लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

चुनावों की पवित्रता पर हमला

NULL

कर्नाटक में हो रहे चुनाव संकेत दे रहे हैं कि इनके परिणामों से राष्ट्रीय राजनीति प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती परन्तु इसके साथ ही ये चुनाव यह भी संकेत दे रहे हैं कि लोकतन्त्र की सबसे पवित्र प्रक्रिया चुनावों को दूषित करने के षड्यन्त्र नई ईवीएम टैक्नोलोजी के चलते किस तरह पनपाये जा रहे हैं मगर एेसे षड्यन्त्रों को जन्म देने वाले लोग भूल रहे हैं कि इस देश में ‘चुनाव आयोग’ नाम की भी एक संस्था है जो केवल संविधान से ताकत लेकर राजनैतिक दलों पर नकेल कसती है और सत्ता या विपक्ष के प्रभाव से निरपेक्ष रहकर लोकतन्त्र को जीवन्त बनाये रखती है।

बेंगलूरू में जिस तरह फर्जी वोटर कार्ड बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई है उसका कर्ताधर्ता कौन है और इसके पीछे किस राजनीतिक दल की चाल है, इस विवाद में मैं नहीं पड़ना चाहता हूं क्योंकि मामला अब चुनाव आयोग की अदालत में है मगर एेसा क्यों है कि इस षड्यन्त्र का पर्दाफाश आधी रात को एक राजनैतिक दल के लोग ही करते हैं और खुद ही इसकी जांच भी करते हैं और एलान कर देते हैं कि यह उनके विरोधी दल का करा-धरा है।

दूसरी तरफ विरोधी दल मय सबूतों के दावा करता है कि षड्यन्त्र में शामिल सभी लोगों का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में आरोप लगाने वाले दल के साथ ही रहा है। इससे एक बात जरूर साफ हो रही है कि मतदाता भ्रम में नहीं हैं, नेता जरूर भ्रम में हैं। हमें कर्नाटक के चुनावों से एक सबक भी मिल रहा है कि पूरे राज्य में राजनैतिक दल लोगों का नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं हैं बल्कि लोग स्वयं आगे बढ़कर राजनैतिक दलों का नेतृत्व कर रहे हैं।

यही हिन्दोस्तान की सबसे बड़ी ताकत है जिसका परिचय इस देश के लाचार समझे जाने वाले मतदाता बार-बार देते रहते हैं। उन्हें कोई भी पार्टी अपना गुलाम नहीं समझ सकती बल्कि वे मौका पड़ने पर यह बताने से नहीं चूकते कि उनके एक वोट की ताकत पर जो भी सत्ता के सिंहासन पर बैठता है वह उनका नौकर होता है। जाहिर है कि इस राज्य में भाजपा व कांग्रेस पार्टी के बीच ही कांटे की टक्कर है। पिछले पांच साल से मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठे हुए श्री सिद्धारमैया के खिलाफ यदि सत्ता विरोधी भावना इन चुनावों में नहीं दिखाई दे रही है तो जाहिर तौर पर उनसे सत्ता छीनने के लिए विपक्षी पार्टी भाजपा को कड़ी मेहनत करनी ही पड़ेगी।

इस राज्य में स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं जबकि कांग्रेस की ओर से बेशक इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राहुल गांधी मुकाबले में हैं परन्तु यहां इन दोनों व्यक्तित्वों के बीच सीधी लड़ाई नहीं हो रही है बल्कि बीच में मुख्यमन्त्री सिद्धारमैया की तरह आ गये हैं। मुझे अच्छी तरह याद है कि इमरजेंसी के बाद केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद जब स्व. इंदिरा गांधी कर्नाटक के ही चिकमंगलूर लोकसभा चुनाव क्षेत्र से उपचुनाव लड़ी थीं तो उनके विरुद्ध जनता पार्टी ने राज्य के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री वीरेन्द्र पा​टिल को मैदान में उतारा था।

वीरेन्द्र पाटिल कर्नाटक को अग्रणी राज्यों की पंक्ति में लाने वाले कांग्रेसी रहे थे मगर 1969 में वह कांग्रेस पार्टी के प्रथम विघटन के समय ‘संगठन कांग्रेस’ के पाले में खड़े हो गये थे। बाद में इसका विलय जनता पार्टी में हो गया था। इन्दिरा जी तब एक ही मुद्दे पर भारी मतों से चुनाव जीत गई थीं कि कर्नाटक की संस्कृति का उनकी पार्टी की उस मूल विचारधारा पर शुरू से ही प्रभाव रहा है जिसमें हरेक नागरिक को भारत राष्ट्र की पहली ताकत माना गया है। यह चुनाव साधारण नहीं था क्योंकि उत्तर प्रदेश के रायबरेली से चुनाव हारीं इंदिरा गांधी चिकमंगलूर में अपनी किस्मत आजमा रही थीं और उनके विरुद्ध केन्द्र की जनता पार्टी की मोरारजी देसाई सरकार ने पूरी ताकत झोंक रखी थी।

