पंजाब में सिखी पर हो रहे हमले चिन्तन का विषय

पंजाब में सिखी पर हो रहे हमले चिन्तन का विषय

गुरुओं, पीरों की धरती पंजाब जिसे देश का सबसे अधिक शान्त और सामर्थ्य राज्य माना जाता था।
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गुरुओं, पीरों की धरती पंजाब जिसे देश का सबसे अधिक शान्त और सामर्थ्य राज्य माना जाता था। पंजाब का किसान जो पूरे देश के लिए अन्न पैदा करने की क्षमता रखा करता। राज्य में सभी धर्मों के लोग आपसी प्यार और मेलजोल के साथ रहते थे मगर शायद हमारे देश के राजनेताओं को यह नाखुशगवार था। इसी के चलते देश की आजादी के शुरू से ही पंजाब को कमजोर करने और पंजाबियों के आपसी रिश्तों में दरार डालने के प्रयास किये जाते रहे।

आतंकवाद की आड़ में समूचे सिख समुदाय को बदनाम किया गया जिसके चलते सिखों के प्रति पंजाब के गैर सिखों में नफरत की भावना पैदा हो गई जो अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। पंजाब की सत्ता पर काबिज राजनीतिक दलों ने अपने वोट बैंक की लालसा में दूसरे राज्यों से प्रवासियों को लाकर पंजाब में बसाना शुरू कर दिया और आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि पंजाब के ज्यादातर बड़े शहरों में प्रवासियों दबदबा बनता जा रहा है।

पंजाब के स्कूलों में ही बच्चों को पंजाबी बोलने से रोका जाता है। जालंधर के एक स्कूल ने बच्चों को कड़े उतार कर स्कूल में प्रवेश करने की बात कर डाली। प्रवासियों के द्वारा सिखों पर आए दिन हमले कर दस्तारें उतार दी जाती हैं मगर अफसोस कि सिखों की नुमाईंदगी करने वाली धार्मिक संस्था शिरोम​िण गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की ओर से कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जाती जिसके चलते लोगों के हौंसले दिन प्रतिदिन बुलंद होते चले जा रहे हैं।

पंजाब ही नहीं देशभर की सिख जत्थेबं​िदयों को चाहिए कि इस विषय को गंभीरतापूर्वक लेते हुए पार्टीवाद को दर किनार कर इस पर चिन्तन करें नही ंतो वह दिन दूर नहीं जब सिख पंजाब में ही मिनी माइन्योरिटी में आ जायेंगे।

सिखों के 2 तख्तों की मर्यादा अकाल तख्त से अलग सिख धर्म में पांच तख्तों को विशेष महत्व दिया गया है जिसमें श्री अकाल तख्त साहिब सर्वोच्च है जिसका निर्माण छठे गुरु हरि गोबिन्द साहिब जी के द्वारा किया गया था उसके बाद दूसरे तख्त के रुप में तख्त पटना साहिब को मान्यता दी गई है जो कि गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज की जन्म भूमि है। तख्त पटना साहिब और तख्त श्री अबचल नगर हजूर सााहिब नांदेड़ की मर्यादा अन्य तख्त साहिबान से अलग है यहां पर आज भी पुरातन मर्यादा के हिसाब से श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के बराबर दशम ग्रन्थ का प्रकाश होता है, हालांकि सिख धर्म के कुछ लोग दशम ग्रन्थ को मान्यता नहीं देते। तख्त श्री हजूर साहिब और तख्त पटना साहिब में दशहरा पर्व को दरबारे खालसा के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने की परंपरा गुरु गोबिन्द िसंह जी के समय से ही चलती आ रही है। बरसातों में शस्त्रों को जंग लग जाता था। गुरु जी के कहे अनुसार सिख 9 दिन शस्त्रों को साफ कर दशमी के दिन सभी मिलकर शस्त्रों की पूजा करते और खालसा दरबार लगाया जाता जिसमें सिखों की टोलियां बनाकर गतका प्रतियोगिताएं करवाई जाती, शस्त्रांे के जौहर दिखाए जाते। आज भी यह प्रथा तख्त श्री हजूर साहिब में निरन्तर जारी है। देश विदेश से सिख समुदाय के लोग, निहंग जत्थेबं​िदयां पहुंचती हैं, गतका प्रदर्शन, कीर्तन समागम, लंगर आदि चलते हैं। तख्त पटना साहिब में भी 9 दिन तक चण्डी की वार का पाठ होता है। दशहरे वाले दिन शस्त्रों की पूजा के पश्चात समाप्ति की जाती है। आनंदपुर साहिब के चमकौर साहिब जहां गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो बड़े साहिबजादे एवं अनेक सिख शहीद हुए थे, इस स्थान पर भी इस दिन खालसा दरबार सजाया जाता है। चण्डी की वार का जिक्र दशम ग्रन्थ में आता है। गुरु साहिब ने कृपाण को चण्डी कहकर सम्बोधित किया। इतिहास में इस बात का भी जिक्र है कि एक समय ऐसा आया जब राक्षसों का आतंक चर्म सीमा पर था और उनके द्वारा देवताओं तक को परेशान किया जाता। इसी के चलते मां दुर्गा ने चण्डी का रूप धारण कर भस्मासुर राक्षस का वध किया। इसलिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने चण्डी की वार लिखकर एक सन्देश दिया और इसका पाठ करने से आज भी शक्ति मिलती है।

