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अंतरिक्ष में बाहुबली भारत

मानव हमेशा जिज्ञासु रहा है और इसी जिज्ञासा के चलते उसने धरती से लेकर अंतरिक्ष तक खोज की और मानव जीवन को सहज बनाने के लिय काम किया।

मानव हमेशा जिज्ञासु रहा है और इसी जिज्ञासा के चलते उसने धरती से लेकर अंतरिक्ष तक खोज की और मानव जीवन को सहज बनाने के लिय काम किया। आज विज्ञान और अनुसंधान के बल पर पूरे विश्व में दुनिया की जीवनशैली ही बदल गई है और सुख-सुविधा के सभी साधान मौजूद हैं। मानव ने प्रकृति की काफी खोज की है, कभी वह मंगल तक पहुंचा तो कभी चांद पर। वैज्ञानिकों के साथ-साथ आम इन्सान की भी जिज्ञासा बढ़ी। 
अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा ने जब अपोलो 11 के माध्यम से 20 जुलाई 1969 को अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग को चांद की सतह पर उतारा तो दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिये यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। मुझे याद है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और कई अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और करोड़ों लोग भी इस ऐतिहासिक पल को देखने के लिये सुबह साढ़े चार बजे तक जागते रहे थे। दुनिया भर में विज्ञान में रुचि रखने वाले लोग उस पल को देखने से चूकना नहीं चाहते थे।
भारत की चांद से मुलाकात पहले भी हो चुकी है। 22 अक्तूबर 2008 में भारत ने श्री हरिकोटा से चन्द्रयान-I को प्रक्षेपित किया तो हम दुनिया के चुने हुए उन पांच देशों के क्लब का हिस्सा बन गये थे जिनमें रूस, अमेरिका, यूरोपीयन स्पेस एजैंसी, जापान और चीन शामिल थे। इससे पहले 67 चंद्रयान रवाना हो चुके थे। अब तक 12 अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर चहलकदमी कर चुके थे। 22 जुलाई 2019 दिन सोमवार को दोपहर सभी ​की धड़कनें तेज थीं। श्री हरिकोटा में सतीश चन्द्र धवन ने अंतरिक्ष केन्द्र से चन्द्रयान-2 का प्रक्षेपण किया गया। 
जैसे ही चन्द्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण की घोषणा की गई इसरो के वैज्ञानिक खुशी से झूम उठे और इसके साथ ही पूरा देश भी खुशी से झूम उठा। इस मिशन की खास बात यह है कि यह चन्द्रयान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, जहां अब तक कोई देश नहीं उतरा है। चांद के दक्षिणी ध्रुव से जुड़े जोखिमों को देखते हुए कोई भी अंतरिक्ष एजैंसी वहां नहीं उतरी है। अधिकांश मिशन भूमध्य रेखा के क्षेत्र में पहुंचे जहां दक्षिणी ध्रुव की तुलना में जमीन काफी सपाट है। वहीं दक्षिणी ध्रुव की जमीन ज्वालामुखियों और उबड़-खाबड़ जमीन से भरी हुई है और यहां उतरना काफी जोखिम भरा है।
उम्मीद है कि चन्द्रयान-2 सफलतापूर्वक लैंडिंग कर लेगा। इस मिशन का लक्ष्य चांद की सतह का नक्शा तैयार करना और खनिजों की मौजूदगी का पता लगाना है। साथ ही चांद के बाहरी वातावरण को स्कैन करना और किसी न किसी रूप में पानी की उप​स्थिति का पता लगाना है। इसी तरह भारत पूर्व सोवियत संघ, अमेरिका और चीन के बाद यहां उतरने वाला और सतह पर रह कर चांद की कक्षा, सतह और वातावरण में विभिन्न प्रयोग करने वाला चौथा राष्ट्र बन जायेगा। इस मिशन का उद्देश्य चांद को लेकर अपनी जानकारी को पुख्ता करना और मानवता को लाभान्वित करने वाली खोज करना है।
भारत के चन्द्रयान-1 ने पहले 2009 में चन्द्रमा की सतह पर पानी के चिन्ह दर्शाने वाले चित्र भेजकर सारी दुनिया काे हैरत में डाल दिया था। इसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा ने इससे आगे जा कर पक्के सबूत की तलाश में अपने अंतरिक्ष यान की चांद की सतह से टक्कर मार दी थी। चन्द्रयान-2 चांद की सतह पर और सतह के नीचे और बाहरी वातावरण में पानी के अणुओं की मौजूदगी की सीमा का अध्ययन करेगा। इसके अलावा चन्द्रयान-2 चांद पर अशोकचक्र और इसरो के प्रतीक की छोप छोड़कर आयेगा। रोवर के एक पांव में अशोक चक्र और दूसरे पर इसरो का प्रतीक छपा हुआ है, जो उसके चलने के दौरान चांद पर छप जायेगा।
पानी की मौजूदगी की खोज दक्षिणी ध्रुव या भविष्य में इंसान की उपस्थिति के लिये स्टीफ हाकिंग ने कहा था कि ‘अंतरिक्ष में जाये बिना मानव प्रजाति का कोई भविष्य नहीं होगा। सभी ब्रहमंडलीय पिंडों में से चांद हमारे सबसे नजदीक है। यहां पर और गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिये जरूरी तकनीकों का ज्यादा आसानी से परिक्षण हो सकता है’। चन्द्रयान-2 ने एक बार फिर दुनिया भर के वैज्ञानिकों का फोक्स चांद पर ला दिया है। 
काश! अमेरिकी दबाव न होता और रूस हमें क्रायाेजेनिक तकनीक दे देता तो भारत को चन्द्रयान-2 के लिये इतने वर्ष नहीं लगते। हम भागयशाली हैं कि हम चन्द्रयान-2 की लांचिंग के ऐतिहासिक पल के चश्मदीद बने हैं। चा​हे मिसाइलों का निर्माण है उसमें डीआरडीओ और चाहे मंगल मिशन, मून मिशन की बात हो तो इसरो ने बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत अंतरिक्ष में बाहुबली बन चुका है। वैज्ञानिकाें के अथक प्रयासों से भारत गौरव हासिल कर चुका है। चन्द्रयान-2 और वैैैज्ञानिकों का जयघोष हो।

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