक बड़ी को​शिश हुई थी। मालदीव के एक व्यापारी अब्दुल्ला लुथुकी ने यह साजिश भी लंका में रची और अलगाववादी संगठन पीपल्स लिबरेशन आर्गेनाइजेशन आफ तमिल ईनम के साथ मिलकर मालदीव की सत्ता हासिल करने की कोशिश भी की। संगठन के 80 लड़ाकों ने राजधानी माले पर समुद्र के रास्ते आकर हमला कर दिया था। लड़ाकों ने महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों हआई अड्डे, बंदरगाह और रेडियो-टीवी स्टेशन पर कब्जा जमा लिया था। मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम ने भारत से सैन्य मदद मांगी थी। तब राजीव गांधी सरकार ने तुरंत 1600 सदस्यों के सैनिक बल को मालदीव भेजा और कुछ घंटे के भीतर ही 19 लड़ाकों को मार गिराया और बाकियों को पकड़ कर मालदीव के हवाले किया। आप्रेशन की सफलता से दोनों देशों के बीच रिश्ते काफी मजबूत हुए थे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की तारीफ हुई थी। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल गय्यूम और मोहम्मद नशीद ने कई बार भारत का दौरा किया था। बड़े सामाजिक महत्व वाले मालदीव में कट्टरपंथी ताकतों का जोर पकड़ना और राजनीतिक अस्थिरता से भारतीय नेतृत्व के माथे पर जाहिर तौर पर चिंता की लकीरें पैदा करता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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