चुनावों में भारतीय चुनावों में भारतीय राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के लिये फिल्म स्टारों की मदद लेते रहे हैं। कई अभिनेता और अभिनेत्रियों ने संसद की शोभा भी बढ़ाई है। कुछ इस बार भी भाग्य आजमा रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राजनीतिक दल ने चुनाव प्रचार के लिये पड़ोसी देश के फिल्म अभिनेताओं का इस्तेमाल किया। बात तो हैरान कर देने वाली है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिये बांग्लादेश के फिल्म अभिनेता फिरदौस अहमद चुनाव प्रचार कर रहे थे। उन्हें तो केन्द्रीय मंत्रालय ने वीजा नियमों का उल्लंघन करने पर भारत छोड़ने का फरमान जारी कर दिया था। फिरदौस रायगंज से तृणमूल प्रत्याशी कन्हैया लाल अग्रवाल के समर्थन में प्रचार कर रहे थे। इसके बाद गाज गिरी फिरदौस अहमद के हमवतन कलाकार गाजी अब्दुल नूर पर।
गाजी वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी भारत में रह रहे थे। गाजी दमदम लोकसभा सीट से तृणमूल प्रत्याशी सौगत राय के समर्थन में चुनाव प्रचार कर रहे थे। अब इन्हें भी भारत छोड़ कर जाने को कह दिया गया है। अब उनकी तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें गाजी अब्दुल नूर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के साथ रामनवमी पर भाजपा के विरोध में निकाले गये जुलूस में शामिल दिखाई दे रहे हैं। फिरदौस अहमद और गाजी नूर को गृह मंत्रालय ने काली सूची में डाल दिया है। सब जानते हैं कि चुनावों में फिल्म स्टारों की दुकान चल निकलती है और चुनाव प्रचार के लिये उन्हें अच्छा खासा पैसा मिलता है। जाहिर है कि बांग्लादेश के फिल्म स्टारों ने भी चुनाव प्रचार को बिजनेस ही समझ लिया। बांग्लादेशी फिल्म स्टार बिजनेस वीजा या टूरिस्ट वीजा पर भारत आये थेे तो यहां किसी पार्टी का चुनाव प्रचार क्यों करने लगे। किसी विदेशी फिल्मी हस्ती के भारतीय उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार की बात पहली नजर में ही अजीब और आपत्तिजनक लगती है। तृणमूल चाहती तो भारत में इतने स्टार हैं, वह चुनाव प्रचार में उनकी मदद ले सकती थी लेकिन उसने बांग्लादेश के फिल्म स्टारों का सहारा लिया। पश्चिम बंगाल में बंगलादेश से भारत में अवैध रूप से आये घुसपैठियों का मुद्दा काफी संवेदनशील है।
भाजपा जहां अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने की बात कर रही है वहीं तृणमूल कांग्रेस इसका विरोध कर रही है। अवैध घुसपैठियों का मुद्दा कोई नया नहीं है बल्कि इस मुद्दे पर तो पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंसा भी होती रही है। तृणमूल कांग्रेस की नजर में घुसपैठिए वोट बैंक हैं। साफ है कि बांग्लादेश से गैर कानूनी ढंग से आकर बसे लोगों को आकर्षित करने के लिये तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। उनमें से एक हथकंडा बांग्लादेशी फिल्म स्टारों से चुनाव प्रचार कराना भी शामिल है। गृह मंत्रालय द्वारा इन फिल्म स्टारों को वापिस बांग्लादेश जाने के फरमान के बावजूद तृणमूल के नेता कह रहे हैं कि संविधान में विदेशी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाने की मनाही है लेकिन किसी विदेशी के चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने पर कोई रोक नहीं है। फिरदौस अहमद और गाजी नूर बांग्लादेश के फिल्म उद्योग के उन सितारों में से हैं जिनकी शोहरत बांग्लादेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक है। यहां तक कि फिरदौस ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत टालीवुड से की थी। मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिये ही इन स्टारों का इस्तेमाल किया गया।
चुनाव आचार संहिता में यह बात स्पष्ट नहीं है कि कोई विदेशी नागरिक भारत के चुनावों में किसी पार्टी के लिये प्रचार करेगा या नहीं। इसी का फायदा तृणमूल कांग्रेस ने उठाया। गृह मंत्रालय ने इस मामले का संज्ञान लेते हुये कोलकाता में विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय से इनके वीजा से संबंधित जानकारी मांगी थी। इसके बाद ब्यूरो आफ इमीग्रेशन ने गृह मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें पाया गया कि बांग्लादेशी फिल्मी एक्टर बिजनेस वीजा पर भारत आये और ऐसे में चुनाव प्रचार करना सीधे-सीधे नियमों का उल्लंघन है। भारत आने वाले विदेशी नागरिकों को अपने उद्देश्य के मुताबिक वीजा लेना पड़ता है जैसे टूरिस्ट वीजा, मेडिकल वीजा, स्टूडेंट वीजा और बिजनेस वीजा। भारत में कानून के मुताबिक विदेशी नागरिकों को अपनी गतिविधियों को वहीं तक सीमित रखना होता है जिसका जिक्र उन्होंने वीजा आवेदन में किया होता है लेकिन बांग्लादेशी अभिनेताओं ने चुनाव प्रचार का धंधा शुरू कर दिया।
क्या तृणमूल कांग्रेस के पास प्रभावी चेहरों की कमी हो गई है? क्या उसे पड़ोसी देश के चेहरों पर भरोसा है कि वे स्थानीय मतदाताओं को उनके पक्ष में आकर्षित कर सकेंगे। कहते हैं लोकतंत्र लोक लज्जा में चलता है लेकिन भारत की विडम्बना है कि राजनीतिक दलों ने लोक लज्जा ही छोड़ दी है। जिस तरह मुहब्बत और जंग में सब कुछ जायज करार दिया जाता है, उसी तरह चुनावी जंग में भी सब कुछ जायज करार दिया जाता है। निर्वाचन आयोग को चाहिये कि वह भविष्य के चुनावों के लिये इस सम्बन्ध में स्पष्ट नियम बनायें।