यह वह गांधी थीं जिनकी पार्टी को पूरे उत्तर भारत में अंगुलियों पर गिनने वाली सीटें मिली थीं मगर दक्षिण भारत में उनका जादू बरकरार था। अतः राजनीति में कभी-कभी हमें एकल भारत के क्षेत्रीय आधार पर अलग-अलग दिशा में जाने के प्रमाण भी मिलते रहते हैं। कर्नाटक राज्य के चुनावों के साथ व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को बांध कर देखना बुद्धिमत्ता नहीं होगी क्योंकि इस राज्य की राजनीति उन प्रतीकों की दास कभी नहीं रही जिनके ऊपर उत्तर भारत में हार-जीत तय हो जाती है।

हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि उत्तर भारत से बाहर कर्नाटक ही पहला एेसा दक्षिणी राज्य था जहां जनता पार्टी के वजूद में आने के बाद ग्रामीण राजनीति के पुरोधा स्व. चौधरी चरण सिंह के लोकदल के पांव जमे थे जो बाद में जनता दल में समाहित हो गया था। अतः यह बेवजह नहीं है कि वर्तमान चुनावों में दैनिक आधार पर नये-नये मुद्दे खोजे जा रहे हैं मगर उनका कर्नाटकी मिजाज से तालमेल नहीं बैठ रहा है। भला कोई सोच सकता है कि जब तिब्बत पर चीन ने आक्रमण करके इसे 1959 में पूरी तरह हथिया लिया था तो राज्य के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री एस. निजलिंगप्पा ने शरणार्थी तिब्बतियों के लिए अपने राज्य में भी बस्ती बसाई थी।

यह विशालता हमें कर्नाटक के मूल मिजाज में देखने को मिलती है मगर मौजूदा दौर में जिस तरह इस राज्य की राजधानी बेंगलूरू में विदेशी कम्पनियां खास तौर पर आईटी कम्पनियां अपने कार्यालय खोलने के लिए लालायित रहती हैं उससे भी इस राज्य के लोगों की वैचारिक सोच व आधुनिक नजरिये का पता चलता है। अतः यह स्वयं में विस्मयकारी है कि इस राज्य में फर्जी वोटर कार्ड बनाने के काम को बिना राजनैतिक प्रश्रय के अंजाम दिया जा सकता है मगर यह विचारणीय मुद्दा है कि केवल वोटर कार्ड हाथ में लेकर कोई भी मतदाता वोट डालने का अधिकारी नहीं बन जाता क्योंकि मत देने से पहले उसकी पक्की पहचान की जाती है और उसकी मतपत्र संख्या का मिलान चुनाव आयोग के सरकारी रिकार्ड से किया जाता है।

अक्सर हमें यह शिकायत सुनने को मिलती है कि वोटर कार्ड होने के बावजूद मतदाताओं को मत डालने नहीं दिया गया। अतः स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव प्रणाली को प्रभावित करने की यह नई तकनीक है। चुनावी धांधलियों की शिकायतें भारत में अक्सर होती रहती हैं। फर्जी वोट बनाने के आरोप भी राजनीतिक दल एक-दूसरे पर लगाते रहे हैं और वोटों की गिनती में धांधली करने के आरोप भी लगते रहते हैं परन्तु अद्यतन टैक्नोलोजी के दौर में फर्जी वोटर कार्ड बनाने के लिए मतदाता के फोटो से लेकर पूरे निजी विवरण की जरूरत होगी।

वास्तव में यह चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र है अतः आयोग को ही सच्चाई का पता लगाकर आवश्यक कार्रवाई करनी होगी, हमारे लोकतन्त्र का चौथा खम्भा चुनाव आयोग को ही डा. भीमराव अम्बेडकर ने बताया था। चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता लगने के बाद किसी भी राज्य की पूरी प्रशासनिक प्रणाली का संरक्षक हो जाता है और उसकी इजाजत के बिना कोई भी सरकारी एजेंसी या विभाग नया कदम नहीं उठा सकता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × three =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।