अयोध्या में श्रीराम मन्दिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन आगामी अगस्त महीने के प्रथम सप्ताह में होगा जिसमें प्रधानमन्त्री के शामिल होने की सम्भावना बताई जा रही है। राम मन्दिर निर्माण के लिए चले लम्बे आन्दोलन और कानूनी लड़ाई को देखते हुए इसे बनाने का कार्य एक गैर सरकारी न्यास के सुपुर्द किया गया है जो यह कार्य करेगा। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि 1989 में स्व. राजीव गांधी के प्रधानमन्त्री रहते रामजन्म स्थान के अविवादित क्षेत्र में शिला पूजन या शिलान्यास की अनुमति विश्व हिन्दू परिषद को प्रदान की गई थी, उस समय गृह मन्त्री सरदार बूटा सिंह थे। 1989 में कांग्रेस के लोकसभा चुनाव प्रचार का श्रीगणेश भी स्व. राजीव गांधी ने अयोध्या या फैजाबाद से ही किया था परन्तु इस चुनाव के परिणामों के बारे में भी हम सभी को ज्ञात है कि किस प्रकार कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर हुई। अतः भारत में धर्म और राजनीति का घालमेल हमेशा लाभदायक ही होगा इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती परन्तु भाजपा के बारे में यह उक्ति ठीक नहीं बैठती है क्योंकि 1984 में केवल दो लोकसभा सीटों पर सिमटने वाली इस पार्टी का भाग्योदय केवल राम मन्दिर निर्माण आन्दोलन चलाने की वजह से ही हुआ। ऐसा इस पार्टी के राष्ट्रवादी चरित्र की वजह से हुआ जिसके केन्द्र में हिन्दुत्व था। राम मन्दिर निर्माण की मांग मूल रूप से भारत के बहुसंख्य हिन्दू समाज की ही थी जिसके भाजपा के पक्ष में 1989 से लगातार गोलबन्द होने की वजह से भाजपा का राजनीतिक ग्राफ बढ़ता रहा और कांग्रेस का नीचे गिरता रहा परन्तु इसमें भाजपा के केन्द्र में छह वर्ष के शासन के बाद 2004 से परिवर्तन आना शुरू हुआ और जनता से जुड़े अन्य ज्वलन्त मुद्दे और राष्ट्रीय समस्याएं चुनावी राजनीति के केन्द्र में आने शुरू हो गये जिनकी वजह से राजनीतिक समीकरण बदलने लगे परन्तु 2014 के आते-आते बाजी एक बार फिर पलट गई और देश की जनता ने श्री नरेन्द्र मोदी के मजबूत नेतृत्व को राष्ट्रीय आकार देते हुए भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत दिया परन्तु इन चुनावों में राम मन्दिर का मुद्दा पूरी तरह हाशिये पर ही रहा। इसके बाद 2019 के चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा पूर्ण ओजस्विता के साथ इस प्रकार केन्द्र में रहा कि श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को आम जनता ने भाजपा को अब तक का सबसे बड़ा बहुमत दिया। जाहिर है कि वर्तमान में भारत का मुख्य मुद्दा फिर से राष्ट्रीय सुरक्षा का ही चीन की हठधर्मिता की वजह से बन चुका है। इसमें अब कोई दो राय नहीं हो सकती कि चीन ने लद्दाख के क्षेत्र में खिंची नियन्त्रण रेखा का स्वरूप बदलने की नीयत से ही अपनी घुसपैठ इस तरह की है कि वह अब पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हो रहा है।
उसकी नीयत से यही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह भारत की ताकत को कम आंकने की भूल कर रहा है और अपने पड़ोसी होने का बेजा फायदा उठा रहा है परन्तु यह उसका भ्रम है क्योंकि आजादी के बाद से ही खुले और जवाबदेह लोकतन्त्र में जीने वाले भारतवासी किसी बाहरी खतरे के समय किन्हीं आन्तरिक मतभेदों के जाल में उलझे नहीं रहते हैं। इतिहास गवाह है कि जब भी भारत की राष्ट्रीय सीमाओं पर कोई बाहरी शक्ति अतिक्रमण करने की कोशिश करती है तो कांग्रेस और जनसंघ (भाजपा) का अन्तर समाप्त हो जाता है और समस्त देशवासी व राजनीतिक तबका एक स्वर से ‘जयहिन्द’ का उद्घोष करने लगता है। नहीं भूला जाना चाहिए कि जय हिन्द का नारा हमें महान स्वतन्त्रता सेनानी ‘नेताजी सुभाष चन्द्र बोस’ ने दिया था। उन्हीं की आजाद हिन्द फौज का यह कौमी तराना-
‘‘कदम-कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत जाये जा
ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा।’’
आज भी भारतीय सेना का ‘निशानी गान’ है। भारतवासी अपनी वरियताओं को न समझें ऐसा हो ही नहीं सकता। चुनावी इतिहास इसी तथ्य का प्रमाण देता है कि इस देश के नागरिक तब स्वयं राजनीतिज्ञ की भूमिका में आ जाते हैं जब राजनीति अपनी दिशा भूलने लगती है। भारत के मतदाता दुनिया के सबसे सजग और सुविज्ञ मतदाता इस मायने में माने जाते हैं कि वे समयानुरूप अपनी वरियताएं तय करके समूची राजनीति के नियामक तक बदल डालते हैं। चीन हो या पाकिस्तान उनके लिए विदेशी केवल विदेशी ही होता है जिसके टेढ़ी आंख करने पर समूचा हिन्दोस्तान एक होकर उठ खड़ा होता है। एेसा हमने 1962 के चीनी आक्रमण के समय भी देखा था और बाद में पाकिस्तानी आक्रमणों के समय भी देखा। विदेशी हैरान हो जाते हैं कि जाति-बिरादरियों में बंटे भारतीय किस तरह सीमा पर किसी खतरे को देखते ही एक धागे में बन्ध कर मजबूत रस्सी की शक्ल लेते हैं। यही भारत की विशेषता है कि इसके लोग जानते हैं कि उनकी प्राथमिकताएं बदलते समय के अनुसार किस प्रकार की होंगी।
चीन भारत की इसी गैरत को चुनौती देने की हिमाकत कर रहा है और भूल रहा है कि उसकी आर्थिक शक्ति के दबाव में भारत आ सकता है। नरेन्द्र मोदी जैसा मजबूत प्रधानमन्त्री होते उसे किसी बात की चिन्ता नहीं है। दो सौ साल तक अंग्रेजों की गुलामी में रहे भारतीयों ने आत्म-सम्मान की लड़ाई लड़ कर ही उन्हें इस देश से भगाया था। जब सीमा पर संकट आता है तो सभी गुनगुनाने लगते हैं कि-
‘‘हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।’’