दिल्ली कमेटी प्रधान का बादल परिवार पर कटाक्ष

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने बादल परिवार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज लगता है कि बिल्ली थैले से बाहर आ चुकी है। लम्बे समय से समुची सिख कौम शिरोम​िण अकाली दल और शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी पर काबिज बादल परिवार पर डेरा सच्चा सौदा मुखी राम रहीम से निकटता का आरोप लगाती आ रही हैं। शायद इसी के चलते बीते समय में डेरा मुखी को बिना श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश हुए माफी दे दी गई थी। पंजाब मंे डेरावाद अगर सबसे अधिक पनपा तो वह भी​ शिरोमणि अकाली दल की पंथक सरकार के समय ही था। असल मे दिल्ली कमेटी अध्यक्ष ने बादल परिवार की पुत्रवधू हरसिमरत कौर बादल के उस बयान को आधार बनाकर ऐसी प्रतिक्रिया दी है जिसमें हरसिमरत कौर बादल ने हरियाणा चुनावों के दौरान अभय चौटाला के लिए वोट मांगते हुए बादल-चौटाला परिवार के रिश्तों की दुहाई देकर सिखों को चौटाला को वोट देने की अपील की थी। अभय चौटाला ने जीतने के पश्चात डेरा सच्चा सौदा मुखी का आभार प्रकट किया।ं इससे लोगो के मन मंे यह सवाल आना स्वभाविक सी बात है कि बादल परिवार और डेरा मुखी में नजदीकीयां पुरानी चलती आ रही हैं जो शायद आज भी कायम है।

दिल्ली में शिरोमणि अकाली दल को एक साथ 2 झटके

दिल्ली में शिरोमणि अकाली दल को उस समय झटका लगा जब पार्टी की टिकट पर चन्दर विहार से सदस्य अनूप सिंह घुम्मन ने पार्टी को अलविदा कहते हुए टीम कालका का दामन थाम लिया। अनूप सिंह घुम्मन मनजीत सिंह जीके के करीबीयों में से थे जिन्हें परमजीत सिंह सरना ने टिकट दिया था और बाद में सरना दल के बादल दल में विलय के चलते वह भी बादल दल का हिस्सा बन गये थे। अनूप सिंह घुम्मन ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पंथ विरोधी गतिविधियों के चलते तनखैया होने से नाराज होकर इस्तीफा देने की बात कही पर शायद असलियत यह है कि जिन लोगों के वोट के दम पर वह जीते थे वह कतई शिरोणी अकाली दल बादल की नीतियो को पसन्द नहीं करते। इसी के चलते पहले भी 3 सदस्य पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। घुम्मन के पार्टी छोड़ने से भी सः परमजीत सिंह सरना को शायद इतना झटका नहीं लगा जितना जत्थेदार बलदेव सिंह रानी बाग के निधन के बाद लगा क्योंकि बलदेव सिंह रानी बाग स. सरना के अति करीबीयों में से थे और शायद उनकी वफादारी और दबंगगिरी के चलते सः परमजीत सिंह सरना ने एक अच्छे सलाहकार के रुप में ना सिर्फ साथ रखा बल्कि हमेशा उन्हें बनता मान सम्मान पार्टी में दिया। बलदेव सिंह रानी बाग के संस्कार के समय स. परमजीत सिंह सरना के चेहरे पर दुख साफ झलक रहा था इतना ही नहीं उन्हें अन्तिम विदायगी देने के लिए शिरोमणी अकाली दल के इलावा विपक्षी दल यहां तक कि कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के नुमाईंदे भी पहुंचे।

- सुदीप सिंह

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