19वीं शताब्दी तक भारत में दिवालियापन को लेकर कोई कानून नहीं था। जब कोई व्यापारी दिवालिया हो जाता था तब वह अपने घर के आगे रात में घी का दीया जलाकर लापता हो जाता था। यह दीया उसके दिवालियापन का प्रतीक होता था। जिनसे उसने कर्ज लिया था वे उसके आवास पर कब्जा जमा लेते थे। अदालतें अपनी सूझबूझ के आधार पर दिवालियापन को परिभाषित करती आई हैं। पिछले कुछ वर्षों से भारत में माहौल बदला तो इस कानून की अहमियत बढ़ती गई। दिवालिया कानून कमजोर होने से बहुत सी बड़ी कम्पनियों ने इसका खूब फायदा उठाया। छोटे निवेशकों और जमाकर्ताओं को लूटा और कम्पनियों के निवेशकों ने अपनी देश-विदेश में सम्पत्तियां बना डालीं। कोई देखने-सुनने वाला नहीं था।
कई कम्पनियों ने सीधी-सीधी धोखाधड़ी की और लूटा गया धन टैक्स हैवन देशों में रखा और फिर उसे इधर-उधर कर दिया। पहले के दिवालिया कानून के तहत हमारे देश में दिवालिया प्रक्रिया में आैसतन साढ़े चार वर्ष लगते थे, जो दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा था। साढ़े चार वर्ष में तो छोटे निवेशक चक्कर लगाते-लगाते थक जाते थे और अंततः पैसा मिलने की उम्मीद छोड़ कानूनी लड़ाई से किनारा कर लेते थे। छोटे निवेशकों, सप्लायरों, छोटे जमाकर्ताओं को कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं था। बड़े बैंक भी इससे अछूते नहीं रहे। विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइन का उदाहरण ले लें तो इस एयरलाइन को बड़े धूमधड़ाके के साथ शुरू किया गया था लेकिन वर्ष 2012 आते-आते वह ठप्प हो गई। उस पर 1.5 अरब डॉलर से अधिक की देनदारी थी। जिन बैंकों ने उसे ऋण दिए थे वह आज भी पैसा वसूलने के लिए कोशिशें कर रहे हैं। विजय माल्या कर्ज लेकर घी पीते गए आैर बाद में इंग्लैंड भाग गए। दिवालियापन की प्रक्रिया में फंसी कम्पनियों के खिलाफ कोई भी लेनदार कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकता था, जब तक पुनर्भुगतान की योजना प्रस्तुत न की जाए। इसका कम्पनियों ने बहुत फायदा उठाया।
बढ़ रही धोखाधड़ी और कार्पोरेट लूट को रोकने के लिए मोदी सरकार ने कई कदम उठाए। अब दिवालियापन कानून को और सख्त बनाया जा रहा है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पिछले वर्ष दिसम्बर में लागू किए गए कानून में कुछ बदलाव करने के लिए अध्यादेश लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। सरकार की ओर से यह बदलाव ऐसे समय में किया जा रहा है जब कानून के प्रावधानों काे लेकर बहुत चिन्ता व्यक्त की जा रही है। सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि कानून की खामियों का फायदा उठाते हुए दिवालिया प्रक्रिया में आई कम्पनी पर उसके प्रवर्तक फिर से नियंत्रण हासिल करने की जुगत लगा सकते हैं। आये दिन पुराने मालिक अपने किसी रिश्तेदार के नाम से कम्पनी स्थापित कर पुरानी कम्पनियों की परिसम्पत्तियों को उसमें हस्तांतरित कर देते थे। ऐसा करने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। दिवालिया कानून में कई सुराख हैं। अब तक दिवाला संहिता के तहत 300 से ज्यादा प्रकरण नेशनल कम्पनी कानून न्यायाधिकरण में समाधान के लिए दर्ज किए जा चुके हैं। दिवाला कानून में नेशनल कम्पनी कानून न्यायाधिकरण से मंजूरी मिलने के बाद ही किसी मामले को समाधान के लिए आगे बढ़ाया जाता है। कम्पनियों की स्थिति खराब होने पर शेयरधारकों, ऋणदाताओं, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्ताओं आैर ग्राहकों पर बुरा असर पड़ता है। साथ ही अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है।
अन्य धंधों आैर कारोबार पर भी असर पड़ता है। अब यह जरूरी हो गया है कि दिवालियापन से जुड़े कानून में कम्पनी से जुड़े सभी लोगों के हितों को पूरी तरह ध्यान में रखा जाए। रियल एस्टेट सैक्टर की बिल्डर कम्पनियां भी अब खुद को दिवालिया घोषित कर रही हैं। ऐसे में खरीदारों का संरक्षण कैसे हो, इस मामले पर गहन मंथन के लिए सरकार ने 14 सदस्यीय समिति गठित की है। पिछले वर्ष लागू दिवालियापन कानून फ्लैट खरीदारों के लिए मुसीबत बनकर रह गया है। अब केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने जिस अध्यादेश को मंजूरी दी है उसमें कई प्रावधान किए गए हैं जैसे दिवालिया कम्पनी को वापस नहीं ले पाएंगे इरादतन चूककर्ता, संदिग्ध प्रवर्तकों को नहीं होगी बोली लगाने की अनुमति, निविदा से सम्बन्धित दिशा-निर्देशों को और कठोर बनाया गया है। अभी राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर अध्यादेश को जारी कर दिया है क्योंकि संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसम्बर से शुरू होना है। फिर इस विधेयक को सत्र में पेश किया जाएगा। दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही कम्पनियों पर अंकुश लगेगा और बैंकों को अपनी वसूली करने के लिए और ताकत मिलेगी। सभी के हितों के लिए दिवालियापन कानून के सुराख बन्द होने ही चाहिएं।